Vikram Singh Chauhan : जी न्यूज, सुधीर चौधरी और सांसद महुआ मोइत्रा… सुधीर चौधरी फायरब्रांड सांसद महुआ मोइत्रा से क्यों चिढ़ रहा है, उसका जवाब इधर है। ज़ी ग्रुप बर्बादी के कगार पर है। वजह एस्सेल इन्फ्रा 4 से 5 हज़ार करोड़ के घाटे में है। अनुमान है अगस्त तक यह घाटा 10 हज़ार करोड़ तक पहुंच जाएगा। नोटबंदी के बाद इस समूह में अज्ञात तौर पर 3000 करोड़ रुपये आये थे, जिसकी जांच चल रही थी। ‘वायर’ में रिपोर्ट आने के बाद निवेशकों ने एस्सेल ग्रुप से एक ही दिन में 14 हज़ार करोड़ रुपये निकाल लिए थे।
ग्रुप के पास लोन के देने के पैसे भी नहीं थे, अभी भी नहीं है। आपको याद होगा सुभाष चंद्रा ने माफी भी मांगी थी। ज़ी न्यूज़ /ज़ी एंटरटेनमेंट के बिकने की चर्चा लंबे समय से चल रही थी, अज्ञात स्रोत से ज़ी न्यूज़ अब भी चल रहा है। इस पर पिछले दिनों महुआ मोइत्रा ने संसद में सवाल भी उठा दिया कि कुछ चैनलों को सरकार के द्वारा अथाह पैसा दिया गया है, लेकिन कितना दिया गया है यह सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय नहीं बता रहा है। उसकी जगह सिर्फ केंद्र सरकार के सीधे विज्ञापन के पैसे को जोड़ बता दिया गया है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व प्रिंट को लगभग 5,246 करोड़ दिए गए।
सांसद मोइत्रा ने इसका लिखित में जवाब मांगा है, सरकार को लिखित में ही यह जवाब संसद के अगले सत्र/बैठक में देना होगा। जाहिर है ज़ी न्यूज़ इसमें बुरी तरफ लिप्त है। अरबों रुपये ज़ी न्यूज़ को दिए गए, सार्वजनिक उपक्रमों के पैसे इन्हीं चैनलों में उड़ेले गए। अब महुआ मोइत्रा ने सुधीर चौधरी के पेट में लात मारी है तो कराह तो होगा ही न, इसलिए उनके ऊपर कंटेट चोरी का आरोप लगाया लेकिन यह एक दिन भी नहीं टिक पाया।
मार्टिन लॉंगमन ने ही सुधीर को झूठा बता दिया। महुआ मोइत्रा भी सुधीर को कहाँ छोड़ने वाली थीं। उन्होंने आज ही संसद में उनके स्पीच पर सवाल उठाने के लिए सुधीर चौधरी पर विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाया जिसे बीजेपी के स्पीकर ओम बिड़ला ने खारिज कर दिया। लेकिन सुधीर औऱ उनका चैनल कब तक बचेगा? महुआ मोइत्रा जिस तरह से अकेली इन मीडिया हाउस से लड़ रही हैं, वह काबिलेतारीफ है। मुझे पूरी उम्मीद है वे इन चैनलों का, कथित संपादकों का नक़ाब उतार कर रहेगी।
Sanjaya Kumar Singh : मुझे तो लगता है कि ज़ी न्यूज बच गया… मोहुआ मोईत्रा के भाषण पर जी न्यूज का डीएनए मैंने देखा नहीं पर संसद में दिया गया भाषण वैसे भी plagiarism या साहित्यिक चोरी की श्रेणी में नहीं आएगा। मामला तब बनता है जब आप किसी और की कृति अपने नाम से प्रकाशित करा लें, अपना बताएं।
साधारण उल्लेख में ना यह संभव है ना जरूरी। ना ही यह मामला साहित्य का है ना मकसद साहित्य के क्षेत्र में कद बनाना था। भले ही अच्छा भाषण था इसलिए उसकी तारीफ हुई पर मकसद साहित्यिक प्रतिभा का प्रदर्शन नहीं था। इसलिए इस आरोप का वैसे ही कोई मतलब नहीं है और जब उल्लेख कर दिया गया हो तो इसका सवाल ही नहीं उठता। महुआ मोइत्रा ने तो उल्लेख किया था कि वे किसका, कहां से हवाला दे रही हैं।
कायदे से यह विवाद का मुद्दा ही नहीं है पर इसे मुद्दा बनाया गया क्योंकि इससे तकलीफ वहां हुई जहां तकलीफ पहुंचाने के लिए है। वैसे भी विशेषाधिकार सांसद और संसद का होता है पर जी न्यूज पर फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं होने जा रही है।
Abhishek Parashar : महुआ मोइत्रा का भाषण संसद में दिया गया है जिसमें उन्होंने देश में फासीवाद की आहट का जिक्र किया है. यह आधिकारिक बयान है, जो रिकॉर्ड में दर्ज हो गया है. इस बयान की वैधता है. यह इतिहास में दर्ज है कि एक महिला प्रतिनिधि ने इसके खतरों के प्रति आगाह किया था. मोइत्रा का बयान इस संदर्भ में बेहद खास है क्योंकि वह अखबार के किसी पेज पर पड़े किसी लेखक या विचारक का 500 या 100 शब्दों का आर्टिकल मात्र नहीं है.
रही बात, मोइत्रा के भाषण के अंश को चोरी किए जाने का तो ऐसा है नहीं. उन्होंने क्रेडिट दिया है कि उन्होंने यह कहां से लिया. और जिन्हें खोजे गए बयान को खोजने की महारथ है, उन्हें यह काउंटर देने में मेहनत करनी चाहिए कि वह 9 या 10 या 15 संकेत कौन से हैं, जो मोइत्रा की आशंका को निराधार साबित करते हैं.
सौजन्य : फेसबुक
AMAN KUMAR SINGH
July 6, 2019 at 12:29 am
अरे भाई ये सांसद और संपादक अपने हित के लिए लड़ रहे हैं. आम मीडियाकर्मी का कोई नहीं है. अगर ऐसा होता तो सहारा के हजारों बेहसहारा कर्मचारियों की भी कोई सुध लेता। लोगों की दो -दो साल की सैलरी नहीं मिली है। जो छोड़ चुके हैं उसका भी लाखों रुपए बकाया है। हजारों मामले लेबर कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गए हैं लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला। आखिर इनकी सुध कौन लेगा?