अनीता मिश्रा-
पाकिस्तान की मशहूर उर्दू लिटरेचर की विद्वान और टीचर, बुद्धिजीवी आरिफा सैयदा जी का एक वाकया तानाशाह जनरल ज़िया उल हक़ के दौर का है।
एक प्रोग्राम था जिसमें ज़िया को आना था और सरकारी मुलाजिम होने के नाते उन्हे भी जाना पड़ा । अपनी तकरीर में ज़िया उल हक़ ने कहा ‘ मुझे अदीब और उस्ताद दोनों से ( यानि राइटर और टीचर ) बड़ी नफरत है । यह लोग बहुत बोलते और सोचते हैं। प्रोग्राम के अंत में कहा गया कि किसी को कुछ कहना हो तो कह सकता है।
उस पूरे हॉल में किसकी हिम्मत थी कि उनके सामने कुछ बोलता लेकिन आरिफा जी ने हिम्मत करके हाथ उठाया और कहा कि ‘अभी आपने अपनी तकरीर में फरमाया कि आपको अदीब और उस्ताद दोनों से नफरत है। मैंने आज तक जो कुछ पढ़ा लिखा उससे यही जाना कि अल्लाह अदीब है और रसूल उस्ताद तो क्या आपको दोनों से नफरत है?’
इसके बाद हॉल में करीब 10 मिनट तक तालियां बजती रहीं।
आरिफा जी कहती है कि ‘हिम्मत करके बोल तो दिया था लेकिन उसके बाद करीब -करीब पत्थर की हो गई थी कि अब पता नहीं क्या होगा ?’
कार्यक्रम के बाद चाय के दौरान आरिफा जी के कान के पास एक आवाज आई ‘आरिफा पार्किंग में संभल कर जाना।‘
यह चेतावनी मशहूर शायर अहमद फ़राज़ साहब की थी जो आरिफा के बोलने के बाद काफी डर गए थे।
आरिफा जी का कहना है कि इस कार्यक्रम के बाद काफी दिनों तक अपने घर में आने वाली फोन कॉल और डोरबेल पर डर जाती थी कि पता नहीं कब उनके आदमी आ जाए।
यहां तक कि उनके पिता का फोन कई बार बजने के बाद उन्होंने उठाया तो उनके पिता ने उनसे कहा कि ‘प्राउड ऑफ यू’ ।