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यूपी में असमंजस में डोल रही है भाजपा

पिछले कुछ दिनों से देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा में लगातार आन्तरिक कलह देखने को मिल रही है जिससे यह स्पष्ट होता जा रहा है की पार्टी के अंदर कुछ गड़बड़ है, जिसे पार्टी संभल नहीं पा रही है। पहले भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी को लेकर उठा विवाद और उसके बाद सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति को लेकर पार्टी नेताओ में उठा मतभेद। ये दोनों बातें ये साबित करती है कि बाहर से एकजुट दिखने का प्रयास कर रही भाजपा अन्दर से बिलकुल टूटने की कगार पर है। यही कारण की पार्टी अब कई आन्तरिक मुद्दों पर बयानबाजी से बच रही है, जिनमें सबसे प्रमुख मुद्दा नरेंद्र मोदी को भाजपा की तरफ से 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट करना है। इस मुद्दे पर कोई भी भाजपा नेता बोलने को तैयार नहीं है। सबका यही कहना कि आने वाले समय के साथ तस्वीर साफ़ हो जाएंगी। जबकि नरेद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद पर प्रोजेक्ट करने की राह इतनी आसान नहीं लगती क्योंकि पार्टी के अन्दर ही मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत किये जाने हेतु मतैक्य नहीं दिखाई पड़ता और भाजपा नेतृत्व इस बात को अच्छी तरह से समझ भी रहा है कि अगर अभी से मोदी मसले पर बयानबाजी शुरू हुई तो पार्टी के कुछ नेताओं से लेकर सहयोगी दल तक इस मुद्दे पर भड़क सकते हैं, जो 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को केंद्र की सत्ता तक पहुंचाने में निश्चित रूप से बाधक होंगे और इसीलिए पार्टी के वरिष्ठ नेतागण इस मुद्दे पर रहस्यमयी चुप्पी साधे हुए है। पर भाजपा की यही चुप्पी पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं में 2014 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर उलझने बढ़ा रही है। जिसकी बानगी इन दिनों उत्तर प्रदेश भाजपा में देखने को मिल रही है।

<p>पिछले कुछ दिनों से देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा में लगातार आन्तरिक कलह देखने को मिल रही है जिससे यह स्पष्ट होता जा रहा है की पार्टी के अंदर कुछ गड़बड़ है, जिसे पार्टी संभल नहीं पा रही है। पहले भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी को लेकर उठा विवाद और उसके बाद सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति को लेकर पार्टी नेताओ में उठा मतभेद। ये दोनों बातें ये साबित करती है कि बाहर से एकजुट दिखने का प्रयास कर रही भाजपा अन्दर से बिलकुल टूटने की कगार पर है। यही कारण की पार्टी अब कई आन्तरिक मुद्दों पर बयानबाजी से बच रही है, जिनमें सबसे प्रमुख मुद्दा नरेंद्र मोदी को भाजपा की तरफ से 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट करना है। इस मुद्दे पर कोई भी भाजपा नेता बोलने को तैयार नहीं है। सबका यही कहना कि आने वाले समय के साथ तस्वीर साफ़ हो जाएंगी। जबकि नरेद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद पर प्रोजेक्ट करने की राह इतनी आसान नहीं लगती क्योंकि पार्टी के अन्दर ही मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत किये जाने हेतु मतैक्य नहीं दिखाई पड़ता और भाजपा नेतृत्व इस बात को अच्छी तरह से समझ भी रहा है कि अगर अभी से मोदी मसले पर बयानबाजी शुरू हुई तो पार्टी के कुछ नेताओं से लेकर सहयोगी दल तक इस मुद्दे पर भड़क सकते हैं, जो 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को केंद्र की सत्ता तक पहुंचाने में निश्चित रूप से बाधक होंगे और इसीलिए पार्टी के वरिष्ठ नेतागण इस मुद्दे पर रहस्यमयी चुप्पी साधे हुए है। पर भाजपा की यही चुप्पी पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं में 2014 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर उलझने बढ़ा रही है। जिसकी बानगी इन दिनों उत्तर प्रदेश भाजपा में देखने को मिल रही है।

पिछले कुछ दिनों से देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा में लगातार आन्तरिक कलह देखने को मिल रही है जिससे यह स्पष्ट होता जा रहा है की पार्टी के अंदर कुछ गड़बड़ है, जिसे पार्टी संभल नहीं पा रही है। पहले भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी को लेकर उठा विवाद और उसके बाद सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति को लेकर पार्टी नेताओ में उठा मतभेद। ये दोनों बातें ये साबित करती है कि बाहर से एकजुट दिखने का प्रयास कर रही भाजपा अन्दर से बिलकुल टूटने की कगार पर है। यही कारण की पार्टी अब कई आन्तरिक मुद्दों पर बयानबाजी से बच रही है, जिनमें सबसे प्रमुख मुद्दा नरेंद्र मोदी को भाजपा की तरफ से 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट करना है। इस मुद्दे पर कोई भी भाजपा नेता बोलने को तैयार नहीं है। सबका यही कहना कि आने वाले समय के साथ तस्वीर साफ़ हो जाएंगी। जबकि नरेद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद पर प्रोजेक्ट करने की राह इतनी आसान नहीं लगती क्योंकि पार्टी के अन्दर ही मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत किये जाने हेतु मतैक्य नहीं दिखाई पड़ता और भाजपा नेतृत्व इस बात को अच्छी तरह से समझ भी रहा है कि अगर अभी से मोदी मसले पर बयानबाजी शुरू हुई तो पार्टी के कुछ नेताओं से लेकर सहयोगी दल तक इस मुद्दे पर भड़क सकते हैं, जो 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को केंद्र की सत्ता तक पहुंचाने में निश्चित रूप से बाधक होंगे और इसीलिए पार्टी के वरिष्ठ नेतागण इस मुद्दे पर रहस्यमयी चुप्पी साधे हुए है। पर भाजपा की यही चुप्पी पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं में 2014 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर उलझने बढ़ा रही है। जिसकी बानगी इन दिनों उत्तर प्रदेश भाजपा में देखने को मिल रही है।

अभी पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव 2014 की तैयारियों के लेकर भाजपा कोर कमेटी की बैठक बुलाई गयी। इस बैठक में शामिल ज्यादतर नेताओ की दिलचस्पी लोकसभा चुनाव की तैयरियो से ज्यादा अपनी-अपनी संसदीय चुनाव क्षेत्र को बदलने में दिखी। हर नेता इस जुगाड़ में दिखा कि किस तरह शीर्ष नेतृत्‍व को अपनी मनचाही लोकसभा सीट के लिए मनाया जाया। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि आखिर वो क्या कारण कि नेता अपने अपने चुनाव क्षेत्र को बदलने के लिए आतुर दिख रहे हैं? इसका जवाब भी पार्टी के कुछ नेता दबे मुंह देते हैं। इन नेताओं का कहना है इस स्थिति के लिए शीर्ष नेतृत्व जिम्मेदार है। नेतृत्‍व ने लोकसभा चुनाव की तैयारियों के लिए सभी प्रदेश इकाइयों को तो निर्देश जारी कर दिया है पर खुद उसने लोकसभा चुनावों के तमाम मुद्दों के सम्बन्ध में तस्वीर साफ़ नहीं की, जिससे राज्य के नेताओं में असमंजस की स्थिति है। इन्हीं कारणों से व राज्य भाजपा इकाई की आपसी गुटबाजी तथा आन्तरिक कमजोरियों की वजह से प्रदेश भाजपा भ्रष्टचार, महंगाई, सांप्रदायिक दंगे आदि पर प्रदेश की जनता को साथ लेकर कोई सार्थक आन्दोलन नहीं कर पा रही है तथा राज्य की सपा सरकार के विरुद्ध, मुख्य विपक्षी राष्ट्रीय पार्टी होते हुए भी अपने को जनता के बीच में मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में स्थापित नहीं कर पा रही है। ऐसी स्थिति में राज्य का भाजपा नेतृत्व ये नहीं समझ पा रहा है कि हम किन मुद्दों के साथ जनता के बीच जाएँ।

इसके अतरिक्त दो बातें और है जो ऐसी स्थिति के लिए कारक बनती जा रही हैं। पहली ये कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को लेकर पार्टी का रुख का साफ़ न होना और दूसरा ये कि राज्य में लगातार पार्टी का खिसकता जनाधार। ये वो दो बातें जिनके चलते राज्य-भाजपा में हल-चल की स्थिति बनी हुई है। चूँकि अभी तक के लोकसभा चुनाव में उतरने वाले नेताओं को ये विवश था कि वो पार्टी के जनाधार के बल पर लोकसभा चुनाव की नैय्या को पार लगा लेंगे इसलिए कोई भी नेता बहुत ज्यादा अपनी लोकसभा सीट बदलने के लिए लालयित नहीं दिखता था। पर इस बार के चुनावों को लेकर तस्वीर बदली हुई है। अब कोई भी नेता आश्वस्त नहीं है कि वो पार्टी के जनाधार के दम पर अपनी सीट निकाल लेगा इसीलिए हर नेता अपने लिए सुरक्षित सीट तलाश रहा है। चूँकि अभी तक पार्टी ने इस बात को स्पष्ट नहीं किया है कि नरेद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे या नहीं। हर नेता उन लोकसभा सीटों के प्रति ज्यादा लालायित है जो हिन्दू बहुल हैं। सभी जानते हैं कि यदि मोदी पीएम पद के दावेदार हुए तो मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से सीट निकाल पाना मुस्किल होगा। यही कारण की लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर होने वाली बैठके पार्टी नेताओं की निजी बैठकें बन जाती हैं।

इन नेताओ का कहना है कि यदि जल्दी ही शीर्ष नेतृत्‍व ने लोकसभा चुनाव को लेकर अपने रुख को साफ़ नहीं किया तो स्थिति और गंभीर हो जाएगी और चुनावी तैयारियों को लेकर होने वाली प्रत्येक बैठक निजी स्वार्थों के पूर्ति के लिए होने वाली बैठकें मात्र रह जाएगी। परिणाम स्वरुप 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को एक बार फिर सत्ता से हाथ धोना पड़ेगा। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा पार्टी का आगमी संभावित प्रधानमंत्री पद के संदर्भ में अपने पत्ते न खोलना, हो सकता हो उनकी किसी सोची समझी रणनीति का हिस्सा हो किन्तु ये रहस्यमयी स्थिति राज्य भाजपा नेताओं की बेचैनी का कारण बनी हुई है और ये बेचैनी ही भाजपा के विजन लोकसभा चुनाव 2014 के लिए घातक साबित हो सकती हैं।

लेखक अनुराग मिश्र स्‍वतंत्र पत्रकार हैं.

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