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सामंतवाद, भ्रष्टाचार और नौकरशाही से पीडि़त हैं

प्रगतिशील लेखक संघ का 15वां राष्ट्रीय सम्मेलन गुरुवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के वनस्पति विभाग के सम्मेलन कक्ष में आरंभ हो गया। सम्मेलन की शुरुआत जनगीतों से हुई। सम्मेलन में देश भर से आए तकरीबन 400 प्रतिनिधियों के अलावा इजिप्ट, जापान और पाकिस्तान के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। पहले दिन उद्घाटन सत्र की शुरुआत अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नामवर सिंह के भाषण से हुई। ‘‘शांति और सहयोग के लिए लेखन’’ विषय पर केंद्रित इस सत्र का विषय प्रवेश वरिष्ठ लेखक डा. असगर अली इंजीनियर ने किया जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रलेसं के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. नामवर सिंह ने की। कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि मिस्र के विद्वान हेल्मी हदीदी मौजूद थे। कार्यक्रम में दिल्ली प्रलेसं के अध्यक्ष विश्वनाथ त्रिपाठी, सुप्रसिद्ध आलोचक खगेंद्र ठाकुर, दलित चिंतक प्रोफेसर तुलसीराम, पाकिस्तान के प्रतिनिधि अयाज बाबर और जापान से अकियो हागा ने शिरकत की।

<p>प्रगतिशील लेखक संघ का 15वां राष्ट्रीय सम्मेलन गुरुवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के वनस्पति विभाग के सम्मेलन कक्ष में आरंभ हो गया। सम्मेलन की शुरुआत जनगीतों से हुई। सम्मेलन में देश भर से आए तकरीबन 400 प्रतिनिधियों के अलावा इजिप्ट, जापान और पाकिस्तान के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। पहले दिन उद्घाटन सत्र की शुरुआत अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नामवर सिंह के भाषण से हुई। ‘‘शांति और सहयोग के लिए लेखन’’ विषय पर केंद्रित इस सत्र का विषय प्रवेश वरिष्ठ लेखक डा. असगर अली इंजीनियर ने किया जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रलेसं के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. नामवर सिंह ने की। कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि मिस्र के विद्वान हेल्मी हदीदी मौजूद थे। कार्यक्रम में दिल्ली प्रलेसं के अध्यक्ष विश्वनाथ त्रिपाठी, सुप्रसिद्ध आलोचक खगेंद्र ठाकुर, दलित चिंतक प्रोफेसर तुलसीराम, पाकिस्तान के प्रतिनिधि अयाज बाबर और जापान से अकियो हागा ने शिरकत की।

प्रगतिशील लेखक संघ का 15वां राष्ट्रीय सम्मेलन गुरुवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के वनस्पति विभाग के सम्मेलन कक्ष में आरंभ हो गया। सम्मेलन की शुरुआत जनगीतों से हुई। सम्मेलन में देश भर से आए तकरीबन 400 प्रतिनिधियों के अलावा इजिप्ट, जापान और पाकिस्तान के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। पहले दिन उद्घाटन सत्र की शुरुआत अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नामवर सिंह के भाषण से हुई। ‘‘शांति और सहयोग के लिए लेखन’’ विषय पर केंद्रित इस सत्र का विषय प्रवेश वरिष्ठ लेखक डा. असगर अली इंजीनियर ने किया जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रलेसं के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. नामवर सिंह ने की। कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि मिस्र के विद्वान हेल्मी हदीदी मौजूद थे। कार्यक्रम में दिल्ली प्रलेसं के अध्यक्ष विश्वनाथ त्रिपाठी, सुप्रसिद्ध आलोचक खगेंद्र ठाकुर, दलित चिंतक प्रोफेसर तुलसीराम, पाकिस्तान के प्रतिनिधि अयाज बाबर और जापान से अकियो हागा ने शिरकत की।

भारतीय जन नाट्य संघ, इप्टा के महासचिव जितेंद्र रघुवंशी ने प्रलेसं के 15वें राष्ट्रीय सम्मेलन के मौके पर इप्टा और प्रलेसं के पुराने रिश्तों को याद किया। उन्होंने नए लेखकों से अपील की कि वे रंगमंच से जुड़े प्रतिबद्ध साथियों के लिए नए गीत और नाटक आदि का सृजन करें। इस मौके पर जन संस्कृति मंच के महासचिव प्रणय कृष्ण का लिखित संदेश पढ़ा गया। मंच संचालन प्रलेसं के राष्ट्रीय महासचिव अली जावेद ने किया। अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रो तुलसीराम ने कहा कि पुरातन विचारधाराएं जब राजनीति पर हावी होती हैं, तो लेखन भी उससे प्रभावित होता है। जातिवाद के नए सिरे से सिर उठाने के साथ ही उसके नायक भी उभरे हैं। जातीय सत्ता के नारे के कारण स्पर्धात्मक राजनीति तेज हुई, जिसके खतरे आज सामने हैं। सम्मेलन के दूसरे सत्र में ‘‘शांति और सौहार्दपूर्ण विश्‍व में लेखक की भूमिका’’ विषय पर प्रगतिशील लेखकों ने अपने विचार व्यक्त किए।

विश्‍वनाथ त्रिपाठी ने कहा कि कलाएं शांति और सौहार्द की संवाहक होती हैं, इसलिए लेखकों की खासतौर से विरासत ही शांति और सौहार्द की रही है। शांति और सौहार्द की विरोधी शक्तियां सबसे पहले भाषा और संस्कृति पर ही चोट करती हैं। इन्हें बचाने के लिए एकजुट होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि पूंजीवाद को तेज रफतार चाहिए होती है, वह सड़क से लेकर बाजार तक तेजी चाहता है। यह तेजी नई चीजें भी पैदा करती है, लेकिन नयापन आधुनिकता का पर्याय नहीं होता। मूल्यों के साथ आने वाला नयापन आधुनिकता है। उन्होंने कहा कि विकल्प नहीं होगा, तो अतिवाद फैलेगा। अतिवाद सत्ता के हित में होता है। उन्होंने कहा कि हमें अतिवादियों के उद्देश्‍य से कोई विरोध नहीं है, उनके तौर तरीकों से विरोध है। केरल से आए केपी राम नूनी ने कहा कि मलयालम साहित्य की धारा शुरुआत से ही साम्राज्यवाद विरोधी रही है। बीच में भटकाव आया लेकिन आज फिर बाजारवाद और नव साम्राज्यवाद के खिलाफ यह धारा अपना काम कर रही है। महाराष्ट्र से आए श्रीपाद जोशी ने कहा कि सांस्कृतिक वर्चस्ववाद का चेहरा बदल रहा है। भूमंडलीकरण के बाद वर्चस्ववाद का चेहरा भी बदल गया है। इसके साथ ही वर्ग भी नए सिरे से बन रहे हैं, लेकिन यह सत्ता के पक्ष में हैं। ब्राहमणवाद के विरोध में जो लोग सामने आए थे, वे भी सांस्कृतिक वर्चस्ववाद की नीतियां बना रहे हैं।

कोलकाता से आए गीतेश शर्मा ने कहा कि साम्राज्यवाद के विरोध के एक पक्ष से बदलाव नहीं होगा, हमें अपने भीतर की खामियों को भी देखना होगा। हम सामंतवाद, भ्रष्टाचार और नौकरशाही से पीडि़त हैं, जो साम्राज्यवाद से भी ज्यादा शक्तिशाली है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और हिन्दुस्तान में एक जैसे हालात हैं, दोनों ही देशों में सांप्रदायिकता के खिलाफ दोहरी मानसिकता से खड़ा हुआ जा रहा है। बहुसंख्यक धार्मिकता का विरोध करते हुए अल्पसंख्यक कट्टरता की ओर भी ध्यान देना चाहिए। पंजाब के रजनीश बहादुर ने कहा कि लेखकों के सामने चुनौतियां हैं, और वे उसका मुकाबला भी कर रहे हैं। पंजाब में खालिस्तान मूवमेंट का विरोध करने वालों में वाम पक्ष सबसे आगे था, लेकिन उसके बाद लेखकों ने ही अलगाववाद का विरोध किया था। उड़ीसा से आए एसबी कार, शाहिना रिजवी, व्ही मोहनदास, बंगाल से कुसुम जैन, पंजाब के जोगिंदर अमल, तमिलनाडु के पुन्नीलम ने भी सम्मेलन को संबोधित किया। दूसरे सत्र का संचालन श्री राकेश ने किया। पहले दिन के तीसरे सत्र में विभिन्न राज्यों से आए कवियों, शायरों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। काव्यपाठ एवं मुशायरे की अध्यक्षता चैथीराम यादव ने की, जबकि संचालन विनीत तिवारी ने किया।

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