वर्धा : महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के प्रतिकुलपति व नामचीन साहित्यकार प्रो.ए.अरविंदाक्षन को हिंदी साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान देने के लिए मीरा स्मृति सम्मान 2011 से सम्मानित किए जाने की घोषणा मीरा फाउण्डेशन के अध्यक्ष सतीश चन्द्र अग्रवाल ने की है। मीरा फाउण्डेशन और साहित्य भंडार, इलाहाबाद के संयुक्त तत्वाधान में दिए जाने वाले इस सम्मान के लिए ज्यूरी के रूप में दूरदर्शन केंद्र से संबंद्ध रहे डॉ.अशोक त्रिपाठी व नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नीकल टीचर्स एण्ड रिसर्च के डॉ.विजय अगवाल ने प्रो.अरविंदाक्षन को चुना।
आगामी 07 अगस्त को इलाहाबाद के उत्तर-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र में उन्हें शॉल, श्रीफल व सम्मान चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया जाएगा। मीरा समृति सम्मान दिए जाने की घोषणा पर विश्वविद्यालय परिवार ने प्रो. अरविंदाक्षन को बधाई व शुभकामनाएं दी है। विश्वविद्यालय के कुलपति व वरिष्ठ साहित्यकार विभूति नारायण राय ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि प्रो.ए.अरविंदाक्षन हमारे समय और भाषा के महत्वपूर्ण रचनाकार हैं। उनकी रचनाओं में चिरंतन के साथ वर्तमान अपनी पूरी सजधज के साथ मौजूद हैं। उन्हें यह सम्मान मिलना न केवल उनकी सृजन की पहचान के लिए महत्वपूर्ण हैं अपितु हमारे विश्वविद्यालय के लिए भी यह एक गौरवपूर्ण क्षण है। मीरा फाउंडेशन के अध्यक्ष सतीश चन्द्र अग्रवाल ने बताया कि हम प्रतिवर्ष साहित्य, कला तथा मीडिया के क्षेत्रों में उत्कृष्ट हस्ताक्षरों को मीरा स्मृति सम्मान से आभूषित करते हैं। इस वर्ष यह सम्मान साहित्यकार अमरकांत, प्रो.ए.अरविंदाक्षन, जगन्नाथ पाठक, उषा यादव, गिरीश चन्द्र पाठक को दिया जा रहा है। यह सम्मान 2008 से दिया जा रहा है। वर्ष 2010 में डॉ.दूधनाथ, कमलेश दत्त त्रिपाठी, निशिकांत, चित्रा मुदगल, ललित सुरजन वर्ष 2009 में प्रो.अविराज राजेन्द्र मिश्र, श्याम विद्यार्थी, नासिरा शर्मा, चन्द्रकांत पाटिल, हरिकृष्ण तैलंग तथा वर्ष 2008 में सीताराम गुप्त, प्रो.सुरेश चन्द्र पाण्डेय, प्रो.राधाकान्त वर्मा, प्रो.एन.आर.फार्रूखी, प्रो.राजलक्ष्मी वर्मा को यह सम्मान प्रदान किया जा चुका है।
गौरतलब हो कि 10 जून 1949 ई. में केरल के पालक्काड जिले में जन्मे प्रो. अरविंदाक्षन ने केरल विवि से एम.ए. व कोच्चीन विवि से पी.एच-डी. की। 1980 से करीब 35 वर्षों के अध्यापकीय अनुभव में वे 30 विद्यार्थियों को पीएचडी करा चुके हैं। हिंदी, मलयालम और अंग्रेजी भाषा के जानकार कवि, आलोचक व अनुवादक के रूप में ख्यातिलब्ध प्रो.अरविंदाक्षन की 50 पुस्तकें रचना संसार में शामिल हैं। उनकी छह कविता संग्रह- बांस का टुकड़ा, घोड़ा, आसपास, सपने सच होते हैं, राग लीलावती, असंख्य ध्वनियों के बीच, आलोचनात्मक ग्रंथ हिंदी में महादेवी वर्मा के रेखाचित्र, अज्ञेय की उपन्यास-यात्रा, समकालीन हिंदी कविता, आधारशिला, कविता का थल और काल, कविता सबसे सुंदर सपना है, रचना के विकल्प, साहित्य संस्कृति और भारतीयता, प्रेमचंद:भारतीय कथाकार, समकालीन कविता की भारतीयता व मलयालम में कथयुटे रागविस्तारम, कवितयिले स्थलकालंगल, वायना, महत्वत्तिन्टे संकीर्तनम्, संपादित ग्रथों में आधुनिक मलयालम कविता, आकलन, कथाशिल्पी, कथाशिल्पी गिरिराज किशोर, निराला:पुनर्मूल्यांकन, प्रेमचंद के आयाम, कवितयुडे पुतिय मुखल (मलयालम), साइंस कम्यूनिकेशन(अंग्रेजी), आलोचना और संस्कृति, कविता आज, महादेवी वर्मा रचना संसार में शामिल हैं। प्रो.अरविंदाक्षन सांस्कृतिक दूत के रूप में जाने जाते हैं क्योंकि उन्होंने एक भाषा के साहित्य को अनुदित कर दूसरी भाषा में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है। उन्होंने मलयालम साहित्य से अनुवाद कर हिंदी के पाठकों को दी जिनमें प्रमुख हैं- भारतपर्यटनम्, कोच्चि के दरख्त, प्रेम:एक एलबम्, मलयालम की स्त्री कविता, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता, कोमल गांधार, अमेरिका: एक अद्भुत दुनिया। कोंकणी से हिंदी में अनुवादित अक्षर व बंगला से मलयालम में अनुवादित एवं इन्द्रजीत उनके रचना संसार में शामिल हैं। हिंदी जगत के ख्यातिलब्ध प्रो.अरविंदाक्षन 14 पुरस्कारों से विभूषित हैं, विशेषकर वे 2008 में गंगाशरण सिंह पुरस्कार तथा विश्व हिंदी सम्मेलन, 2008 में विशिष्ट हिंदी सेवी पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं।