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21 साल गुजरे, कब खतम होगा कश्‍मीरी पंडितों का वनवास?

कश्मीर व कश्मीर की समस्याओं के लिए हमारे देश का कथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग निरंतर प्रयास करता रहता हैं। मगर इस प्रकार के बुद्धिजीवी वर्ग के द्वारा कश्मीरी पंडितों के घर वापसी को लेकर न तो किसी प्रकार की मांग उठाई जाती है, न ही कोई संवेदना या प्रतिक्रिया ही सामने आती है। अगर कोई इस प्रकार का प्रयास करता भी है तो उसे सांप्रदायिकता के रंग मे रंग दिया जाता है। भारत जहाँ भगवान श्रीराम को भी 14 वर्ष के वनवास के बाद घर वापसी का सौभाग्य प्राप्त हो गया था। उसी देश में कश्मीरी पंडितों को अपने घर कश्मीर को छोड़े हुए २1 वर्ष बीत गए लेकिन घर वापसी की राह अभी भी अंधकारमय है।

<p>कश्मीर व कश्मीर की समस्याओं के लिए हमारे देश का कथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग निरंतर प्रयास करता रहता हैं। मगर इस प्रकार के बुद्धिजीवी वर्ग के द्वारा कश्मीरी पंडितों के घर वापसी को लेकर न तो किसी प्रकार की मांग उठाई जाती है, न ही कोई संवेदना या प्रतिक्रिया ही सामने आती है। अगर कोई इस प्रकार का प्रयास करता भी है तो उसे सांप्रदायिकता के रंग मे रंग दिया जाता है। भारत जहाँ भगवान श्रीराम को भी 14 वर्ष के वनवास के बाद घर वापसी का सौभाग्य प्राप्त हो गया था। उसी देश में कश्मीरी पंडितों को अपने घर कश्मीर को छोड़े हुए २1 वर्ष बीत गए लेकिन घर वापसी की राह अभी भी अंधकारमय है।

कश्मीर व कश्मीर की समस्याओं के लिए हमारे देश का कथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग निरंतर प्रयास करता रहता हैं। मगर इस प्रकार के बुद्धिजीवी वर्ग के द्वारा कश्मीरी पंडितों के घर वापसी को लेकर न तो किसी प्रकार की मांग उठाई जाती है, न ही कोई संवेदना या प्रतिक्रिया ही सामने आती है। अगर कोई इस प्रकार का प्रयास करता भी है तो उसे सांप्रदायिकता के रंग मे रंग दिया जाता है। भारत जहाँ भगवान श्रीराम को भी 14 वर्ष के वनवास के बाद घर वापसी का सौभाग्य प्राप्त हो गया था। उसी देश में कश्मीरी पंडितों को अपने घर कश्मीर को छोड़े हुए २1 वर्ष बीत गए लेकिन घर वापसी की राह अभी भी अंधकारमय है।

लगभग 7 लाख कश्मीरी परिवार भारत के विभिन्न हिस्सों व रिफ्यूजी कैम्प में शरणार्थियों की तरह जीवन बिताने को मजबूर हैं। कश्मीरी पंडितों को जिस प्रकार एक व्यापक साजिश के तहत कश्मीर छोड़ने पर विवश होना पड़ा था ये जग जाहिर है। आतंकी इस बात को अच्छी तरह समझते थे कि जब तक कश्मीरी पंडित कश्मीर में है, तब तक वह अपने इरादों में कामयाब नहीं हो पायेंगे इसलिए सबसे पहले इन्हें निशाना बनाया गया। 90 के दशक में आईसआई ने एक व्यापक साजिश के तहत कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से बाहर निकालने का षड्यंत्र रचा। उनका मानना था कि एक बार यह कश्मीर से बाहर निकल जायें तो फिर कश्मीर पर कब्जा आसान हो जायेगा। इस योजना के तहत एक वर्ग के तौर पर कश्मीरी पंडित पहला निशाना बनाया गया। कश्मीरी पंडित घाटी में भारतीय पक्ष के सबसे मजबूत स्तंभ माने जाते थे। शेख अब्दुल्ला ने अपनी आत्मकथा आतिश-ए-चिनार में इन्हें दिल्ली के पांचवें स्तंभकार और जासूस कहकर संबोधित किया था। पंडित समुदाय के प्रमुख सदस्यों का विशेषतौर पर नरसंहार किया गया। आखिरकार अपने जान बचाने के लिए कश्मीरी पंडितों को अपनी जन्म भूमि को छोड़कर शरणार्थियों की तरह जीवन बिताने के लिए मजबूर होना पड़ा। कश्मीर के धरती पर जितना हक बाकी लोगों का है उतना ही हक इन कश्मीरी पंडितों का भी है।

भारत में कथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग व तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले लोकतंत्र के मंदिर संसद पर हमले के दोषी अफज़ल के माफी की बात तो बड़ी जोर-शोर से रखते हैं, लेकिन कश्मीरी पंडित के घर वापसी के मसले पर इनकी कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आती है। राज्य व केन्द्र सरकार यह दावा तो करती है कि कश्मीर अब कश्मीरी पंडितों के लिए खुला है और वह चाहे तो घर वापसी कर सकते हैं। इन दावों में कितनी सचाई है यह किसी से छुपा हुआ नहीं है, अगर यह घर वापसी कर भी ले तो जाये कहां? क्योंकि उनका अधिकतर आशियाना आंतिकयों ने उजार दिया है। सबसे बड़ी समस्‍या यह कि उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा? 7 मई को बीबीसी हिन्दी में छपे एक लेख के अनुसार जिन नौ परिवारों ने घर वापसी की थी, उनका अनुभव अच्छा नहीं रहा, उनका कहना है कि कश्मीर के अधिकारी उन्हें वहाँ फिर से बसने में हतोत्साहित करते हैं. वे अपने गाँवों में फिर से घर बनाना चाहते हैं, लेकिन सरकार बस स्टैंड बनाने के लिए उनसे ज़मीन छीन रही है। इन सब के अनुभव इस दर्शाता है कि कश्मीर में अभी भी कश्मीरी पंडितों के लिए हालात इस लायक नहीं हुए हैं कि वह अपने घर वापसी सोच सके।

इनका दर्द लगता है शासनकर्ताओं को नज़र नहीं आता शायद इसलिए इनके पुनर्वसन के लिए ठोस प्रयास नहीं किया जा रहा है, लेकिन इनकी उदारता तो देखिये अपने ही देश में शरणार्थियो की तरह जीवन व्यतीत करने के बाद भी भारत में इनकी आस्था कहीं से कमजोर नहीं हुई है। दूसरी तरफ अलगाववादी हैं जिन्हें सरकार के तरफ से हर सुविधाएं प्रदान की जाती है फिर भी वह भारत को अपना देश नहीं मानते और कश्मीर को भारत से अलग करने की साजिश रचते रहते हैं। इसके बाद भी वह कश्मीर में शान के साथ रहते हैं। कश्मीरी पंडितों को नाराजगी सिर्फ सरकार से नहीं है। उनकी आंखें कुछ सवाल हमसे भी पूछती हैं कि क्या हमें भी उनका दर्द नहीं दिखाई देता? अगर दिखता है तो हम मौन क्यों हैं, इन सवालों का जवाब अपने अन्दर खोजना होगा कि कश्मीरी पंडितों को हमारे सदभावना की नहीं हमारे प्रयासों की आवश्कता है। डल झील व गुलमर्ग के फूलों की खूबसूरती बिना कश्मीरी पंडितों के अधूरी है। कश्मीर फिर से सही मायने धरती का स्वर्ग तभी बन पाएगा जब कश्मीरी पंडितों की सुरक्षित घर वापसी हो जाएगी और घाटी एक बार फिर कश्मीरी पंडितों के मन्त्र उचारण से गूंजने लगेगी।

लेखक नवनीत पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं.

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