नई दिल्ली. केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में सभी वर्गों के लोगों के साथ बातचीत के लिये 13 अक्तूबर 2010 को वार्ताकारों का समूह नियुक्त किया था। इस समूह में राधा कुमार, एमएम अंसारी और दिलीप पाडगांवकर को सदस्य बनाया गया था. इस समूह ने राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर जम्मू-कश्मीर की सरकार, राजनीतिक दलों तथा संबंधित नागरिक वर्ग के साथ व्यापक विचार विमर्श किया. उनकी रिपोर्ट 12 अक्तूबर 2011 को सौंप दी गयी थी. सरकार ने अभी रिपोर्ट पर कोई निर्णय नहीं लिया है. आज यह रिपोर्ट जारी कर दी गयी. गृह मंत्रालय ने दावा किया है कि अब इस रिपोर्ट पर पूरे देश में बहस होगी और उसके बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा. हालांकि यह अजीब बात है पिछले कई महीनों से यह रिपोर्ट सरकार के पास थी लेकिन इसे संसद के सत्र के दौरान जारी नहीं किया गया. अगर सरकार ने ऐसा किया होता तो इसपर बेहतर बहस हो सकती थी.
वार्ताकारों के समूह ने बहुत दिलचस्प सच्चाई को उजागर किया है. उनका कहना है कि कश्मीर में समस्या के हल के लिए एक संवैधानिक कमेटी का गठन किया जाना चाहिए, जिसमें कश्मीर के हवाले से केंद्र राज्य संबंधों पर फिर से नज़र डाला जाना चाहिए. इस समूह का दावा है कि कुछ ऐसे बिंदु हैं जिन पर पूरी तरह से आम सहमति है. मसलन जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक हल निकाला जाना चाहिए और उसके लिए केवल बातचीत का रास्ता ही अपनाया जाना चाहिए. समूह ने कहा है कि जो लोग मुख्यधारा में नहीं हैं उनसे भी बातचीत की जानी चाहिये. इस बात पर भी सहमति है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिना अंग है और उसको उसी तरह से बने रहना चाहिए लेकिन इस बात पर राज्य में चिंता जताई गयी कि संविधान के अनुच्छेद ३७० को धीरे-धीरे ख़त्म कर दिया गया है और उसको अपनी सूरत में बहाल किया जाना चाहिए.
इस समूह ने साफ़ कहा है कि जो लोग राज्य में व्याप्त हिंसा के कारण अपना घर-बार छोड़ने के लिए मजबूर हो गए थे उनको हर हाल में अपने घरों को सुरक्षा में वापस भेजा जाना चाहिए और उनकी शिरकत के बिना कोई भी हल टिकाऊ नहीं होगा. राज्य के आर्थिक विकास के लिए केंद्र सरकार को विशेष पैकेज देना चाहिए. नियन्त्र रेखा और उसपार के लिए सामान और लोगों के आवाजाही को भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए. समूह ने अपने सुझावों में कहा है कि लोग पिछले २० साल से जारी आतंक से ऊब चुके हैं इसलिए प्रशासन और कानून के राज की लालसा सब के मन में है. हालांकि आम तौर पर लोग मानते हैं कि सरकारें अपना काम ठीक से करने में नाकाम रही हैं. सरकारें गैर ज़िम्मेदारी से काम कर रही हैं. भरोसा स्थापित करने के तरीकों (सीबीएम) को खूब लागू किया जा रहा है लेकिन समस्या के टिकाऊ हल के लिए कोई भी कोशिश नहीं की जा रही है. इसके लिए राजनीतिक स्तर पर बातचीत की ज़रूरत है और उसे फ़ौरन शुरू किया जाना चाहिए.
लेखक शेष नारायण सिंह वरिष्ठ पत्रकार तथा स्तम्भकार हैं. वे एनडीटीवी, जागरण, जनसंदेश टाइम्स समेत कई संस्थानों में वरिष्ठ पदों पर रह चुके हैं. इन दिनों दैनिक देश बंधु को वरिष्ठ पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं.