वन रैंक वन पेंशन आज एक ऐसा मुद्दा बन चुका है जैसा 2011 में अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन या जनलोकपाल वाला बना था। बस फर्क इतना है कि उस समय अन्ना हजारे के साथ देश का एक बड़ा वर्ग युवा भी साथ था, जो कि इस समय इन सैनिकों के साथ नहीं है। वन रैंक वन पेंशन योजना लागू करने की जिद पर दो पूर्व सैन्य अधिकारियों ने आमरण अनशन शुरू कर दिया है जो उतना ही प्रभावशाली है जितना कि अन्ना का आंदोलन था। यूपीए सरकार के आठवें वर्ष में अन्ना ने यूपीए को हिला कर रख दिया था, ठीक वैसे ही ये सैन्य अफसर एनडीए सरकार को हिलाने का दम रखते हैं।
वन रैंक वन पेंशन योजना लागू होने से सेवानिवृत्त हो चुके और सेवानिवृत्त होने वाले सैन्य अधिकारियों की पेंशन समान हो जाएगी। जैसे 2006 से पहले सेवानिवृत्त हुए मेजर जनरल की पेंशन 30000 रुपए है जबकि आज कोई कर्नल सेवानिवृत्त होगा तो उसे 34000 रुपए पेंशन मिलेगी। जबकि मेजर जनरल, कर्नल से दो रैंक ऊपर का अधिकारी होता है। इसलिए अलग अलग समय पर सेवानिवृत्त हुए एक ही रैंक के दो फौजियों को समान पेंशन देने की मांग की जा रही है।
वन रैंक वन पेंशन की मांग आज के समय से ही नहीं बल्कि कई सालों से की जा रही है। 2008 में सेवानिवृत्त हुए सैनिकों ने इंडियन एक्स सर्विसमैन मूवमेंट (आईएसएम) नाम से संगठन बनाकर इसके लिए संघर्ष जारी कर दिया था। इस योजना का वादा नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पूर्व सितंबर 2013 की चुनावी रैली में भी किया था। जुलाई 2014 में एनडीए ने अपने पहले बजट में इस योजना के लिए 1000 करोड रुपए रखे थे। अपने दूसरे बजट में भी वित्तमंत्री अरुण जेटली ने डिफेंस पेंशन का बजट 51000 करोड़ से बढाकर 54500 करोड़ रुपए भी कर दिया था। लेकिन इसके बावजूद यह योजना अभी तक सिर्फ फाइलों में ही है। हालांकि इस योजना को लागू करना इतना आसान नहीं है जितना कि लगता है। यदि इसे लागू भी कर दिया जाता है तो एक तबक़ा तो मोदी सरकार से खुश हो जाएगा लेकिन केंद्र के बाकी अलग अलग क्षेत्रों में काम कर रहे नौकरशाह इससे नाराज हो सकते हैं और हो सकता है कि वे भी इसी तरह की कोई योजना लागू करने की मांग करने लगे।
प्रियंक द्विवेदी
भोपाल
priyank dwivedi
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