राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार के तले लाना हमारी सरकार को बिल्कुल भी पसंद नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने जब सरकार से पूछा कि इस बारे में आपको क्या कहना है तो सरकार ने कहा कि यदि देश के राजनीतिक दल इस अधिकार के तले रख दिए गए तो वे ठीक से काम नहीं कर पाएंगे। विरोधी दल एक-दूसरे के खिलाफ सूचनाएं निकलवा कर उनका जीना हराम कर देंगे। सरकार ने ठीक कहा है लेकिन काफी कम कहा है। मैं यह मानता हूं कि यदि अनेक सरकारी विभागों की तरह इन दलों के बारे में भी लोगों को सब बातें मालूम पड़ने लगें तो ये दल काम करना ही बंद कर देंगे। इनकी दुकानों पर ताले पड़ जाएंगे। हमारे राजनीतिक दल ही भ्रष्टाचार के सबसे बड़े अड्डे हैं। सरकार में जितना भ्रष्टाचार होता है, उसकी जड़ इन दलों में ही होती हैं। आजकल राजनीति का धंधा सभी धंधों में सबसे बड़ा धंधा है। इसमें करोड़ों-अरबों रुपया रोज आता है और रोज जाता है। कोई हिसाब रखा नहीं जाता। न खाता, न बही। जो नेता कह दे, वही सही।
दलों के नेता मंत्रियों, सांसदों ओर विधायकों से भी बाकायदा वसूली करते हैं। ये लोग सरकारी अफसरों से ‘चौथ’ वसूलते हैं। अफसर भी बेखौफ होकर हाथ साफ़ करते हैं। सारी व्यवस्था में भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार बन जाता है। ऐसी स्थिति में इन दलों के संपूर्ण आय-व्यय को सार्वजनिक करना भारतीय राजनीति के शुद्धिकरण का पहला उपाय है। राजनीतिक दलों को ‘सार्वजनिक संस्थान’ (पब्लिक अथारिटी) नहीं मानना सबसे बड़ा ढोंग है। सरकारी विभागों से भी ज्यादा सार्वजनिक कोई है तो ये राजनीतिक दल हैं। इनकी वित्तीय स्थिति ही नहीं, इनकी आंतरिक बहस, निर्णय और उसकी प्रक्रियाएं भी सार्वजनिक की जानी चाहिए। इनमें आंतरिक लोकतंत्र को बढ़ावा तभी मिलेगा। अभी हमारे दल प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों की तरह काम करते हैं। जैसे कंपनियां आयकर विभाग को अपना झूठा-सच्चा हिसाब दे देती हैं, ये दल भी दे देते हैं। सूचना के अधिकार से सभी दलों को बड़ा परहेज है, क्योंकि सभी दल भ्रष्टाचार के पहाड़ पर सवार हैं। सिर्फ ‘आम आदमी पार्टी’ अपवाद है।
यह कहना भी पर्याप्त नहीं है कि चुनाव आयोग इन दलों पर निगरानी रखता है। आयकर विभाग और चुनाव आयोग को कौन चलाते हैं? अफसर लोग! उनकी क्या हैसियत है कि वे इन नेता नामक निरंकुश एरावतों पर अकुंश लगाएं? इन दलों की सभी गतिविधियों– आय-व्यय, पार्टी-चुनाव, पार्टी-निर्णय, पार्टी-बहस आदि का यदि पता सीधा जनता को चलता रहे तो ये पार्टियां शुद्ध, स्वस्थ और मजबूत होंगी और भारत का लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा ही नहीं, सबसे अच्छा लोकतंत्र भी बन जाएगा।
लेखक डॉ. वेदप्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार और चिंतक हैं.