…पर नामवरजी नहीं आये! पिछली 25 अगस्त को पुरुषोत्तम@60 कार्यक्रम में नामवरजी को आशीर्वाद देने आना था, लेकिन वे नहीं आये । हिंदी-साहित्य में यह विवाद गहरा गया है। रूस में रहने वाले एक कवि और कोश-विशेषज्ञ ने जब यह बात रेखांकित की तो आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। पुरुषोत्तम ख़ेमे ने अपनी इज़्ज़त बचाने के लिये कहना शुरू किया कि नामवरजी बीमार थे और बुख़ार में तप रहे थे, इसलिये आशीर्वाद देने नहीं आये। जबकि विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि नामवरजी स्वस्थ थे लेकिन सोचसमझकर इस तमाशे में नहीं आये।
इस घटनाक्रम से नामवरजी के उत्तराधिकार का पुराना विवाद फिर नया हो गया है। ध्यान रहे कि नामवर की मूल-गादी पर पुरुषोत्तम अग्रवाल का दावा बरसों से है। जबकि सच्चाई यह है कि नामवर के उत्तराधिकार पर नज़र गड़ाने वाली एक पूरी पीढ़ी परमानन्द श्रीवास्तव समेत स्वर्गवासी हो चुकी है और बचे-खुचे जाने को तैयार है। उसके बाद की पीढ़ी में नामवरजी के उत्तराधिकार के तीन या चार प्रमुख दावेदारों में पुरुषोत्तम अग्रवाल, प्रोफ़ेसर रामबक्स, गोपेश्वर सिंह और अपूर्वानंद प्रमुख हैं। ये बरसों से आस लगाये बैठे हैं और हर दिन वृद्धावस्था की ओर बढ़ रहे हैं। यह भी सुनने में आ रहा है कि नामवरजी ने अपनी वसीयत लिख दी है और अपनी मूल-गादी का उत्तराधिकारी किसी कवि को बनाया है। जो हो, लेकिन नामवरजी के उक्त आयोजन में नहीं आने से पुरुषोत्तम ख़ेमा सकते में है। पुरुषोत्तम अग्रवाल की हिंदी-संसार में इसलिये भी निंदा हो रही है कि जब गुरु बुखार में तप रहा था, वे लाल कुरता पहनकर, क़ज़ा फाउंडेशन की काली-कमाई से, अपने जन्मदिन का जश्न मना रहे थे!
नामवर का उत्तराधिकार…
पलक झपकते उठ जायेगा
दो दिन का यह मेला
गुरु की करणी गुरु जायेगा
चेले की करणी चेला!
साहित्यकार कृष्ण कल्पित के फेसबुक वॉल से.