कम्युनिस्ट नेता गोविंद पनसारे की हत्या के सिलसिले में कुख्यात हुई ‘सनातन संस्था’ के बारे में अब अजीबो-गरीब तथ्य सामने आ रहे हैं। इसके संस्थापक जयंत बालाजी आठवले के बारे में इस संस्था की वेबसाइट ने ऐसी-ऐसी गप्प हांकी हैं कि जिसे सुनकर कोई भी मसखरा अपनी मसखरी तक भूल सकता है। यह वह संस्था है, जिसके सदस्यों पर आतंकी कार्रवाइयां करने के आरोप हैं और जो ‘हिंदुत्व’ की सबसे बड़ी संरक्षक होने का दावा करती है।
पहले ज़रा गप्पे सुनिए। आठवले के केशों का रंग सुनहरा होता जा रहा है। उनके शरीर में अनेक दैवी परिवर्तन हो रहे हैं। उनके शरीर से दिव्य कण निकलते हैं, उनमें जबर्दस्त खुशबू होती है। उनके नाखूनों, जुबान और पेशानी पर ओम (ऊँ) के चिन्ह उभर आए हैं। वे शौचालय में जिस ब्रश का इस्तेमाल करते हैं, उसका रंग बदल गया है। वह गुलाबी हो गया है। आठवलेजी तो भगवान के साक्षात अवतार हैं। वे विष्णु के अवतार हैं। उनके शरीर पर कमल और त्रिशूल भी उभर आए हैं। वे तो भगवान ही हैं। वे ‘हिंदू राष्ट्र’ की स्थापना करेंगे। उनकी वेबसाइट उन्हें दूसरा विवेकानंद कहती है और उन्हें भारत का भाग्य-विधाता मानती है। उनके बारे में यह भी बताया गया है कि वे पहले लंदन में सम्मोहन-विद्या और सम्मोहन-चिकित्सा का भी अभ्यास करते रहे थे।
मुझे लगता है कि आठवले की यही कला उनके काम आ रही है। सम्मोहन-विद्या उन लोगों पर तुरंत असर करती है, जो मंदबुद्धि, भावुक और अनुभवहीन होते हैं। ऐसे नौजवान हर देश में अनगिनत होते हैं। उन्हें अपने जाल में फंसाना आसान होता है। उनसे आप कुछ भी कहलवा सकते हैं या करवा सकते हैं। आठवले अपने आप को सिर्फ भगवान ही कहलवा रहा है। भगवान तो भारत में सैकड़ों हैं। वह चाहे तो खुद को भगवान का बाप भी कहलवा सकता है। इन्हीं अबोध नौजवानों को आप आतंक की भट्ठी में भी झोंक सकते हैं। ऐसा करते समय हिंदुत्व या जिहाद या ईसा की सेना जैसे नामों का सहारा लेना भी जरुरी हो जाता है। इन नामों की आड़ में पाखंड की दुकान को चलाना ज़रा आसान हो जाता है। हिंसा को सही ठहराने में भी इन नामों से मदद मिलती है। वामपंथी, नास्तिक या ‘तर्कवादी’ लोगों की बातें हमेशा सही नहीं होती तथा कई बार वे काफी उत्तेजक भी होती हैं। लेकिन बात को बात से काटा जाना चाहिए या लात से? आप लात चलाते हैं, यही सिद्ध करता है कि आपकी बात में दम नहीं है। आप आदमी को आदमी क्यों नहीं रहने देते? उसे आप भगवान इसीलिए बनाते हैं कि उसकी आदमियत में कुछ कमी है। सत्य को पाखंड का सहारा लेने की जरुरत क्या है?