प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार ‘मन की बात’ कहते हुए तीन महत्वपूर्ण बातें कहीं। एक तो छोटी सरकारी नौकरियों में से मौखिक साक्षात्कार की परंपरा खत्म की जाएगी। दूसरी, लोग अपना सोना बैंकों में जमा कर सकेंगे। उस पर उन्हें ब्याज मिलता रहेगा। तीसरी बात, उन्होंने लोगों से अंगदान की अपील की। उनकी चौथी बात शुद्ध राजनीतिक है। लंदन में डॉ. आंबेडकर के निवास का उद्घाटन करने की। यदि चौथी बात को हम राजनीतिक लटकेबाजी मानकर छोड़ भी दें तो शेष तीन बातें तो गौर करने लायक हैं। जिस भी नौकरशाह ने प्रधानमंत्री को ये बातें सुझाई हैं, वह बधाई का पात्र है।
भारत सरकार की नौकरियों में हर साल लाखों लोगों की भर्ती होती है। सबसे ज्यादा भर्ती निचले पदों पर होती है। ये पद अराजपत्रित होते हैं। लिखित परीक्षा के साथ-साथ मौखिक साक्षात्कार भी होता है। आपकी योग्यता कितनी हो और लिखित परीक्षा भी आपकी ठीक-ठाक हो गई हो लेकिन मौखिक साक्षात्कार में आप अटक गए तो आपकी भर्ती रुक सकती है। मौखिक साक्षात्कार के साथ समस्या यह है कि इसमें जबर्दस्त मनमानी और भ्रष्टाचार होता है। बिचौलिए दलाल आवेदकों से काफी पैसे वसूलते हैं, नौकरी दिलाने के नाम पर। नौकरी मिले या न मिले, उन्हें पैसे तो देने ही पड़ते हैं। इसके अलावा जान-पहचान, रिश्तेदारी, जातिवाद, प्रांतवाद और मजहब भी अपनी भूमिका निभाते हैं। अब यदि 1 जनवरी 2016 से मौखिक साक्षात्कार की परंपरा खत्म हो जाएगी तो यह बड़ा काम होगा।
दूसरी बात भी किसी नौकरशाह के दिमाग की उपज है, क्योंकि मोदी को उसका हिंदी या गुजराती नाम भी पता नहीं है। ‘गोल्ड मोनेटाइजेशन’! याने सोने पर ब्याज! अपना सोना आप बैंक में जमा करें और उसकी जितनी भी कीमत हो, उस पर ब्याज मिलेगा। हो सकता है कि इससे अरबों रु. का सोना बैंकों में जमा हो जाए, जिसका लाभ सरकार पूंजी निवेश करके उठा सकती है लेकिन इसमें दो अड़चने हैं। एक तो देश का ज्यादातर सोना ज़ेवर के रुप में है, जिसे बैंक नहीं लेंगी। दूसरा, लोग अपना कच्चा सोना बैंकों में जमा करके अपने को कालेधन का गुनहगार कहलवाना पसंद नहीं करेंगे। इस मामले में सरकार को ढील जरुर देनी होगी। यदि यह योजना सफल हो गई तो देश का सोया हुआ सोना जाग उठेगा।
अंगदान की अपील बहुत अच्छी और सामयिक है। प्रधानमंत्री इसके लिए बधाई के पात्र हैं लेकिन वे मौका चूक गए। इसकी शुरुआत उन्हें खुद से करनी थी। उसका जादुई असर सारे देश पर होता। लाखों लोग उनकी देखा-देखी अंगदान की घोषणा कर देते। वे सचमुच नेता बन जाते। अभी वे सिर्फ प्रधानमंत्री हैं। उनकी पहली दो बातें प्रधानमंत्री की हैं और तीसरी बात नेता की है। नेता वह होता है, जो ‘नयन’ करे याने अपने आचरण से उदाहरण प्रस्तुत करे।
लेखक डॉ. वेदप्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.