शिवकुमार वशिष्ठ
भरतपुर । क्या 50 साल की उम्र वाला पत्रकार बूढ़ा हो जाता है,यह सवाल मेरे जहन में काफी समय से चल रहा है ।
प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया , जिन्होंने अब पॉलिसी बनाना शुरू कर दिया है कि नए युवकों को ही पत्रकारिता में मौका दिया जाए और 45 साल उम्र पार कर चुके व्यक्ति को घर बैठा दिया जाए अथवा उसे अपने संस्थान में नौकरी नही दी जाए ।
एक पत्रकार जिसने अपनी उम्र के 20 से 25 साल पत्रकारिता के लिये समर्पित कर दिए । घर परिवार की परवाह किये बिना जीवन के अमूल्य समय को पत्रकारिता के लिये कुर्बान कर दिया । पत्रकारिता ही उसकी आजीविका का साधन मात्र हो । जिम्मेदारियों का बोझ और अपने बच्चों के भविष्य को संवारने के लिये आर्थिक व्यवस्था की उसे जब जरूरत हो । उस समय उसे नौकरी से बेदखल कर दिया जाए या फिर बेतहाशा अनुभव होने के बाबजूद भी उसे पत्रकारिता में रोजगार नहीं दिया जाए तो वह कहां जाए । कुंठा ग्रस्त होकर मर मर कर जीने को मजबूर हो जाये लेकिन मीडिया जगत के दिग्गजो ( मालिकों ) को उनकी क्या परवाह । उम्र के करीब 20-25 साल पत्रकारिता में समय निकालकर अपने अनुभव को सुद्रढ़ करने वाले पत्रकार को नए सिरे से कोई काम ढूंढना पड़े और उसके पास पत्रकारिता के सिवाय अन्य कोई अनुभव न हो तो क्या करे । यह सोचनीय बिंदु है ।
कभी उच्च पदों पर बैठे पत्रकारिता क्षेत्र के अधिकारियों ने इस बात पर गौर किया है कि क्या 50 साल की उम्र में कोई बूढ़ा हो जाता है । क्या उसमें पत्रकारिता करने की क्षमता नहीं रहती । क्या उसका परिवार नहीं है । अपने बच्चों को क्या उसे पढ़ाने का अधिकार नहीं है । क्या उसे अपने परिवार का लालन पालन करने का अधिकार नहीं है ।
मेरी यह व्यक्तिगत राय है , अगर आप मेरी इस व्यथा से सहमत हों तो इसे आगे बढ़ाए और पत्रकारिता में नित नए किये जा रहे बदलाव से पत्रकारिता के गिर रहे स्तर को खत्म कराने में सहभागिता बन सकें तो इसे आगे बढ़ाएं ।
शिवकुमार वशिष्ठ,
भरतपुर ( राजस्थान )