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बाबा साहब आंबेडकर के सपनों को वोट की राजनीति ने किया चित्त

बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस आरक्षण की व्यवस्था वह कर रहे हैं, वो आगे चलकर राजनीतिक दलों का सबसे बड़ा हथियार साबित होगा। बाबा साहब का सपना था कि समाज में आर्थिक एवं सामाजिक रूप से दबे-कुचले दलित एवं पिछड़े लोगों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ा जाये और आर्थिक एवं शैक्षिक रूप से उनको सशक्त किया जाये, पर आज राजनैतिक दलों ने आरक्षण को सबसे बड़ा मुद्दा बना लिया है।

<p>बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस आरक्षण की व्यवस्था वह कर रहे हैं, वो आगे चलकर राजनीतिक दलों का सबसे बड़ा हथियार साबित होगा। बाबा साहब का सपना था कि समाज में आर्थिक एवं सामाजिक रूप से दबे-कुचले दलित एवं पिछड़े लोगों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ा जाये और आर्थिक एवं शैक्षिक रूप से उनको सशक्त किया जाये, पर आज राजनैतिक दलों ने आरक्षण को सबसे बड़ा मुद्दा बना लिया है।</p>

बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस आरक्षण की व्यवस्था वह कर रहे हैं, वो आगे चलकर राजनीतिक दलों का सबसे बड़ा हथियार साबित होगा। बाबा साहब का सपना था कि समाज में आर्थिक एवं सामाजिक रूप से दबे-कुचले दलित एवं पिछड़े लोगों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ा जाये और आर्थिक एवं शैक्षिक रूप से उनको सशक्त किया जाये, पर आज राजनैतिक दलों ने आरक्षण को सबसे बड़ा मुद्दा बना लिया है।

बाबा साहब ने आरक्षण को हर दस वर्ष पर समीक्षा का सुझाव दिया था और वो इसलिए कि यह समझा जा सके कि इसका फायदा किसको-किसको हुआ। जो शिक्षित और सम्पन्न हो गए हैं उनको अलग करके जो बाकी बचे हैं उनको देना चाहिए, ऐसी सोच बाबा साहब की थी। आंबेडकर की यह सोच बिलकुल नहीं थी कि लोगों को जीवन भर आरक्षण की बैशाखी का सहारा दिया जाये। पर आज आरक्षण का मुद्दा इतना ज्वलनशील हो चुका है कि इसके सुधार के बारे में कोई भी राजनीतिक व्यक्ति एक भी शब्द नहीं बोल पा रहा है। यह वोटबैंक का ऐसा मुद्दा है, कि जिसके सुधार के भी बारे में अगर आप बात करेंगे तो विपक्ष में बैठा नेता तुरंत इसको कैश कर लेगा। अभी हाल ही में संघ के नेता मोहन भागवत ने एक सार्वजनिक मंच पर कहा कि आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए और यह समय की मांग है। इस पर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का बयान आया कि भाजपा के अंदर दम हो तो आरक्षण खत्म करके दिखाएं। उन्होंने आगे बोलते हुए कहा कि बीजेपी की सोच सामने आ गई, अब यह लड़ाई अगड़ों और पिछड़ों के बीच की है। ऐसी स्थिति में कौन सा राजनीतिक दल एवं व्यक्ति आरक्षण पर बोलना चाहेगा। संघ सीधे तौर पर राजनीति में नहीं है इसलिए यह मामला थोड़ा शांत है नहीं तो अब तक देश में कटाक्ष की बौंछार लग जाती। मैं लालू यादव पर टिप्पणी नहीं करना चाहता, पर उनको अपने गिरेबान में झांकना चाहिए कि उन्होंने बिहार का क्या हाल किया है। भ्रष्टाचार के केस में जेल गए और राजनीतिक जीवन तबाह हो गया,  इसके बावजूद पार्टी के अस्तित्व को बचाने के लिए इस तरह के बयान दे रहे हैं, पर हम आज देशवासियों से कहतें है कि आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए कि नहीं? यह सामने आना चाहिए कि देश में कौन-कौन से परिवार सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से सम्पन्न हो चुके हैं। क्या यह नहीं होना चाहिए कि जो नागरिक आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक रूप से कमजोर हैं उन सबको इसका लाभ मिले। परन्तु वर्तमान में आरक्षण का गलत इस्तेमाल हो रहा है और सक्षम व्यक्ति इसका ज्यादा फायदा उठा रहा है। जो आगे बढ़ गए हैं वही इसका लाभ ले रहे हैं और जो असहाय एवं कमजोर हैं वो और बुरी स्थिति में चले जा रहे हैं। जरा सोचिये कि मायावती, मुलायम सिंह, लालूप्रसाद यादव, नितीश कुमार, रामविलास पासवान, कल्याण सिंह, जीतनराम मांझी जैसे समृद्ध व सम्पन्न लोगों के परिवार को आरक्षण की क्या जरुरत है? हजारों-लाखों की संख्या में सरकारी अधिकारी, फ़िल्मी दुनिया के कलाकार, डाक्टर-इंजीनियर, खिलाडी, विधायक-सांसद, बड़े व्यापारी और प्राइवेट नौकरी में बने अधिकारी के परिवार के लोगों को आरक्षण की क्या आवश्यकता है? जरा सोचिये इन लाखों लोगों के परिवार के लोग जरुरतमंद लोगों के हक़ पर अपना संवैधानिक अधिकार जताते हैं, जिनका उन्हें कोई हक़ नहीं है। अगर ये लोग ईमानदारी से आरक्षण का लाभ न लें तो सचमुच उन लोगों को लाभ होगा जिनका सपना बाबा साहब ने देखा था। ऐसी स्थिति में आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए की नहीं! या हमारे पास कौन सा तंत्र है जिसके द्वारा ऐसे सम्पन्न लोगों की पहचान की जा सके जिनको आरक्षण का लाभ मिल रहा है! मेरा मानना है कि देश में आरक्षण हर उस व्यक्ति को मिलना चाहिए जो आर्थिक रूप से निहायत गरीब हो। फिर चाहे वह जिस भी जाति, धर्म-मजहब का हो। संवैधानिक रूप से देश में सबको बराबर का अधिकार है, किसी के साथ भेदभाव नहीं किया गया है और न ही किसी धर्म-जाति को विशेष छूट दी गई है। इस लिए हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई आदि धर्मो में जो लोग आर्थिक रूप से बेहद पिछड़े हैं उन सबको आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए और यही पद्धति भारत के विकास के लिए सर्वश्रेष्ठ होगी। हिन्दू धर्म के अंतर्गत कायस्थ, क्षत्रिय, ब्राह्मण क्या गरीब नहीं है? इन जातियों में ऐसे-ऐसे परिवार हैं जहाँ खाने और रहने को नहीं है। दूसरे धर्मों में भी कुछ ऐसा ही हाल है, क्या समाज और सरकार की जिम्मेदारी नहीं बनती कि इन लोगों को भी आरक्षण का लाभ दिया जाये। पर आज सत्ता और वोट के डर से कोई भी आरक्षण में सुधार की बात नहीं करता है। आवश्यकता के हिसाब से संविधान में तो संशोधन हो रहे हैं पर आरक्षण के मुद्दे पर कोई नहीं बोल रहा है। आरक्षण की इन विषमताओं से देश में लगातार असंतोष का ज्वार इकठ्ठा होता जा रहा है जिसको एक न एक दिन फूटना ही है। जिस दबाव एवं बल के द्वारा आरक्षण की शुरुआत हुई थी, आने वाले समय में इसी प्रकार से आरक्षण में बदलाव की संभावना भी है। पर हम ऐसे समय का इन्तजार क्यों करें जिससे देश के हालत अस्थिर हों और देश में आग लगे, इससे किसका भला होगा। इसलिए समय है, सरकारों को साहसिक निर्णय लेते हुए आरक्षण की समीक्षा करनी चाहिए और जो इसके लायक हैं उन सबको इसका लाभ पहुँचाना चाहिए। ऐसा करते हुए हम बाबा साहब आम्बेडकर के सपनों को पूरा कर सकेंगें।

 जय हिन्द।

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