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अरुण कुमार का असमय चले जाना सरोकारी पत्रकारिता में अपूरणीय क्षति

Abhiranjan Kumar :  आज के दिन को मैं अपने लिए एक उदास और मनहूस दिन कहूंगा। वरिष्ठ पत्रकार और मेरे लिए बड़े भाई समान Arun Kumar नहीं रहे। वे हमारे ज़िले बेगूसराय के ही थे और टाइम्स ऑफ इंडिया, पटना से रिटायर हुए थे। लंबे समय तक प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के भी सदस्य रहे। जस्टिस मार्कण्डेय काटजू द्वारा 2012 में गठित पीसीआई की तीन सदस्यों की उस कमेटी में भी थे, जिसने नीतीश सरकार की अघोषित मीडिया सेंसरशिप मामले की जांच की थी। उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया से हटाए गए कर्मचारियों के लिए भी लंबी लड़ाई लड़ी।

<p>Abhiranjan Kumar :  आज के दिन को मैं अपने लिए एक उदास और मनहूस दिन कहूंगा। वरिष्ठ पत्रकार और मेरे लिए बड़े भाई समान Arun Kumar नहीं रहे। वे हमारे ज़िले बेगूसराय के ही थे और टाइम्स ऑफ इंडिया, पटना से रिटायर हुए थे। लंबे समय तक प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के भी सदस्य रहे। जस्टिस मार्कण्डेय काटजू द्वारा 2012 में गठित पीसीआई की तीन सदस्यों की उस कमेटी में भी थे, जिसने नीतीश सरकार की अघोषित मीडिया सेंसरशिप मामले की जांच की थी। उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया से हटाए गए कर्मचारियों के लिए भी लंबी लड़ाई लड़ी।</p>

Abhiranjan Kumar :  आज के दिन को मैं अपने लिए एक उदास और मनहूस दिन कहूंगा। वरिष्ठ पत्रकार और मेरे लिए बड़े भाई समान Arun Kumar नहीं रहे। वे हमारे ज़िले बेगूसराय के ही थे और टाइम्स ऑफ इंडिया, पटना से रिटायर हुए थे। लंबे समय तक प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के भी सदस्य रहे। जस्टिस मार्कण्डेय काटजू द्वारा 2012 में गठित पीसीआई की तीन सदस्यों की उस कमेटी में भी थे, जिसने नीतीश सरकार की अघोषित मीडिया सेंसरशिप मामले की जांच की थी। उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया से हटाए गए कर्मचारियों के लिए भी लंबी लड़ाई लड़ी।

अरुण कुमार हमारी दुनिया में एक सीधे-सादे सरल व्यक्ति थे, जिनके बारे में मैं शर्तिया तौर पर कह सकता हूं कि उन्होंने अपने पेशे में कभी मिलावट नहीं की और पूरी ईमानदारी से जीवन जीकर चले गए। पिछले लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने उन्हें बेगूसराय सीट से टिकट ऑफर किया था, लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया। बेगूसराय के मुद्दों को लेकर काफी मुखर थे। हम लोग उन्हें इस बार विधानसभा चुनाव में भी उतारना चाहते थे, लेकिन उनकी ख़राब सेहत के चलते यह संभव नहीं हो सका। ऐसे लोग अगर चुनाव मैदान में हों, तो हम जैसे लोगों को “नोटा”बटन दबाना न पड़े।

अरुण कुमार पिछले कुछ समय से कैंसर से जूझ रहे थे, हालांकि उनके अदम्य साहस और जिजीविषा की वजह से यह बेशरम बीमारी कभी उन्हें डरा नही पाई। वे अमूमन हर बार अस्पताल आने-जाने से पहले अपने ट्रीटमेंट के बारे में इसी फेसबुक पर जानकारियां दिया करते थे। उन्हें पढ़कर ऐसा लगता था जैसे हम लोग तो परेशान हो रहे हैं, लेकिन वे ख़ुद कैंसर से दिल्लगी कर रहे हैं। कभी नहीं हारे। कभी नही डरे। सच कहूं, तो उनके इस अपराजेय और निडर तेवर को देखकर कभी नहीं लगा कि वे इतनी जल्दी हमें छोड़कर चले जाएंगे।

अरुण कुमार साहसी थे। ईमानदार थे। चरित्रवान थे। जुझारू और समर्पित पत्रकार थे। एक ऐसे समाजसेवी थे, जो अपनी पत्रकारिता के ज़रिए समाज में फैली बुराइयों से संघर्ष कर रहे थे और आम से आम आदमी के हित में लिख-बोल रहे थे। उन जैसे योद्धा रोज़-रोज़ पैदा नहीं होते। अभी उनका इस्तेमाल ख़त्म नहीं हुआ था। उनकी संभावनाएं समाप्त नही हुई थीं। उनका संघर्ष अभी जारी था। इसलिए महज 60-62 साल की अल्प-आयु में उनका इस तरह चले जाना बेगूसराय, बिहार और देश की पत्रकारिता के लिए एक अपूरणीय क्षति है।

उन्हें मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि। आप लोग भी उनकी आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें। अरुण दा हमारे दिलों में हमेशा अमर रहेंगे।

पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से.

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