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लड़कियां गुड ब्वाय से ज्यादा बैड ब्वाय पसंद करती हैं!

Vikas Mishra : पिछले साल करवा चौथ पर मेरी पत्नी ने बड़े शौक से अपने लिए कान का खूबसूरत सा टॉप्स खरीदा था। एक उत्सव में सपरिवार गांव गया। पत्नी के मायके और ससुराल दोनों में महिलाओं ने उस टॉप्स की बड़ी तारीफ की। किसी ने पूछा- तनिष्क से बनवाया क्या तो किसी ने पूछा-जो नग लगे हैं वो हीरे के हैं क्या..? पत्नी ऐसे सवालों पर गदगद थी। मेरे दिल्ली लौटने के चार-पांच दिन बाद श्रीमती जी गांव लौटीं तो एक दिन उन्होंने कहा-ये टॉप्स ठीक नहीं है। मैंने कहा-तुम्हीं तो कह रही थी कि सबने बड़ी तारीफ की। पत्नी ने कहा-हां, लेकिन छोटकी दीदी कह रही थीं कि ये बहुत छोटा है। उत्सव में तो बड़े गहने पहनने चाहिए।

<p>Vikas Mishra : पिछले साल करवा चौथ पर मेरी पत्नी ने बड़े शौक से अपने लिए कान का खूबसूरत सा टॉप्स खरीदा था। एक उत्सव में सपरिवार गांव गया। पत्नी के मायके और ससुराल दोनों में महिलाओं ने उस टॉप्स की बड़ी तारीफ की। किसी ने पूछा- तनिष्क से बनवाया क्या तो किसी ने पूछा-जो नग लगे हैं वो हीरे के हैं क्या..? पत्नी ऐसे सवालों पर गदगद थी। मेरे दिल्ली लौटने के चार-पांच दिन बाद श्रीमती जी गांव लौटीं तो एक दिन उन्होंने कहा-ये टॉप्स ठीक नहीं है। मैंने कहा-तुम्हीं तो कह रही थी कि सबने बड़ी तारीफ की। पत्नी ने कहा-हां, लेकिन छोटकी दीदी कह रही थीं कि ये बहुत छोटा है। उत्सव में तो बड़े गहने पहनने चाहिए।</p>

Vikas Mishra : पिछले साल करवा चौथ पर मेरी पत्नी ने बड़े शौक से अपने लिए कान का खूबसूरत सा टॉप्स खरीदा था। एक उत्सव में सपरिवार गांव गया। पत्नी के मायके और ससुराल दोनों में महिलाओं ने उस टॉप्स की बड़ी तारीफ की। किसी ने पूछा- तनिष्क से बनवाया क्या तो किसी ने पूछा-जो नग लगे हैं वो हीरे के हैं क्या..? पत्नी ऐसे सवालों पर गदगद थी। मेरे दिल्ली लौटने के चार-पांच दिन बाद श्रीमती जी गांव लौटीं तो एक दिन उन्होंने कहा-ये टॉप्स ठीक नहीं है। मैंने कहा-तुम्हीं तो कह रही थी कि सबने बड़ी तारीफ की। पत्नी ने कहा-हां, लेकिन छोटकी दीदी कह रही थीं कि ये बहुत छोटा है। उत्सव में तो बड़े गहने पहनने चाहिए।

 

इससे आगे की कहानी की जरूरत नहीं है। उस टॉप्स की प्रशंसा करीब दो दर्जन महिलाओं ने की थी, लेकिन श्रीमती जी को याद रही सिर्फ छोटकी दीदी की बात, जिन्होंने उसे छोटा कहा था। दरअसल हमारे दिल-दिमाग की संरचना ही ऐसी है कि नकारात्मक बातें कभी भूलती नहीं और सकारात्मक बातें याद नहीं रहतीं। स्कूल के दिनों को जरा याद कीजिए, किस मास्टर साहब की याद सबसे पहले आती है, वो जो बहुत शांत थे, अच्छे थे, या फिर वो जो बहुत पिटाई करते थे, जिन्हें देखकर तमाम छात्रों की पैंट गीली हो जाती थी।

मेरी एक रिश्तेदार हैं, मैंने किसी के बारे में भी उनके मुंह से कोई पॉजिटिव बात नहीं सुनी है। एक से दूसरे की बुराई उनकी जुबां पर रहती है। झूठे किस्से गढ़कर वो अपनों को ही बदनाम करती हैं। उनकी आदत लोग जानते हैं, पहचानते हैं, लेकिन उनका हुनर ऐसा है कि जब वो किसी को किसी के खिलाफ भड़काती हैं तो उनका सच जानने वाला भी मंत्रमुग्ध होकर उन्हें सुनता है। उनकी बातों को वेद और पुराण मानता है। यही नहीं, महिलाओं में वे बहुत लोकप्रिय हैं। वो महिलाएं भी मिलते ही उनसे सट जाती हैं, जो पीठ पीछे उन्हें गालियां देती हैं।

मैंने कई अच्छे दोस्तों को हमेशा के लिए अलग होते देखा है। बात सिर्फ ये कि दूसरे को कोई बात बुरी लग गई। एक बुरी बात ने दोस्ती तुड़वा दी। जब मैं इलाहाबाद में पढ़ता था तो बनारस में साथ पढ़ा मेरा एक दोस्त मेरे घर आया। मेरा कमरा कॉलोनी में था, मेरा वो दोस्त जोर-जोर से ठहाके मारने लगा, मैंने उसे समझाने की कोशिश की-भाई जरा धीरे, यहां परिवार रहते हैं, आधी रात ठहाके लगाओगे तो लोगों को बुरा लगेगा। बस वो नाराज हो गया। अटैची पैक करने लगा, अभी बनारस जाऊंगा, तुमने ऐसी बात कही कैसे, रोना-धोना, गुस्सा। बहुत प्रिय मित्र था मेरा। मैंने उससे कहा-देखो मैंने बहुत बड़ा अपराध किया है, मानता हूं। अगले पांच मिनट तक कमरे में बैठकर सोच लो कि पिछले सात सालों की दोस्ती में कितने अच्छे दिन हमने साथ गुजारे। कितनी अच्छी बातें हमने कीं, उन सब बातों का आज की बात से हिसाब कर लो। फिर भी लगता है कि आज की बात पिछले सात साल के रिश्ते पर भारी है तो चले जाना, मैं रोकूंगा नहीं, स्टेशन पहुंचाकर आऊंगा। कहने की जरूरत नहीं कि दोस्ती आज भी पक्की है।

ये मन का कौन सा कमाल है कि अगर बड़ा भाई डांट दे, पिता डांट दे, उम्र में बड़ा रिश्तेदार कुछ कह दे तो लोग आसमान सिर पर उठा लेते हैं। बाप-बेटे में तकरार हो जाती है। भाई-भाई में खाई खुद जाती है, बंटवारा हो जाता है। बचपन के दिनों की सारी अलमस्ती भूल जाती है। लेकिन जब दफ्तर में बॉस चीखता है, मां-बहन को छोड़कर बाकी कुछ भी नहीं छोड़ता तो कुछ कर नहीं पाते। जी सर-जी सर करते हुए सुनते रहते हैं। यहां तो बॉस का दर्जा तो बाप से भी ऊपर चला जाता है। ये उनके लिए भी है जो खुद को तीसमार खां समझते हैं। मैं खुद को भी उनसे कुछ अलग नहीं करता।

एक बार एक सर्वे आया था, जिस पर हम लोग प्रोग्राम बनाने की सोच रहे थे। सर्वे ये आया था कि लड़कियां गुड ब्वाय से ज्यादा बैड ब्वाय को पसंद करती हैं। बातें चल रही थीं। एक महिला एंकर ने अपनी राय रखी- ये बात तो सच है कि जो लगातार तारीफों के पुल बांधते हैं, उन्हें लड़कियां कभी भाव नहीं देतीं, लेकिन अगर किसी ने लड़की की किसी बात की बुराई कर दी तो उसे लड़कियां भूल नहीं पातीं। उसने एक महिला का किस्सा भी बताया, जिसमें एक शख्स यूं ही बैठा शून्य में निहारता हुआ कुछ सोच रहा था। उन मोहतरमा को लगा कि वो उन्हें घूर रहा है। वे उठीं और हड़काते हुए उस लड़के से कहा-ये क्या बदतमीजी है, इतनी देर से तुम मुझे घूर क्यों रहे हो।… फिर अंग्रेजी में कुछ गालियां। लड़का उठा और बोला-माफ कीजिएगा, मैडम मेरा टेस्ट इतना बुरा भी नहीं है। एंकर की मानें तो वो महिला लाजवाब हो गई, वहीं पूरे ड्रामे का पैकअप हो गया। मतलब साफ था कि अगर बेचारा सफाई देता तो फंस जाता। बुरी बात बोली, जो गोली की तरह लगी।

आज सुबह घर में मैंने पत्नी से कहा-ये सूट तुम पर अच्छा नहीं लगता, घर में भी मत पहना करो। इसके बाद जब फ्रेश होकर लौटा तो देखा सूट काम वाली बाई के पॉली बैग में बैठकर घर से बाहर के लिए रवाना हो रहा था। इसके बाद मैंने ऐसे ही पूछा-अच्छा तुम्हारी कौन-कौन सी ड्रेस, साड़ी मुझे बहुत ज्यादा पसंद है, क्या तुम्हें याद है। श्रीमती जी, बहुत सोचकर भी बता नहीं पाईं। अच्छाई और बुराई का रिश्ता एक दूसरे से उलट है, लेकिन बुराई तेजी से अपनी तरफ खींचती है। दो दोस्त जब करीब आते हैं, दोस्ती गहराती है तो सबसे पहले वो एक दूसरे की बुराइयां अपनाते हैं। बहुत कम उदाहरण ऐसे होंगे कि सिगरेट पीने वाले दोस्त की सिगरेट न पीने वाले दोस्त ने सिगरेट छुड़वाई हो। उसके उलट सिगरेट न पीने वाला दोस्त सिगरेट पीने वाले दोस्त की संगति में बाद में सिगरेट पीते हुए मिलता है।

घर में उत्सव हो तो उनकी गिनती याद नहीं रहेगी, जो उत्सव में शामिल होकर कितने खुश होंगे, आयोजक को उनकी गणना उंगलियों पर रटी होगी, जिनके नाराज हो जाने का खतरा है। मेरे एक भाई साहब हैं। कई बरस से बोल नहीं रहे थे। प्रणाम करता था, मुंह फेर लेते थे। एक दिन उन्होंने कहा- तुम्हें पता नहीं कि मैं तुमसे नाराज हूं..? मैंने कहा-भइया मेरे लिए तो उनका हिसाब रख पाना ही आसान नहीं जो मुझसे खुश हैं, अब नाराजगी का भी खाता मेंटेन करूं..। कभी दिलो दिमाग की इस स्वाभाविक चाल को जरा पलटकर देखिए। जो आपकी खुशियों का ख्याल रखते हैं, जरा उनको खुश करके देखिए। जो आपके लिए अच्छा सोचते हैं, उनके बारे में अच्छा सोचिए। बुराइयां तो अपनी तरफ खींचेंगी, जरा अच्छाइयों को बुलाकर तो देखिए। अच्छा करने से ज्यादा मुश्किल अच्छा सोचना है। अच्छा सोचेंगे तो अच्छा करने के रास्ते खुलते जाएंगे।

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आजतक न्यूज चैनल में कार्यरत पत्रकार विकास मिश्रा के फेसबुक वॉल से.

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