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बड़बोलेपन के साथ मुगालतों के भी शाह हैं अमित!

पार्टी विथ डिफरेंस का नारा देने वाली भारतीय जनता पार्टी हकीकत में कांग्रेस की बदतर फोटो कॉपी से अधिक अपनी पहचान नहीं बना पाई है। दरअसल राज करने की जो शैली कांग्रेस ने देश में विकसित की लगभग सभी राजनीतिक दलों ने उसका ही अनुशरण किया है। कांग्रेस ने जहां 60 साल तक देश पर राज किया और तुष्टिकरण की नीति को जोरदार तरीके से बढ़ावा भी दिया। हालांकि ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के राज में देश ने तरक्की नहीं की। आज जो भारत ग्लोबल लीडर बनने की राह पर है उसमें कांग्रेस का योगदान ही अधिक रहा है, क्योंकि भाजपा को तो मात्र अटलजी के दौर में 6 साल और अभी मोदीजी के नेतृत्व में 5 साल के लिए जनादेश मिला है, उसमें से भी 18 माह के मोदी कार्यकाल के दौरान जनता मोहभंग की स्थिति में आ चुकी है।

<p>पार्टी विथ डिफरेंस का नारा देने वाली भारतीय जनता पार्टी हकीकत में कांग्रेस की बदतर फोटो कॉपी से अधिक अपनी पहचान नहीं बना पाई है। दरअसल राज करने की जो शैली कांग्रेस ने देश में विकसित की लगभग सभी राजनीतिक दलों ने उसका ही अनुशरण किया है। कांग्रेस ने जहां 60 साल तक देश पर राज किया और तुष्टिकरण की नीति को जोरदार तरीके से बढ़ावा भी दिया। हालांकि ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के राज में देश ने तरक्की नहीं की। आज जो भारत ग्लोबल लीडर बनने की राह पर है उसमें कांग्रेस का योगदान ही अधिक रहा है, क्योंकि भाजपा को तो मात्र अटलजी के दौर में 6 साल और अभी मोदीजी के नेतृत्व में 5 साल के लिए जनादेश मिला है, उसमें से भी 18 माह के मोदी कार्यकाल के दौरान जनता मोहभंग की स्थिति में आ चुकी है।</p>

पार्टी विथ डिफरेंस का नारा देने वाली भारतीय जनता पार्टी हकीकत में कांग्रेस की बदतर फोटो कॉपी से अधिक अपनी पहचान नहीं बना पाई है। दरअसल राज करने की जो शैली कांग्रेस ने देश में विकसित की लगभग सभी राजनीतिक दलों ने उसका ही अनुशरण किया है। कांग्रेस ने जहां 60 साल तक देश पर राज किया और तुष्टिकरण की नीति को जोरदार तरीके से बढ़ावा भी दिया। हालांकि ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के राज में देश ने तरक्की नहीं की। आज जो भारत ग्लोबल लीडर बनने की राह पर है उसमें कांग्रेस का योगदान ही अधिक रहा है, क्योंकि भाजपा को तो मात्र अटलजी के दौर में 6 साल और अभी मोदीजी के नेतृत्व में 5 साल के लिए जनादेश मिला है, उसमें से भी 18 माह के मोदी कार्यकाल के दौरान जनता मोहभंग की स्थिति में आ चुकी है।

दरअसल भाजपा के साथ दिक्कत यह है कि वह सबसे अलग और स्वच्छ पारदर्शी होने का नारा तो लगाती है और अपनी टेग लाइन भी पार्टी विथ डिफरेंस बताती रही, लेकिन हकीकत में उसने भ्रष्टाचार से लेकर तमाम मामलों में कांग्रेस की ही नकल की है। इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा एक कैडर बेस पार्टी है और उस पर संघ का भी नियंत्रण रहा है। जबकि कांग्रेस में संगठन नाम की कभी कोई चीज रही ही नहीं और आलामकान में ही सारी शक्तियां निहित रही। कांग्रेस के पापों का घड़ा जब लबालब भर गया तो उसका फूटना भी जायज था। भ्रष्टाचार से लेकर तमाम आरोपों में घिरी कांग्रेस को नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने कड़ी चुनौती दी और देश से ही सफाया कर डालने का दावा भी किया, लेकिन बिहार चुनाव ने जहां भाजपा को पटकनी दी, वहीं कांग्रेस को पुनर्जीवित करने का काम भी कर दिया।

मोदी के सिपहसालार के रूप में पार्टी की कमान अध्यक्ष बतौर अमित शाह ने संभाल रखी है, जिसे प्रायोजित मीडिया ने चाणक्य से लेकर कई तरह की उपाधियां दे डालीं, मगर दिल्ली में ये चाणक्य फेल हुए और बिहार आकर तो और धराशायी हो गए। अगर अमित शाह को भाषण देते या मीडिया से चर्चा करते हुए सुना जाए तो साफ झलकता है कि उनमें बड़बोलापन और अहंकार जरूरत से ज्यादा है… दिल्ली चुनाव के दौरान ही अमित शाह ने टीवी चैनलों से चर्चा करते हुए विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने और 15-15 लाख रुपए बंटवाने को चुनावी जुमला करार दे दिया था और अभी बिहार चुनाव के परिणामों के ठीक 48 घंटे पहले अमित शाह ने जो विवरण प्रस्तुत किया उसे देखकर ऐसा कतई नहीं लगा कि ये किसी राष्ट्रीय पार्टी के जिम्मेदार अध्यक्ष का बयान हो सकता है।

जिस तरह प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी ने निम्न स्तरीय भाषण दिए लगभग उसी तरह अहंकार में डुबे अमित शाह ने यह बताया था कि सुबह 7 बजे मतगणना शुरू होगी और 9 बजे तक ये ब्रेकिंग न्यूज आना शुरू हो जाएगी कि भाजपा अधिकांश सीटों पर आगे है… 11 बजने तक भाजपा दो तिहाई बहुमत हासिल कर लेगी और फिर 1 बजे तक तो बिहार में शानदार विजय का परचम भाजपा लहरा देगी और 2 बजे अंतिम बार बिहार के मुख्यमंत्री नितिश कुमार मुख्यमंत्री निवास से निकलकर राज भवन जाएंगे और अपनी हार पर इस्तीफा दे देगें… अब 8 नवंबर के चुनाव परिणामों ने अमित शाह के इन बयानों की किस तरह मिट्टी पलीत की यह तो जग जाहिर है ही।

अपने साथ-साथ अमित शाह ने ऐसे ही बड़बोले और अहंकारी नेताओं को आसपास इकट्ठा कर लिया है, जिनमें अपने इंदौर के कैलाश विजयवर्गीय जैसे भी शामिल हैं, जिनकी अभी तक स्थानीय और प्रादेशिक पहचान रही, मगर उलजुलूल बयानों के चलते वे भी अखिल भारतीय सुर्खियां पा गए। उनका ये बयान भी हास्यास्पद रहा कि शत्रुघ्न सिन्हा को भाजपा से पहचान मिली। यानि फिल्म इंडस्ट्री में वे इसके पहले मानों स्पॉट बॉय रहे हों और खुद श्री विजयवर्गीय को मानों पार्टी ने पद और पहचान नहीं दी हो..? अब समय आ गया है कि अमित शाह और उनकी पूरी मंडली को पहली फुर्सत में अहंकार और दंभ से निजात पा लेना चाहिए, क्योंकि देश की जनता ने अच्छे-अच्छों का बड़बोलापन और मुगालता तबीयत से दूर कर दिया है, जिसकी शुरुआत भाजपा के मामले में भी हो चुकी है.

लेखक राजेश ज्वेल हिन्दी पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक हैं. सम्पर्क- 098270-20830 Email : [email protected] , [email protected]

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