Ajit Singh : मैं अपनी बुआ जी के घर गया था पिछले महीने। वहाँ मुझे एक लड़की मिली। शादी शुदा थी। मांग में सिन्दूर था। पर उसकी बोल चाल रहन सहन और व्यवहार से ही मुझे पता लग गया कि इस घर की बेटी है बहू नहीं। पूर्वांचल में आप बहू और बेटी को आसानी से पहचान सकते हैं। लड़की यदि निश्चिन्त हो, मस्त मौला, खूब हंसे खेले बोले बतियाये, चहके, तो समझ लीजिये कि बेटी है। और अगर सर पे पल्लू लिए, धीमी गति के समाचार जैसी धीरे धीरे चले, शांत रहे, न बोले न बतियाये, दबी दबी सी, घुटी घुटी सी, न हंसे न मुस्कुराये, खिलखिलाना तो दूर की बात, तो समझ लीजे कि बहू है।
अब यही impression लिए मैं पिछले दिनों एक मित्र के घर गया। वहाँ फिर एक लड़की दिखी। मांग में सिन्दूर था। खूब खुश थी। चहक रही थी। मस्त बिंदास। निश्चिन्त। हंस बोल बतिया रही थी। खिलखिला रही थी। मैंने पूछा आपकी बेटी है? वो बोले नहीं मेरी बहू है, बहू है पर बेटियों जैसी। facebook पे अभी अभी एक समाचार देखा। शादी के आठवें दिन बहू ने अपनी ननद की jeans पहन ली। पति ने देखा तो मना किया। पत्नी न मानी तो पति देव ने झापड़ धर दिया। पत्नी कमरा बंद कर फांसी पे झूल गयी। लड़की ससुराल में भी मायके की तरह सहज, at home महसूस करना चाहती थी शायद। हम अपनी बहुओं को बेटियों की तरह क्यों नहीं रख सकते? क्यों दब के घुट घुट के रहे बहुएं ससुराल में। ससुराल मायके सा क्यों नहीं हो सकता?
गाजीपुर जिले निवासी सोशल एक्टिविस्ट अजीत सिंह के फेसबुक वॉल से.