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मनोरंजन

बाहुबली : आखिर क्यूं हर देखने वाले के सर चढ़कर बोल रही है ये फिल्म!

-राकेश उपाध्याय-

टीवी पत्रकार


जल रही है चिता, सांसों में है धुआं फिर भी आस है मन में जगी
भोर होगी क्या कभी यहां पूछती यही हैं ये बेड़ियां, देख तो कौन हे ये…।

बाहुबली फिल्म जिसने नहीं देखी तो वह कल्पना भी नहीं कर सकता कि इस फिल्म की बनावट, बुनावट, कथानक की कसावट और कलाकारों की भाषा-भूषा, देहयष्टि, संवाद अदायगी के तेवर का असर आखिर क्यूं हर देखने वाले के सर चढ़कर बोल रहा है। सबसे बढ़कर कैमरे की कलात्मक करवटों से भरपूर जादूगरी का कमाल कि जो देखे तो बस देखता ही रह जाए।

माहिष्मती साम्राज्यम सर्वोत्तम अजेयम,
दशों दिशाएं आठो याम सब इसको करते प्रणाम।
खुशहाली वैभवशाली समृद्धियां निराली,
धन्य धन्य है यहां प्रजा, शब्द का ये स्वर्ग धाम।

<p style="text-align: center;"><strong>-राकेश उपाध्याय-</strong></p> <p style="text-align: center;">टीवी पत्रकार</p> <hr /> <p>जल रही है चिता, सांसों में है धुआं फिर भी आस है मन में जगी<br />भोर होगी क्या कभी यहां पूछती यही हैं ये बेड़ियां, देख तो कौन हे ये...।<br /><br />बाहुबली फिल्म जिसने नहीं देखी तो वह कल्पना भी नहीं कर सकता कि इस फिल्म की बनावट, बुनावट, कथानक की कसावट और कलाकारों की भाषा-भूषा, देहयष्टि, संवाद अदायगी के तेवर का असर आखिर क्यूं हर देखने वाले के सर चढ़कर बोल रहा है। सबसे बढ़कर कैमरे की कलात्मक करवटों से भरपूर जादूगरी का कमाल कि जो देखे तो बस देखता ही रह जाए।</p> <p>माहिष्मती साम्राज्यम सर्वोत्तम अजेयम, <br />दशों दिशाएं आठो याम सब इसको करते प्रणाम।<br />खुशहाली वैभवशाली समृद्धियां निराली, <br />धन्य धन्य है यहां प्रजा, शब्द का ये स्वर्ग धाम।</p>

-राकेश उपाध्याय-

टीवी पत्रकार


जल रही है चिता, सांसों में है धुआं फिर भी आस है मन में जगी
भोर होगी क्या कभी यहां पूछती यही हैं ये बेड़ियां, देख तो कौन हे ये…।

बाहुबली फिल्म जिसने नहीं देखी तो वह कल्पना भी नहीं कर सकता कि इस फिल्म की बनावट, बुनावट, कथानक की कसावट और कलाकारों की भाषा-भूषा, देहयष्टि, संवाद अदायगी के तेवर का असर आखिर क्यूं हर देखने वाले के सर चढ़कर बोल रहा है। सबसे बढ़कर कैमरे की कलात्मक करवटों से भरपूर जादूगरी का कमाल कि जो देखे तो बस देखता ही रह जाए।

माहिष्मती साम्राज्यम सर्वोत्तम अजेयम,
दशों दिशाएं आठो याम सब इसको करते प्रणाम।
खुशहाली वैभवशाली समृद्धियां निराली,
धन्य धन्य है यहां प्रजा, शब्द का ये स्वर्ग धाम।

 

वैभवशाली माहिष्मती साम्राज्य के विशालकाय भवनों और शानदार कलात्मक वास्तु-बनावट पर सिनेमैटोग्राफी के नए प्रयोगों के साथ कम्प्यूटर तकनीकी के जरिए पैदा किया गया प्रभावपूर्ण फिल्मांकन असल में पुलकित करने वाला है, तन-मन-बुद्धि को आनंद से भरकर झकझोरने वाला और इतना रोमांचकारी है कि एकटक अपलक फिल्म को देखते हुए पलक तभी झपकती है जबकि फिल्म का मध्यावकाश आता है।

फिल्म के निर्माता और निर्देशक राजामौलि ने अपने पिता द्वारा लिखित प्राचीन भारतीय राजनीतिक वंश के अंदुरुनी घमासान का बेहद संजीदा सजीव फिल्मांकन किया है। कहानी शुरु होती है हिमालय की उपत्यकाओं पर बसे माहिष्मती नगर की उस ग्राफिक्समय चित्रावली से जिसमें गंगा की धारा की तरह वक्त राजमहल में अठखेलियां खेलता आगे बढ़ता है। परदे पर मानो हिमालय की तलहटी में बसे भारतीय राजवंश का प्राचीन गौरवमयी जीवन थिरक उठता है, पार्श्व से मधुर संगीत बजने लगता है, शब्द-शब्द लयबद्ध सुर-ताल कानों में गूंजने लगते हैं, दिमाग में विचार घुमड़ने लगते हैं।

स्वप्न सुनहरे, घाव हैं गहरे
हर धारा मिलके चली जीवनदी जीवनदी
पर्वत रोके चीरे घाटी, धार समय की रुक ना पाती
कल कल ये अवरिल बहती जाती प्राण नदी जीवनदी जीवनदी।

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बाहुबली फिल्म का पोस्टर दूसरी फिल्मों की तरह ही फिल्म के पौराणिक और ऐतिहासिक होने की गवाही देता है। साथ में यह संकेत भी कि यह फिल्म भी मार-काट, लाइट-एक्शन के मुंबईया संस्करण का नकल-नमूना होगी लेकिन यह आशंका फिल्म शुरु होते ही समाप्त हो जाती है। फिल्म के गीत-संगीत, दृश्यावली सब का असर प्रारंभ से ही दर्शकों को बांधकर रखने में सचमुच बेहद प्रभावकारक है।

ममता की तुझे छांव मिली, जुग-जुग जीना तू बाहुबली।
है जहां विष और अमृत भी, मन वो मंथन स्थली।
माहिष्मती का वंशज वो जिसे कहते बाहुबली,
रण में वो ऐसे टूटे जैसे टूटे कोई बिजली।।

गजब म्यूजिक है, गजब ताल है, ढोल नगाड़े और तुरही बजती है कि बस एक एक ठोके को सुनते देखते महसूस करते फिल्म में खोते न चले जाएं खुदबखुद आप कि पता चल जाएगा, बाहुबली नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा। अरर-मरर-तरर संगीत की सुरेख धुन दिमाग को बिजली के तड़कती रेख की तरह झंकृत और चमत्कृत करती चली जाती है।

शुरुआत ही मार्मिक तस्वीर से होती है कि सारी इंद्रियां सिकुड़कर पहले कहीं कोने में सिमटने लगती हैं फिर खुलती जाती हैं कहानी के परत-दर-परत खुलते जाने के साथ। आखिर तक सस्पेंस और सवाल कि बाहुबली क्यों मारा गया। कडप्पा ने विश्वासघात क्यों किया होगा। हर तस्वीर पर नजरें गड़ जाएं, ऐसा नयाभिराम फिल्मांकन।

एक बुजुर्ग महिला जिसके हाथ में नवजात शिशु है, वह नदी की धारा के संग जान बचाकर भाग रही होती है, प्राण के पीछे पड़े दुश्मन दल से बचने की कोशिश में कि अचानक एक तीर चलता है, महिला के कलेजे में घुस जाता है। लेकिन वह बुजुर्ग महिला भी गजब साहसी। अपने बाहु उठाकर उगते सूर्य को देखकर आवाज देती है कि इस बाहुबली को जीना होगा क्योंकि माहिष्मती के राजसिंहासन का यह वारिस है, हे सूर्यदेव, इसे जीना होगा, इसे बचाना होगा। वह बुजुर्ग महिला बर्फ की तरह ठंडी हिमालय से निकलती नदी में कूद जाती है अपनी दाहिनी भुजा के पंजे में शिशु को जकड़े हुए। महिला की निढाल देह पानी में बहती जाती है लेकिन बच्चे को लिए अकड़ी भुजा नदी के ऊपर। जब तक आखिरी सांस है राजवंश के कुलदीपक को बचाने की वैसी ही कोशिश जैसे चित्तौड़ के राजवंश के चिराग को बचाने के लिए पन्नाधाय का बलिदान। उत्तुंग पहाड़ों के शिखर की ओर इशारा करती हुई नदी की धारा से ऊपर निकली हुई भुजा पर रोते बच्चे की आवाज किनारे जा रहे वनवासियों के कानों में पड़ती है। वनवासियों की रानी आवाज देती है अपने सैनिकों को। छपाक, छपाक, वनवासी कूद पड़ते हैं बच्चे और बुजुर्ग महिला को बचाने के लिए। शिशु तो बच जाता है लेकिन बुजुर्ग महिला की देह नदी की वेगवती धारा के साथ दूर चली जाती है रक्त का लाल रंग साथ लिए कभी न मिलने के लिए।

खतरे के इस अध्याय को देखकर डरी वनवासियों की रानी नवजात शिशु को पाकर खुश हो जाती है। वनवासी समझ जाते हैं कि पर्वतों के ऊपर से नदी के प्रपात के साथ आया ये देवतुल्य नवजात शिशु असाधारण है। इस बालक के चेहरे पर चमत्कार भरी रोशनी है, देखने में राजवंश का लगता है कि अचानक कुछ सैनिकों की लाश मिलने की खबर आती है। वनवासियों की रानी समझ लेती है कि जरूर पर्वत के ऊपर माहिष्मती राजवंश में रक्तपात हुआ है। पहाड़ों के ऊपर से नीचे आने वाले इकलौता गुफा का रास्ता वो समझदार रानी बंद करवा देती है और ढिंढोरा पीट दिया जाता है कि नवजात शिशु का नाम शिवा है,जो वनवासियों की रानी की संतान है ताकि पर्वतों के ऊपर कभी ये खबर भी न जाए कि कोई बच्चा वनवासियों को मिला है…। जैसे जेल में पैदा हुए देवकी पुत्र कृष्ण यमुना की उफनती धारा को लांघते हुए यशोदा की गोद में आ विराजे, कुछ वैसे ही मृत्यु को मात देकर शिवा भी वनवासियों की रानी का बेटा बनकर वनवासियों के बीच ही पलने लगा। वनवासी रानी की हर क्षण यही कोशिश कि कभी उसके बेटे को यह पता न लग सके कि वह असल में है कौन और आया कहां से है।

बाहुबली फिल्म का यही छोटा सा मार्मिक प्रारंभ है। वनवासियों के बीच शिशु शिवा बड़ा होता है लेकिन हमेशा उसका मन उसे पर्वतों को लांघकर उसके ऊपर जाने के लिए प्रेरित करता रहता है जहां एक महान साम्राज्य है जिसका नाम है माहिष्मती। लेकिन शिवा की मां की कोशिश यही कि बच्चे की पहाड़ों को लांघकर ऊपर जाने की ललक छूटे…। वह भगवान शिव के पुजारी के पास जाती है, पर्वतों को लांघकर ऊपर जाने की शिवा की कुदरती प्रवृत्ति को रोकने के लिए प्रार्थना करती है। यह प्रार्थना का दृश्य भी अद्भुत है, पुजारी बाबा का रोल करने वाले अदाकार ने भूमिका के साथ पूरा न्याय किया है और जैसे ही शिवा को पता चलता है कि पुजारी बाबा ने नदी किनारे ऊंचाई पर बने शिवलिंग को नदी के जल से 101 बार जलाभिषेक का जिम्मा उसकी मां को दिया है, शिवा एक बड़ा फैसला लेता है विशाल शिवलिंग को अपने कंधों पर लादकर हजारों फीट ऊपर से गिर रहे जलप्रपात के नीचे रखने का ताकि चौबीसों घंटे आठों याम शिव का जलाभिषेक होता रहे।

विशाल शिवलिंग को कंधे पर उठाकर रावण की शिवस्तुति के सुरमय संगीत के साथ शिवा यानी फिल्म के हीरो प्रभाष के सुगठित कसरती शरीर के साथ जीवंत जानदार अभिनय को कैमरे के कमाल से गजब प्रभावशीलता मिली है। रावण कृत शिवतांडव स्तोत्र को जिस बेहद शानदार अंदाज में इस फिल्म में संगीतबद्ध किया गया है, कोई भी बस देखता और सुनता ही रह जाए…।

जटाकटाहसंभ्रमभ्रमनिलिंपनिर्झरी,विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्द्धनि।
धगद्धगद्धगज्जवलल्ललाटपट्टपावके, किशोर चंद्र शेखरे रति प्रतिक्षणम् मम।।।

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कौन है वो कौन है वो कहां से वो आया, चारों दिशाओं में तेज सा वो छाया।
उसकी भुजाएं बदले कथाएं, भागीरथी तेरी तरफ शिवजी चले देख जरा ये विचित्र माया।

और इस गीत के साथ शहनाई वादन और डमरू की ध्वनि का का शानदार लयबद्ध प्रयोग। रामायण के रावण की याद आ गई मुझे कि उसने किस तरह से शिव की विकट साधना की थी, एक महान पंडित कैसे रास्ता भटककर बाद में शिव के ही आराध्य श्रीराम से टकरा बैठा था…।

धराधरेंद्र नंदिनी विलासबंधुबधुरस्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोद मानमानसे।
कृपा कटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि, क्वचिद्दिगंबरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि।।

और पूरा गाना ही शिवतांडव स्त्रोत्र के साथ गजब गूंथा हुआ जिसे जमीन से लेकर आसमान तक पहाड़ों और प्रपातों के बीच बेहद ही खूबसूरती से तड़कते सुरों के साथ से इस तरह फिल्माया गया है कि अविस्मरणीय न भूतो न भविष्यति।

वनवासी रानी की तमाम कोशिशों के बावजूद शिवा एक दिन पर्वतों के उस पार जलप्रपात के ऊपर हिमालय में बसे माहिष्मती राज्य की सरहदों में प्रवेश करने में सफलता हासिल कर ही लेता है जहां उसकी मां देवसेना कैद रहती है जिसका उसे दूर दूर तक पता भी नहीं होता। निर्माता-निर्देशक राजामौलि ने पर्वतों पर चढ़ाई के दौरान श्रृंगार के पक्ष को भी बड़ी खूबसूरती से इतने महीने और रंगीन तरीके से पिरो दिया है कि देखकर आप रोमांचित हो उठेंगे। दरअसल जलप्रपात की धार से शिवा को एक दिन एक युवती का खूबसूरत मुखौटा मिलता है जिसे देखकर वह कल्पना लोक में खो जाता है कि निश्चित रूप से जलप्रपात के उस पार बर्फीले पहाड़ों पर कोई है जो उसे बुला रहा है, जहां पहुंचना उसके जीवन का मकसद है। तो अपने कल्पनालोक की सुंदरी को सोचते हुए वह सैकड़ों बार ऊंचे पहाड़ों से गिरकर भी ऊपर चढ़ते जाने का लक्ष्य नहीं छोड़ता है और आखिर एक दिन ऊपर पहुंचकर ही दम लेता है। यहीं से शुरु होता है माहिष्मती राज्य के भीतर चल रहे राज्याधिकार के षड्यंत्री छल और विश्वासघात भरी कहानी के परत दर परत का खुलासा जिसमें शिवा की असली मां माहिष्मती राज्य की असली रानी देवसेना बीते 25 सालों से बल्लालदेव की कैदी है। राजमहल में एकमात्र राज्य का वफादार बुजुर्ग सेनापति कड़प्पा ही उसका शुभचिंतक है जो चाहता है कि साम्राज्य की असल रानी आजाद हो जाए लेकिन देवसेना छुपकर आजाद होने से बार बार मना करती है और उसे जर्रे जर्रे से आवाज आती मालूम पड़ती है कि एक दिन उसके पति बाहुबली का बेटा उसका बाहुबली आएगा उसे छुड़ाने के लिए जो नदी की धार में बहकर दूर जा चुका था..। कैलाश खेर की आवाज में देवसेना के दिल में धधकता दर्द कलेजा चीर देता है….।

जल रही चिता, सांसों में है धुआं फिर भी आस है मन में जगी
भोर होगी क्या कभी यहां पूछती यही हैं ये बेड़ियां, देख तो कौन हे ये…।

अजब ये कि फिल्म के गीत में संस्कृत के शब्दों का जमकर प्रयोग हुआ है, कई जगहों पर फिल्म के मूल तेलुगू शब्दों को जस का तस रखा गया है फिर भी हिंदी में डब फिल्म के असर में कहीं से कोई कमी नहीं दिखती है। जैसे….माहिष्मती राज्य का संगीतमय सुरीला लयबद्ध वर्णन दिल-दिमाग पर गहरा असर छोड़ने में कामयाब हुआ है।

माहिष्मती साम्राज्यम सर्वोत्तम अजेयम, दशों दिशाएं आठो याम सब इसको करते प्रणाम।
खुशहाली वैभवशाली समृद्धियां निराली, धन्य धन्य है यहां प्रजा, शब्द का ये स्वर्ग धाम।
माहिष्मती की पताका सदा झूमे, गगन चूमे, अष्टदेव और सूर्यदेव मिलके स्वर्ग सिंहासन विराजे।

माहिष्मती राज्य का संगीतमय वर्णन और विशालकाय सेट का निर्माण खुद में चौंकाने वाला है। सैकड़ों करोड़ की बजट वाली इस फिल्म में माहिष्मती की कल्पना और उसके साम्राज्य का दिग्दर्शन खुद में ही इतना भव्य है कि सांसारिक आंखें उसकी चमक से चुंधिया जाए जिसके सिंहासन पर षडयंत्र के बल पर अपने भाई और असली राजा बाहुबली का खात्मा कर अब बल्लालदेव राज कर रहा है।

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इस फिल्म की पूरी कहानी में बाहुबली के साथ सबसे प्रभावशाली किरदार कडप्पा का है जो एक ओर पूर्व राजा बाहुबली की 25 साल से कैद में रह रही पत्नी देवसेना और पूर्व सम्राट बाहुबली का अनन्य भक्त है लेकिन जो देवसेना के परिवार के शत्रु राजा बल्लालदेव के रक्षा में उसी तरह जान छिड़कता है जैसे कौरव वंश की रक्षा में भीष्म पितामह ने जीवन खपाया था। कडप्पा के किरदार पर ही बाहुबली फिल्म का पहला पार्ट खत्म होता है इस रहस्य के खुलासे के साथ कि कडप्पा ने ही असल में सम्राट बाहुबली की पीठ में तलवार भोंक कर उसकी हत्या की थी। सस्पेंस का जवाब अगले साल बाहुबली पार्ट-2 में मिलेगा कि कड़प्पा ने अपने सम्राट बाहुबली को क्यों मारा।

शिवा यानी सम्राट बाहुबली के पुत्र बाहुबली द्वितीय के सामने खुद कडप्पा ही ये खुलासा करता है तो उसकी आंखे भर आती हैं कि जिस सम्राट के लिए उसने जीवन दिया, एक दिन उसके जीवन का अंत भी उसी के हाथों हुआ..।…वनवासियों के बीच से निकलकर बाहुबली जब माहिष्मती में हलचल पैदा करता है और बल्लालदेव को महल में खतरे की घंटी सुनाई देने लगती है तो यही कडप्पा बाहुबली को घेरने की कोशिश भी करता है। बाहुबली का बेटा शिवा कैद से महारानी देवसेना को रथ पर बैठाकर राजमहल से निकल भागता है तो उसे रोकने के मोर्चे पर कडप्पा ही पीछे लगता है। और इसी संघर्ष के दरम्यान बाहुबली द्वितीय का मुकाबला अपने पिता के शत्रु रहे चचेरे भाई बल्लालदेव के बेटे से होता है। सम्राट बाहुबली की धर्म तलवार जो कड़प्पा के पास हमेशा सुरक्षित रहती है, उसी से बल्लाल के बेटे की गर्दन के धड़ से अलग होने की तस्वीर भी गजब जीवंत और लोमहर्षक अभिनय से भरी है कि देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

इसी घटना में कडप्पा को यह अहसास हो जाता है कि जो धर्म तलवार उसके घोड़े सिद्धा के चर्मपेटी से निकलकर सीधे शिवा के हाथ में पहुंच गई तो यह घटना साक्षी है कि शिवा ही बाहुबली का बेटा है, माहिष्मती राज्य का असली उत्तराधिकारी। और तब कडप्पा फिल्म को फ्लैशबैक में ले जाता है कि कैसे माहिष्मती राज्य के उत्तराधिकार का सघर्ष बाहुबली और बल्लाल में शुरु होता है और कैसे दोनों भाई कालकेय की राक्षसी सेना का संहारकर माहिष्मती के सम्राट और सेनापति पद पर महारानी शिवगामी द्वारा नियुक्ति किए जाते हैं।

विदेशी हमलावर कालकेय की राक्षसी सेना के साथ युद्ध का दृश्य और प्राचीन व्यूह रचना के समय का फिल्मांकन भी बहुत जानदार है। पुराने समय में युद्ध होता कैसे था, उसकी व्यूह रचना का जीवंत फिल्मांकन महाभारत की याद दिलाता है और रणक्षेत्र में देश को बचाने के लिए कालकेय की सेना के साथ बाहुबली और बल्लाल का भीषण संग्राम लक्ष्य प्राप्ति के सामने जीवन की नश्वरता को बताता हुआ हल्दी घाटी की इन शक्तिशाली पंक्तियों में प्राण डालता प्रतीत होता है-

वैरी दल को ललकार गिरी, वह नागिन सी फुफकार गिरी।
था शोर मौत से बचो बचो, तलवार गिरी तलवार गिरी॥
पैदल, हयदल, गजदल में, छप छप करती वह निकल गई।
क्षण कहाँ गई कुछ पता न फिर, देखो चम-चम वह निकल गई॥
लहराती थी सिर काट काट, बलखाती थी भू पाट पाट।
बिखराती अवयव बाट बाट, तनती थी लोहू चाट चाट॥
क्षण भीषण हलचल मचा मचा, राणा कर की तलवार बढ़ी।
था शोर रक्त पीने को यह, रण-चंडी जीभ पसार बढ़ी॥

महारानी शिवगामी का अभिनय भी छाप छोड़ने वाला है और संवाद भी कि -मेरा वचन ही है शासन। युद्धभूमि में कालकेय की आंखे निकालकर उसके शरीर को गिद्ध और कौवों का आहार बना देने की शिवगामी की प्रतिकार भरी ललकार मानो हर भारतीय नारी के स्वाभिमान को आवाज देती है। ये वही शिवगामी है जो अपनी भुजाओं में सम्राट बाहुबली के चिराग 10 महीने के बाहुबली के बेटे को लेकर फिल्म के प्रांरभ में भागती दिखती है, अपना जीवन देकर देश के चिराग को बचाती है क्योंकि सम्राट मार दिए जाते हैं और एकमेव उत्तराधकारी के पीछे दुश्मन पड़ जाते हैं।

गजब बात ये कि जिस सुंदरी की कल्पना कर शिवा पहाड़ों के ऊपर चढ़ता है वह खुद में शिवा की मां देवसेना को बल्लालदेव की कैद से आजाद कराने के अभियान में निकली होती है। पूर्व सम्राट बाहुबली के समर्थक बागी जगलों में रहकर देवसेना की आजादी का अभियान जीवित रखते हैं जिसमें संयोग से बाहुबली के बेटे की एन वक्त पर एंट्री होती है और वह अपने साहस और शौर्य से अपने कल्पनालोक की असल सुंदरी को प्रभावित करता है, बल्लालदेव के सैकड़ों सैनिकों के घातक प्रहार से सुंदरी की रक्षा करता है और बाद में सुंदरी को पाने के लिए उसके लक्ष्य को अपना बना लेता है, देवसेना को आजाद कराने के लिए छुपकर माहिष्मती राज्य में प्रवेश करता है, और उसे आभाष तक नहीं होता है कि वह अपने माता-पिता और पुरखों के राज्य की आजादी के लिए ही संघर्ष कर रहा है।

फिल्म का संदेश जो मुझे समझ में आया है कि नियति अपने असल उत्तराधिकारी और नेता को पाकर ही प्रसन्न होती है। जिसे जीना है और जिसे कुछ करना है तो वह करके ही रहता है, ये नायकत्व किसी को किसी की कृपा से नहीं मिलता। जो सुयोग्य है, सबल है, सक्षम है और देश के जन-जन से प्रेम करने वाला है, वह हर अंधेरे को चीकर हर निराशा और हताशा को पराजितकर देश का नायक बनकर निकलता है,आगे बढ़ता है क्योंकि जिसके हाथ की लकीरों में मातृभूमि की रक्षा का भार लिखा है, उसे वक्त की कोई तलवार मिटा नही सकती। हर इस्पाती तलवार उसी तरह दो टुकड़े हो जाती है जैसे कि कडप्पा की तलवार के सामने काबुल के कारोबारी की तलवार टुकड़े टुकडे टूटकर बिखर जाती है।

फिल्म से दूसरा संदेश जो मिलता है कि माहिष्मती राज्य अगर भारत वर्ष है तो फिर इसके शासन की बीज-रक्षा का दायित्व कडप्पा और शिवगामी जैसे लोगों को संभालना होगा, आगे बढ़ना होगा उस बाहुबली के लिए जिसे भवानी भगवती ने कहीं अंधकार में भटकता छोड़ रखा है और जिसका इंतजार जन-गण-मन जीवन भर बड़ी आतुरता से करता रहता है क्योंकि लोकतंत्र की सफलता भी कुदरती ईमानदार नायकों पर निर्भर करती है, जो राजनीति को अपने से जुड़े चंद लोगों का कारोबार चलाने, करोड़ों नागरिकों का हक मारकर चंद मल्टीनेशनल कॉरपोरेट को फायदा देने और भारतवर्ष की असल आत्मा को कुचलकर देश में विदेशी राज्य के हस्तक बनने की कोशिश करेंगे तो उन्हें समझना होगा कि लोकतंत्र की महारानी देवसेना और गंगा के मैदान में हजारों साल से पल रहे उसके बाहुबली पुत्र ज्यादा दिन तक कैदी मुद्रा में खामोश नहीं रहने वाले हैं।

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आखिरी बात। अगर फिल्म नहीं देखी है, जरुर देखने जाइए। देख चुके हैं तो परिवार को ले जाइए। परिवार सहित देख चुके हैं तो फिर से देख आइए क्योंकि बाहुबली फिल्म ने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में बड़ी लकीर खींच दी है।

जीवन प्रसर शौर्य धारा, उत्तरा स्थिर गंभीरा।

जीवना प्रसर शौर्य धारा, उत्तरा स्थिर गंभीरा।।

लेखक राकेश उपाध्याय आजतक न्यूज चैनल से जुड़े हैं.

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