Dayanand Pandey : फैंटम मतलब फुल बकवास। कोई डिटेक्टिव फ़िल्म इतनी ढीली, इतनी सुस्त और बोझिल भी हो सकती है, यह पहली बार जाना है। यह फ़िल्मी प्रोड्यूसर और डायरेक्टर दर्शकों को इतना बेवकूफ क्यों समझते हैं। कि ट्रेलर की भभकी दे कर उन्हें सिनेमा तक खींच लेंगे और मुर्गा बना लेंगे। बना ही ले रहे हैं। बनाते रहेंगे। पाकिस्तान विरोध वाली देशभक्ति पुरानी अफ़ीम है हिंदी दर्शकों की आंख में धूल झोंकने के लिए फिल्मकारों के लिए।
आतंकवादियों और पाकिस्तान की फर्जी कंट्रोवर्सी क्रियेट कर दर्शकों की जेब पर डाका डालने की नाकामयाब तरकीब। एक था टाईगर और बेबी जैसी अच्छी और मनोरंजक फ़िल्में भी हाल में हम देख चुके हैं। पर फैंटम ने तो पूरी तरह चट लिया। बार-बार फ़िल्म छोड़ कर उठ जाने का मन होता है। सिरे से बोर और फ़र्जी फ़िल्म है फैंटम! न गाना गुड है, न संगीत, न कहानी, न संवाद, न निर्देशन, न अभिनय। चू-चू का मुरब्बा भी इस से बेहतर होता होगा।
वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से.