Balendu Swami : गीता प्रेस न तो बंद हुआ है और न ही वहां कोई आर्थिक संकट है (ये गीता प्रेस का आधिकारिक बयान है) असल में मजदूरों ने शोषण की वजह से हड़ताल कर रखी है इसलिए वहां काम बंद है. वैसे बंद हो जाता तो बहुत अच्छा होता. अपने धार्मिक साहित्य से जितना विकृत इसने आम समाज को किया है उतना किसी ने भी नहीं किया होगा! खासतौर से इनकी मानसिकता ब्राह्मणवाद की पोषक और दलित विरोधी रही है. वैसे तो बहुत कुछ बकवास है इनके धार्मिक साहित्य में परन्तु मैं यहाँ कुछ नमूने दे रहा हूँ. उम्मीद है कि उसे पढ़ने के बाद आपको अंदाज हो जाएगा कि गीता प्रेस के साहित्य ने समाज को कितना नुक्सान पहुंचाया है.
प्रश्न: पति मारपीट करे दुख दे तो पत्नी को क्या करना चाहिए?
उत्तर: पत्नी को तो यही समझना चाहिए कि मेरे पूर्व जन्म का कोई बदला है ऋण है जो इस रूप में चुकाया जा रहा है. अत: मेरे पाप ही कट रहे हैं और मैं शुद्ध हो रही हूं.
(“गृहस्थ में कैसे रहें” पृष्ठ 74, लेखक: स्वामी रामसुख दास, प्रकाशक: गीता प्रेस, गोरखपुर)
गीता प्रेस के विषय में बीबीसी के आलेख का अंश..
गीता प्रेस दलितों के मंदिर प्रवेश के विरुद्ध था, जबकि हिंदू महासभा इसके पक्ष में था. हिंदू महासभा का कहना था कि दलितों को उच्च जाति के चंगुल से निकलना चाहिए. कल्याण का कहना था कि मंदिर में प्रवेश ‘अछूतों’ के लिए नहीं है और अगर आप पैदा ही ‘नीची जाति’ में हुए हैं तो ये आपके पिछले जन्म के कर्मों का फल है….
स्वामी बालेंदु के फेसबुक वॉल से.