: आर्थिक आधार पर ही आरक्षण देशहित में… मोहन भागवतजी ने सौ टका सही बात कही थी… दो तरफा रुख ले डूबा भाजपा को… : बिहार चुनाव में हुई भाजपा की जबरदस्त हार के बाद अब मंथन की नौटंकी हो रही है और संसदीय बोर्ड की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह मायूस चेहरों के साथ बैठे। बैठक बाद मीडिया से बात करते हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने दो टूक कह दिया कि इस हार की जिम्मेदारी सबकी है। किसी एक को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इसके पहले अमित शाह संघ प्रमुख मोहन भागवत से भेंट करके भी आ गए थे, क्योंकि चुनाव परिणामों के साथ ही इस मुद्दे पर विवाद शुरू हो गया कि बिहार में भाजपा की हार के पीछे श्री भागवत द्वारा आरक्षण के मुद्दे पर दिया गया बयान भी बड़ा कारण है।
ऐसे में संघ प्रमुख को ताबड़तोड़ क्लीनचिट देना पार्टी अध्यक्ष के साथ-साथ प्रधानमंत्री के लिए भी जरूरी था, क्योंकि वे भी उसी के चेहरे बताए जाते रहे हैं। दिल्ली चुनाव की करारी हार के बाद भी भाजपा ने कोई सबक नहीं सिखा उलटा उसका अहंकार और बढ़ गया, जो कि बिहार चुनाव की तमाम जनसभाओं और रैलियों से लेकर पूरे प्रचार अभियान और मीडिया से चर्चा के दौरान साफ नजर आता रहा। यहां तक कि स्थानीय और प्रादेशिक स्तर के कैलाश विजयवर्गीय जैसे बड़बोले नेताओं को बिहार की जिम्मेदारी दी गई और उनके विवादित बयानों पर भी पार्टी ने सामने आकर नाराजगी जाहिर नहीं की, जिसके परिणाम स्वरूप अभी कल फिर श्री विजयवर्गीय ने शत्रुघ्न सिन्हा पर ऐसा ही भद्दा कमेंट किया। श्री जेटली ने हार पर जो सफाई मीडिया के सामने प्रस्तुत की उससे कोई भी संतुष्ट नहीं हो सकता।
अगर वाकई भाजपा सबक सीखना चाहती तो विवादित बयान देने वालों को पहली फुर्सत में जिम्मेदारियों से मुक्त करती और सार्वजनिक रूप से देश की जनता से माफी भी मांगती। इधर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण के मुद्दे पर सौ टका सही बयान दिया था, जिसका मैंने अपने इसी कॉलम में 22 सितम्बर को उल्लेख भी किया था कि भाजपा इस पर गंभीरता से अमल करे। भले ही दो-चार चुनाव हार जाए, लेकिन उलटा भाजपा ने एक तरह से दो नावों की सवारी करना चाही। एक तरफ जाातिगत वोट कबाडऩे के लिए आरक्षण का समर्थन भी करती रही, तो दूसरी तरफ संघ प्रमुख के बयान पर अपना स्पष्ट नजरिया भी नहीं रख सकी। भाजपा जनता को दो टूक बताती कि वाकई देशहित में आरक्षण जातिगत नहीं, बल्कि आर्थिक आधार पर होना चाहिए और कांग्रेस ने भी श्री भागवत की बात का तब समर्थन किया था और श्री मोदी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाकर देशव्यापी बहस की शुरुआत भी इस चुनाव से कर सकते थे।
उलटा लालू ने आरक्षण के मुद्दे को अपने पक्ष में भुनाने का काम किया, लेकिन भाजपा संघ प्रमुख की बात को तार्किक तरीके से देश के साथ-साथ बिहार की जनता के सामने नहीं रख सकी। भले ही भाजपा इससे बिहार चुनाव हार जाती, मगर देश के तमाम युवाओं का दिल जीत लेती जो अभी मोदीजी के वायदों के पूरा ना होने पर हताश और निराश हैं, लेकिन भाजपा की दिक्कत यह है कि वह राम मंदिर, धारा 370 से लेकर हिन्दुत्व से जुड़े तमाम मुद्दों पर भी अब सत्ता में आने पर आरक्षण की तरह ही दो मुंहा रुख अपना रही है, जो उसके लिए घातक साबित हो रहा है। उसे अब दो नावों की सवारी बंद कर देना चाहिए।
लेखक राजेश ज्वेल से सम्पर्क 098270-20830 या [email protected] के जरिए किया जा सकता है.