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पुस्तक समीक्षा : तल्ख हालात में प्रेम की सुगबुगाहट

ग़ज़ल लेखन की कला एवं इसकी बारीकियों की गहराई को जान लेना ही ग़ज़ल लेखन की शर्तें नहीं है। छन्दानुशासन के भीतर जो इसका सौन्दर्यवोध होता है, वह बिम्व,प्रतीक और संकेतों के अर्थपूर्ण समन्वय की कला है। हिन्दी में ग़ज़ल लेखन की जो परंपरा विकसित हुई है,वह कई मायने में हिन्दी कविता के लिए महत्वपूर्ण तो है ही साथ ही इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि ग़ज़ल के नाम पर कुछ अर्थहीन और प्रभावहीन ग़ज़लें लिखीं जा रहीं हैं। हालांकि यह परेशान करनेवाली बातें नहीं है क्योंकि जब कोई विधा विकास और साहित्य में स्थापित होने के लिए अग्रसर होती है तो उस विधा को कुछ नकारात्मक लेखन का भी सामना करना पड़ता है। इस नकारात्मक लेखन का प्रभाव हिन्दी ग़ज़ल पर भी पड़ा है। शायद यही कारण है कि छन्द को नहीं जाननेवाले आलोचक कथ्य की ही ख्रूंट पकड़कर हिन्दी ग़ज़ल के पीछे हथियार लेकर दौड़ रहे हैं। लेकिन यह चिंता का विषय नहीं है क्योंकि ग़ज़ल लेखन के साकारात्क पक्ष काफी मजबूत हैं।

<p>ग़ज़ल लेखन की कला एवं इसकी बारीकियों की गहराई को जान लेना ही ग़ज़ल लेखन की शर्तें नहीं है। छन्दानुशासन के भीतर जो इसका सौन्दर्यवोध होता है, वह बिम्व,प्रतीक और संकेतों के अर्थपूर्ण समन्वय की कला है। हिन्दी में ग़ज़ल लेखन की जो परंपरा विकसित हुई है,वह कई मायने में हिन्दी कविता के लिए महत्वपूर्ण तो है ही साथ ही इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि ग़ज़ल के नाम पर कुछ अर्थहीन और प्रभावहीन ग़ज़लें लिखीं जा रहीं हैं। हालांकि यह परेशान करनेवाली बातें नहीं है क्योंकि जब कोई विधा विकास और साहित्य में स्थापित होने के लिए अग्रसर होती है तो उस विधा को कुछ नकारात्मक लेखन का भी सामना करना पड़ता है। इस नकारात्मक लेखन का प्रभाव हिन्दी ग़ज़ल पर भी पड़ा है। शायद यही कारण है कि छन्द को नहीं जाननेवाले आलोचक कथ्य की ही ख्रूंट पकड़कर हिन्दी ग़ज़ल के पीछे हथियार लेकर दौड़ रहे हैं। लेकिन यह चिंता का विषय नहीं है क्योंकि ग़ज़ल लेखन के साकारात्क पक्ष काफी मजबूत हैं।</p>

ग़ज़ल लेखन की कला एवं इसकी बारीकियों की गहराई को जान लेना ही ग़ज़ल लेखन की शर्तें नहीं है। छन्दानुशासन के भीतर जो इसका सौन्दर्यवोध होता है, वह बिम्व,प्रतीक और संकेतों के अर्थपूर्ण समन्वय की कला है। हिन्दी में ग़ज़ल लेखन की जो परंपरा विकसित हुई है,वह कई मायने में हिन्दी कविता के लिए महत्वपूर्ण तो है ही साथ ही इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि ग़ज़ल के नाम पर कुछ अर्थहीन और प्रभावहीन ग़ज़लें लिखीं जा रहीं हैं। हालांकि यह परेशान करनेवाली बातें नहीं है क्योंकि जब कोई विधा विकास और साहित्य में स्थापित होने के लिए अग्रसर होती है तो उस विधा को कुछ नकारात्मक लेखन का भी सामना करना पड़ता है। इस नकारात्मक लेखन का प्रभाव हिन्दी ग़ज़ल पर भी पड़ा है। शायद यही कारण है कि छन्द को नहीं जाननेवाले आलोचक कथ्य की ही ख्रूंट पकड़कर हिन्दी ग़ज़ल के पीछे हथियार लेकर दौड़ रहे हैं। लेकिन यह चिंता का विषय नहीं है क्योंकि ग़ज़ल लेखन के साकारात्क पक्ष काफी मजबूत हैं।

 

हिन्दी ग़ज़लकारों में कुछ नाम अत्यधिक चर्चा में है तो वह हिन्दी ग़ज़ल की स्थापना की कड़ी में देखा जा सकता है। इसी कड़ी के रुप में माधव कौशिक का नाम भी हिन्दी के एक महत्वपूर्ण ग़ज़लकार के रूप में लिया जाता है। इसका प्रमुख कारण है कि माधव कोैशिक ने हिन्दी ग़ज़ल पर काफी काम किया है। कई ग़ज़ल संग्रह उनके प्रकाशित हो चुके हैं। इन्ही ग़ज़ल संग्रहों में से एक ग़ज़ल संग्रह ‘ सारे सपने बागी हैं’ हाल ही में वाणी प्रकाशन से छपकर पाठकों के समक्ष आया है। संग्रह में कुल 96 ग़ज़लें हैं। यह विभिन्न भावों संकेतो और विम्बों से लैश है। साथ ही इन ग़ज़लों में कहन का सौन्दर्य और पाठ में सहज लयात्मकता है। उदाहरण के तौर पर

अपने दिल का हाल सुनाना कम से कम
आंखों में आंसू लाना कम से कम

— — — —

मिलने वाली चीजें खुद मिल जाती हैं
अपने दामन को फैलाना कम से कम

उपरोक्त वर्णित शेरों में माधव कौशिक की प्रगति​शील चिंता तो है ही साथ ही दु:ख, तकलीफ, मजबूरियों का तल्ख एहसास भी है और अपने इन एहसास को नई सोंच के साथ तकलीफ के विरूद्ध समाज को डटे रहने की प्रेरणा देते हैं। हिन्दी ग़ज़ल के प्रसिद्ध आलोचक अनिरूद्ध सिन्हा द्वारा इनकी ग़ज़लों के बारे में की गयी टिपण्णी—” माधव कौशिक की ग़ज़लों में सादगी है। समाज की बोलती बतियाती तस्वीरें हैं जिसमें एक मध्यवर्गीय जीवन का एक जीवंत चित्र प्रस्तुत होता है।” सचमूच में ” सपने सारे बागी हैं” की अधिकांश ग़ज़लें मध्यवर्गीय जीवन की व्याख्या करते हुए मुश्किलों से लड़ने की दलीलें भी पेश करती है। आज का जीवन सचमूच में भीतर से लहूलुहान है इसी लहूलुहान जीवन और रिश्तों के बीच माधव कौशिक कहते हैं कि—

बेयकीनी ने हमें अंदर से अंधा कर दिया
गर यकीं हो तो पहाड़ों का जिगर​ हिलता भी है।

बावजूद इसके माधव कौशिक ग़ज़लों का कैनवॉस काफी बड़ा है जिसमें धूप, नदी, वारिश, घटा, रंग—बिरंगे फूल आदि जीवन उत्सव के कई चित्र मिलते हैं कारण है माधव कौशिक अवसाद की चादर ओढ़कर पाठकों के समक्ष नहीं आते हैं बल्कि अपनी खुली आंखों में कुछ बेहतर चित्र लेकर भी प्रस्तुत होते हैं। मसलन—

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जीवन का क्या कोई मानक होता है
खूशबू का आरंभ अचानक होता है

——  ———

बेहतर है कोई चिंगारी निकले क्यों
हिंसा का परिणाम भयानक होता है

कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि ‘ सपने सारे बागी हैं’ कि ग़जलों में एक साथ रोमांच, रहस्य, जीवन भविष्य की कल्पना  और विद्रोह की सुगबुगाहट है। इन ग़ज़लों से गुजरने के बाद पाठकों को आत्मबल मिलेगा।

समीक्षित कृति— सारे सपने बागी हैं
(ग़ज़ल संग्रह)
गज़लकार —  माधव कौशिक
मूल्य  —  125 रुपये
प्रकाशक —  वाणी प्रकाशन
4695, 21ए दरियागंज
नई दिल्ली
110002

संपर्क—

कुमार कृष्णन, स्वतंत्र पत्रकार

मोबाइल— 09304706646, 07042239015

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