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चित्तौड़ में अखिलेश के कृतित्व पर हुआ दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन

चित्तौडगढ: जो आपके अन्दर है, यदि आप सावधान न हुए, वह नष्ट भी करता है, रूग्ण बनाता है। चाहे जिन्दगी हो या साहित्य, आप किसी आन्यंतिक छबि, विचार या उम्मीद से मोहग्रस्त रहे और जो नया आपके नजदीक आने के लिए छटपटा रहा है- उस सबको अनदेखा किया तो फिर अन्धकूप में गिरना होगा। विख्यात हिन्दी कथाकार अखिलेश ने ‘संभावना’ द्वारा चित्तौड़गढ़ में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार ‘‘समकालीन परिदृश्य और अखिलेश का साहित्य‘‘ के उद्घाटन सत्र में कहा कि शिल्प और भाषा फन्दे की तरह है। लेखक के पास भी यथार्थ, संवेदना, विचार, भावों इत्यादि के गोले के लच्छे होते है और वह फन्दा डालता है। उन्होंने अपने चर्चित उपन्यास ‘निर्वासन‘ तथा आत्मकथ्य ”भूगोल की कला‘‘ के कुछ अंशों का पाठ भी किया।

चित्तौडगढ: जो आपके अन्दर है, यदि आप सावधान न हुए, वह नष्ट भी करता है, रूग्ण बनाता है। चाहे जिन्दगी हो या साहित्य, आप किसी आन्यंतिक छबि, विचार या उम्मीद से मोहग्रस्त रहे और जो नया आपके नजदीक आने के लिए छटपटा रहा है- उस सबको अनदेखा किया तो फिर अन्धकूप में गिरना होगा। विख्यात हिन्दी कथाकार अखिलेश ने ‘संभावना’ द्वारा चित्तौड़गढ़ में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार ‘‘समकालीन परिदृश्य और अखिलेश का साहित्य‘‘ के उद्घाटन सत्र में कहा कि शिल्प और भाषा फन्दे की तरह है। लेखक के पास भी यथार्थ, संवेदना, विचार, भावों इत्यादि के गोले के लच्छे होते है और वह फन्दा डालता है। उन्होंने अपने चर्चित उपन्यास ‘निर्वासन‘ तथा आत्मकथ्य ”भूगोल की कला‘‘ के कुछ अंशों का पाठ भी किया।

            उद्घाटन सत्र में सुखाडिया विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. माधव हाड़ा ने कहा कि किसी भी रचना की सफलता का साक्ष्य है कि पाठक महसूस करने लगे कि यह मेरी रचना है। प्रो. हाड़ा ने कहा कि शिल्प और यथार्थ को दो ध्रुव मानने की परिपाटी के बीच अखिलेश ही ऐसे रचनाकार है जिनके पास ऐसा दुर्लभ संयम है कि रचना का यथार्थ का निर्मम रूप आए और आख्यान की कला भी पूरी दिखाई दे। यह हमारी जातीय परम्परा की याद दिलाने वाला गद्य है जिसमें बतरस का सुख है तो औपनिवेशिक राष्ट्र के स्वतन्त्रचेता मानस का स्वतन्त्र अहसास भी। इसी सत्र में ‘बनास जन‘ के सम्पादक डॉ.पल्लव ने ‘सम्भावना‘ के बनने का इतिहास बताते हुए इस सेमीनार की प्रासंगिकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि अपने लेखन और सम्पादन के कारण अखिलेश हमारे समय के सांस्कृतिक योद्धा है।
            उद्घाटन सत्र में जिला पुलिस अधीक्षक प्रसन्न खमेसरा ने नयी पीढी को साहित्य से जोड़ने की आवश्यकता बताते हुए अपनी अध्ययनशीलता के प्रसंग सुनाए। संयोजन कर रहे सेमीनार के निदेशक डॉ. कनक जैन ने अतिथियों का परिचय दिया। चन्देरिया लेड जिंक स्मेल्टर मजदूर यूनियन के महासचिव घनश्याम सिंह राणावत ने अतिथियों का स्वागत किया। चन्देरिया लेड जिंक स्मेल्टर के यूनिट हेड राजेश कुंडु एवं पुलिस अधीक्षक खमेसरा ने प्रतिभागी साहित्यकारों को स्मृति चिन्ह भेंट किये। उद्घाटन सत्र में आभार देते हुए सम्भावना के अध्यक्ष डॉ. के.सी.शर्मा ने साहित्य, संस्कृति के लिए संस्थान की प्रतिबद्धता दर्शाई।
            ‘नब्बे के दशक की हिन्दी कहानी और अखिलेश’ शीर्षक से हुए दूसरे सत्र में ज्ञानपीठ युवा सम्मान विजेता डॉ. राजीव कुमार ने पत्र वाचन में कहा कि अखिलेश ने सत्ता की क्रूरता, सामाजिकता के ह्रास और मानवीय मूल्यों के चरण की अभिव्यक्ति को अपनी कहानियों का प्रस्थान बिन्दु बनाया। जनपक्षधरता का यह प्रमाण है कि परिवार, प्रेम, मूल्यगत ह्रास, राजनैतिक लोलुपता और व्यवस्था के दुष्चक्र को अखिलेश अपनी कहानियों में गम्भीरता से प्रस्तुत करते है। सत्र के मुख्य वक्ता आगरा से आए युवा आलोचक डॉ. प्रियम अंकित ने अखिलेश की कहानी ‘चिट्ठी’ को दिलो दिमाग पर छा जाने वाली रचना बताते हुए कहा कि भौतिक नैतिक संकट को भांपने वाली यह रचना बताती है कि अखिलेश भावुकता से दूर रहते है। उनकी भाषा और शैली की ताकत उनकी कहानियों में आ रहे खिलदंड़ेपन से देखा जा सकता है। उनका यह शिल्प बदल रहे सामाजिक यथार्थ से उपजा है और अपने नयेपन के कारण नब्बे की पीढ़ी के बाद के कथाकारों पर इसका गहरा असर है। सत्र का संयोजन कर रहे आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिकारी लक्ष्मण व्यास ने नब्बे के आसपास हुए सामाजिक व राजनैतिक परिवर्तनों को रेखांकित किया जिनका गहरा असर रचनाशीलता पर है। अध्यक्षता कर रहे कवि-आलोचक डॉ.सत्यनारायण व्यास ने कहा कि कहानियों ने ही अखिलेश के व्यक्तित्व को रचा है और घनानंद की तरह वे ‘मोहिं तो मोरे कवित्त बनावत’ अर्थात निजी मौलिक शैली का आविष्कार करते है। डॉ.व्यास ने कहा कि आदमी और आदमीयत के लिए व अखिलेश की कहानी कला को सच्चे अर्थों में जनधर्मी और सच्चा माना जाएगा।
सेमीनार के तीसरे सत्र में ‘उपन्यास में अखिलेश’ विषय पर मुख्य वक्ता युवा आलोचक डॉ. पल्लव ने कहा कि अखिलेश का औपन्यासिक लेखन हमारे समय की जटिल स्थितियों का उद्घाटन करता है और इस जटिलता की जड़ों की तलाश करता है। उन्होंने ‘निर्वासन’ को मनुष्यता के निर्वासन से जोड़ते हुए कहा कि जिन दिनों राजसत्ताएं हत्याओं और मनुष्य विरोधी कृत्यों का समर्थन कर रही हैं तब यह उपन्यास मनुष्यता के पक्ष में बड़ा क्रिटिक रचता है। सत्र में पत्रवाचन कर रही राजस्थान विश्ववि़द्यालय में हिन्दी की सहायक आचार्य डा. रेणु व्यास ने कहा कि युवा बेरोजगार की पीड़ा का यथार्थ अंकन अखिलेश के उपन्यास ‘अन्वेषण’ उपन्यास की सफलता है, किन्तु इसी धुंधली आशा का अन्वेषण इस उपन्यास की सार्थकता है। सत्र की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ आलोचक प्रो. नवलकिशोर ने कहा कि ‘निर्वासन’ पिछले सौ-सवा सौ वर्षों से आधुनिक समय में गतिमान सभ्यताओं के उत्तरोत्तर विकास में मौजूद मानवीय नियति के अकेलेपन से उत्सर्जित भयानक हाहाकार को अपने भीतर समाहित किये हुए है। सत्र का संयोजन कर रहे महाविद्यालय के प्राध्यापक डा. राजेन्द्र सिंघवी ने अतिथियों का परिचय भी दिया।
            समापन सत्र में ‘साहित्यिक पत्रकारिता और तद्भव‘ विषय पर मुख्य वक्ता डूंगरपुर कालेज के प्राध्यापक डॉ हिमांशु पण्ड्या ने अखिलेश द्वारा सम्पादित पत्रिका ‘तद्भव‘ की डेढ़ दशक की विकास यात्रा का वर्णन करते हुए कहा कि इस दशक की महत्वपूर्ण रचनाशीलता का तद्भव में रेखांकन हुआ। ‘तद्भव‘ के हर नए अंक का आना हिन्दी समाज में एक बौद्धिक उत्तेजना का परिचायक होता है। यह पत्रिका अकादमिक होते हुए भी अपने दौर के महत्वपूर्ण सवालों से रूबरू हुई।  इसी सत्र में अखिलेश ने सेमीनार के आयोजकों का आभार प्रदर्शित करते हुए कहा कि चित्तौड़गढ़ के इस आयोजन में आना अभिभूत करने वाला है। ‘तद्भव‘ के पाठक और महाविद्यालय प्राध्यापक डॉ. राजेश चौधरी ने पत्रिका से अपने जुड़ाव की बात करते हुए इसकी उपलब्धियों की चर्चा की। सत्र की अध्यक्षता कर रहे ‘चौपाल’ पत्रिका के सम्पादक डॉ. कामेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा कि लघु पत्रिकाएं अपने समय की सच्चाइयों को सार्वजनिक करने का विकल्प रही हैं। सिंह ने कहा कि साहित्यिक पत्रकारिता का यह दौर भूमण्डलीकरण के समानान्तर स्थानिकता और देशजता का मंच उपलब्ध करवा रहा है। अपने पर हुई चर्चा पर कृतज्ञता भाव से अखिलेश ने साहित्य को समाज के लिए प्राणवायु जैसा जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि साहित्य और लघु पत्रिकाएं समाज के मानसिक एवम् बौद्धिक उत्तेजन के लिए आवश्यक साधन हैं, जिससे मनुष्य जीवन को बेहतर एवं गुणवत्तापूर्ण बनाया जा सके। इस सत्र का संयोजन बी.एन. कालेज, उदयपुर के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. हुसैनी बोहरा ने किया। सेमिनार के अंत में कट्टरतावादियों के शिकार बने शहीदों एम.एम.कलबुर्गी, गोविन्द पानसरे, नरेंद्र दाभोलकर के प्रति दो मिनिट का मौन रख श्रद्धांजलि दी गई। विख्यात कवि वीरेन डंगवाल को भी इसी सत्र में श्रद्धांजलि दी गई।
            आयोजन स्थल पर लगी लघु पत्रिका प्रदर्शनी का उदघाट्न कवि-विचारक सदाशिव श्रोत्रिय ने किया और प्रदर्शनी में हिंदी की लगभग दो सौ लघु पत्रिकाएं प्रदर्शित की गई थीं। दो दिन के इस आयोजन में पत्रकार जे.पी.दशोरा, नटवर त्रिपाठी, सन्तोष शर्मा, गोपाल जाट, सत्येन्द्र सनाढ्य, जी.एन.एस. चैहान, डा अखिलेश चाष्टा, अश्लेष दशोरा, अजय सिंह, के.के. दशोरा, हरीश खत्री, सत्यनारायण खटीक, महेन्द्र नन्दकिशोर, बाबूखां, के.एम.भण्डारी, मुन्नालाल डाकोत, कृष्णा सिन्हा, भावना शर्मा, शीतल पुरोहित सहित बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।

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