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उत्तराखंड में भांग की खेती की मंजूरी के खिलाफ गोपेश्वर से देहरादून तक पैदल मार्च का ऐलान

आदरणीय महानुभाव, गत कई वर्षों से हमारा संगठन अनेक पर्यावरणीय बिन्दुओं पर संघर्ष व आवाजें उठाते आता रहा हैI 1992 में पद्मविभूषित व चिपको आन्दोलन के नेता श्री सुन्दर लाल बहुगुणा जी के नेतृत्व में 200 बुद्धिजीवियों की सहमति से हिमालयी क्षेत्र के विभिन्न मुद्दों को लेकर हिमालय बचाओ आन्दोलन का जन्म हुआI वर्तमान में हम लोग उत्तराखंड, जो हिमालयी राज्य का एक हिस्सा है, उसके जल, जंगल, जमीन के साथ- साथ जवानी के संरक्षण की लड़ाई भी लड़ रहे हैंI 2013 में 16 दिन की पद यात्रा व 2014 में 28 दिनों की पद यात्रा की गई जो पहाड़ के विभिन्न गाँव से होते हुए पहले मलेथा फिर दूसरे चरण में गैरसैण पहुँचीI साथ में विभिन्न आंदोलनों के साथ–साथ 2015 में मलेथा में क्रेशर के विरोध में एक सफल व निर्णायक लड़ाई भी लड़ी गईI

<p>आदरणीय महानुभाव, गत कई वर्षों से हमारा संगठन अनेक पर्यावरणीय बिन्दुओं पर संघर्ष व आवाजें उठाते आता रहा हैI 1992 में पद्मविभूषित व चिपको आन्दोलन के नेता श्री सुन्दर लाल बहुगुणा जी के नेतृत्व में 200 बुद्धिजीवियों की सहमति से हिमालयी क्षेत्र के विभिन्न मुद्दों को लेकर हिमालय बचाओ आन्दोलन का जन्म हुआI वर्तमान में हम लोग उत्तराखंड, जो हिमालयी राज्य का एक हिस्सा है, उसके जल, जंगल, जमीन के साथ- साथ जवानी के संरक्षण की लड़ाई भी लड़ रहे हैंI 2013 में 16 दिन की पद यात्रा व 2014 में 28 दिनों की पद यात्रा की गई जो पहाड़ के विभिन्न गाँव से होते हुए पहले मलेथा फिर दूसरे चरण में गैरसैण पहुँचीI साथ में विभिन्न आंदोलनों के साथ–साथ 2015 में मलेथा में क्रेशर के विरोध में एक सफल व निर्णायक लड़ाई भी लड़ी गईI</p>

आदरणीय महानुभाव, गत कई वर्षों से हमारा संगठन अनेक पर्यावरणीय बिन्दुओं पर संघर्ष व आवाजें उठाते आता रहा हैI 1992 में पद्मविभूषित व चिपको आन्दोलन के नेता श्री सुन्दर लाल बहुगुणा जी के नेतृत्व में 200 बुद्धिजीवियों की सहमति से हिमालयी क्षेत्र के विभिन्न मुद्दों को लेकर हिमालय बचाओ आन्दोलन का जन्म हुआI वर्तमान में हम लोग उत्तराखंड, जो हिमालयी राज्य का एक हिस्सा है, उसके जल, जंगल, जमीन के साथ- साथ जवानी के संरक्षण की लड़ाई भी लड़ रहे हैंI 2013 में 16 दिन की पद यात्रा व 2014 में 28 दिनों की पद यात्रा की गई जो पहाड़ के विभिन्न गाँव से होते हुए पहले मलेथा फिर दूसरे चरण में गैरसैण पहुँचीI साथ में विभिन्न आंदोलनों के साथ–साथ 2015 में मलेथा में क्रेशर के विरोध में एक सफल व निर्णायक लड़ाई भी लड़ी गईI

वर्तमान में जवानी के संरक्षण को लेकर कई संगठन काम कर रहे हैं लेकिन हाल में ही उत्तराखंड सरकार द्वारा भांग की खेती के लिए लाइसेंस दिए जाने के प्रस्ताव व मंजूरी को लेकर नौजवानों के साथ समुदाय के विभिन्न वर्गों के लोगों का भविष्य नशे की गिरफ्त में नजर आता दिख रहा हैI जहाँ विदेशों में मंडुआ जैसे उत्पादन को बेबी फूड्स में तब्दील करके आर्थिकी की बढ़ोत्तरी में अग्रसर है वहीँ यह सब को दरकिनार कर बस कुछ पूंजीपति, ठेकेदार, माफिया, इत्यादि लोगों की आर्थिकी के स्रोत को देखते हुए नौजवानों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा हैI

1930 में अंग्रजो द्वारा क़ानून तोड़ने के लिए नमक बनाने के लिए डांडी मार्च किया गया था, उसी के चलते हम नौजवान भांग की खेती के खिलाफ ‘डांडी मार्च’ आगामी 25 अक्टूबर से कर रहे हैं, जो गोपेश्वर (चमोली जिला) से देहरादून तक पैदल चलेगी व 8 नवम्बर को राज्य स्थापना दिवस से पूर्व गाँधी पार्क देहरादून पहुंचेगी। यहां पहाड़ के मूल भूत सुविधाओं के लिए चल रहे जनांदोलानों के समर्थन व सरकार की इन आंदोलनों के प्रति जवाबदेही तय करने हेतु ‘सत्याग्रह’ के लिए बैठेंगेI आप सभी लोग इस आंदोलन में शिरकत करें, कवर करें, मार्गदर्शन करें, यह अपेक्षा है।

समीर रतूड़ी
सत्याग्रह
जनांदोलनों की आवाज
[email protected]

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