सांप-सपेरों के देश भारत को धर्म-अध्यात्म, योग और विचारों का गढ़ भी माना जाता रहा है। तमाम विद्वान और जाने-माने धर्म गुरु अपने प्रवचनों में भारत की चमकीली विरासत का हवाला भी देते रहे हैं और तमाम राजनेता तो सालों से राम राज्य का सपना भी दिखाते आए हैं। इसमें कोई शक नहीं कि धर्म का प्रचार-प्रसार और अधिक बढ़ता जा रहा है। अब सभी धर्म, सम्प्रदाय और जाति के लोग लामबंद तो होने लगे, मगर इसके साथ ही अलग-अलग खानों में बंटने भी लगे हैं। आरक्षण के साथ-साथ तमाम मोर्चों पर ये संघर्ष साफ-साफ नजर भी आता है, जिसे हम वर्ग संघर्ष की संज्ञा भी दे सकते हैं। मौजूदा समय और काल को कलयुग भी कहा जाता है। हम सबने सतयुग तो देखा नहीं, मगर तमाम ग्रंथों में ही उसका उल्लेख मिलता रहा है।
दुनिया भले ही चांद से लेकर मंगल तक पहुंच जाए और विज्ञान भी लगातार तरक्की करता रहे, मगर धर्म के प्रति आस्था कहीं भी डगमगाती नहीं है। उलटा दिनों दिन धर्म के साथ-साथ आध्यात्म, योग का विस्तार ही हो रहा है। तमाम धार्मिक स्थलों पर पहले की तुलना में कई गुना भीड़ उमडऩे लगी है, जिसके दीगर कारण भी हैं, जिनमें सुगम आवागमन और वाहनों के बढ़ते साधनों, सुख-सुविधाओं का भी बड़ा योगदान है। हमारे देश में धर्म, आध्यात्मिक और वैचारिक गुरुओं की कमी नहीं है। अभी अगले ही साल उज्जैन में सिंहस्थ 2016 का विराट आयोजन होने जा रहा है, जिसमें देशभर के संत-महात्मा और उनसे जुड़े अखाड़े तो शामिल होंगे ही, वहीं लाखों-करोड़ों धर्मालु भी पहुंचेंगे। एक तरफ धार्मिक आयोजनों की संख्या बढ़ती जा रही है, तमाम त्यौहार बड़े जोशोखरोश के साथ मनाए जाते हैं और इसी कड़ी में अभी इंदौर में तीन दिन का धर्म-धम्म सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें एक आध्यात्मिक गुरु के लिए भी सबसे अधिक भीड़ उमड़ी और महिलाओं-लड़कियों को उनके चरणों के स्पर्श के लिए पागलों की तरह चीखते-चिल्लाते, दौड़ लगाते देखा गया।
यह बात अलग है कि उनके उद्बोधन में मुझे तो कोई खासियत नजर नहीं आई, मगर ये आस्था का सवाल है और इसके साथ ही तगड़ा मार्केटिंग फंडा भी नजर आया। इसमें भी कोई शक नहीं कि एक तरफ जहां धर्म गुरुओं की भीड़ बढ़ती जा रही है और साथ ही आयोजन भी, बावजूद इसके समाज में अनाचार, दुराचार और भ्रष्टाचार के साथ-साथ तमाम अवैध गतिविधियां भी कम होने की बजाय बढ़ती जा रही है। आम इंसानों के दुख-दर्द भी यथावत हैं और साम्प्रदायिक तनाव भी बढ़ता जा रहा है। आए दिन देश के किसी ना किसी हिस्से में दंगा होने की खबरें भी आती है। जब इंदौर में ही धर्म सम्मेलन हो रहा था, तब खरगोन, ग्वालियर में साम्प्रदायिक हिंसा भड़की और खरगोन में तो कफ्र्यू तक लगाना पड़ा। अब सवाल यह है कि तमाम मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों और गिरिजाघरों से लेकर धार्मिक आस्था के केन्द्रों की संख्या बढ़ती जा रही है और धर्म गुरुओं की तादाद भी कम नहीं हैं। बावजूद इसके आम इंसान अकेला और दुखियारा क्यों नजर आता है..? बल्कि समाज में ऐसे कई चेहरे मिल जाएंगे जिन्होंने अनाचार, दुराचार और भ्रष्टाचार के बलबुते पर धन सम्पदा, ऐश्वर्य और प्रतिष्ठा अर्जित कर ली और भरपूर मेहनत, मजदूरी करने वाले को दो वक्त की दाल-रोटी भी ठीक तरह से नसीब नहीं है… पता नहीं ऐसे सवालों के जवाब कब मिलेंगे..?
लेखक राजेश ज्वेल हिन्दी पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक हैं. सम्पर्क – 098270-20830 Email : [email protected]