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एक कहानी……….रुश्दी

पारसी धर्म में रक्त की पवित्रता  पर बहुत ध्यान देते हैं यहां तक की वह शुद्ध रक्त ना मिलने पर रक्तदान अस्वीकार करके मौत तक चुन लेते हैं। मगर रुश्दी इस से भी ज्यादा  महत्व भावना की पवित्रता पर देती थी इसीलिए उसने अर्पण से विवाह किया था। परिवार की इच्छा के विपरीत विवाह हमेशा से  संबंधो को चलाने का एक मानसिक दबाव बनाये रहता है लेकिन यहां पर ऐसी कोई समस्या नहीं थी क्योकि जहां रुश्दी ऍम.टेक. की गोल्ड मेडलिस्ट थी वहीं अर्पण का भी मानसिक स्तर उच्च था। मतभेद  की स्थिति में दोनों ही झुकने के लिए तैयार रहते थे।

<p>पारसी धर्म में रक्त की पवित्रता  पर बहुत ध्यान देते हैं यहां तक की वह शुद्ध रक्त ना मिलने पर रक्तदान अस्वीकार करके मौत तक चुन लेते हैं। मगर रुश्दी इस से भी ज्यादा  महत्व भावना की पवित्रता पर देती थी इसीलिए उसने अर्पण से विवाह किया था। परिवार की इच्छा के विपरीत विवाह हमेशा से  संबंधो को चलाने का एक मानसिक दबाव बनाये रहता है लेकिन यहां पर ऐसी कोई समस्या नहीं थी क्योकि जहां रुश्दी ऍम.टेक. की गोल्ड मेडलिस्ट थी वहीं अर्पण का भी मानसिक स्तर उच्च था। मतभेद  की स्थिति में दोनों ही झुकने के लिए तैयार रहते थे।</p>

पारसी धर्म में रक्त की पवित्रता  पर बहुत ध्यान देते हैं यहां तक की वह शुद्ध रक्त ना मिलने पर रक्तदान अस्वीकार करके मौत तक चुन लेते हैं। मगर रुश्दी इस से भी ज्यादा  महत्व भावना की पवित्रता पर देती थी इसीलिए उसने अर्पण से विवाह किया था। परिवार की इच्छा के विपरीत विवाह हमेशा से  संबंधो को चलाने का एक मानसिक दबाव बनाये रहता है लेकिन यहां पर ऐसी कोई समस्या नहीं थी क्योकि जहां रुश्दी ऍम.टेक. की गोल्ड मेडलिस्ट थी वहीं अर्पण का भी मानसिक स्तर उच्च था। मतभेद  की स्थिति में दोनों ही झुकने के लिए तैयार रहते थे।

रुश्दी रोज़ सुबह अर्पण के जाने से पहले टिफिन देती और फिर चार बजे तक उसके आने का इंतजार करती। अर्पण हमेशा ही शाम को उसके लिए कुछ लाया करता था। मेट्रो शहर की ये एक खासियत होती है की यहां पड़ोसियों से सम्बन्ध रखना स्टेटस सिम्बल के खिलाफ होता है। इसलिए रुश्दी अकेले ही रहती थी, इस स्थिति से वो संतुष्ट तो नहीं थी पर वो कभी कुछ कहती नहीं थी। वो अर्पण से इस विषय पर बात करने ही वाली थी. कि तभी अर्ध्य ने उसके जीवन में एक नया उत्साह भर दिया अब उसका समय अपने बेटे अर्ध्य के साथ काफी  खुशनुमा बीत रहा था। वो अब उसके साथ ऊपर चिड़ियों को दाना खिलाती यहां  तक की दोनों मिलकर चिड़ियों का नाम भी रखते थे।
दोपहर को नीचे से निकलने फेरीवालों की आवाज़ दोनों के लिए एक खेल जैसी होती थी। अर्ध्य सब्जी वाले की नक़ल उतारकर उसे बुलाता। यह देख कर रुश्दी हंसती फिर सब्जी लेती। कभी-कभी रुश्दी जब आटा गूंथती तो उसका बाल उसके चेहरे पर आ जाते  जिसको वो अपने निचले होंठ के दायीं तरफ के हिस्से से फूंक कर हटा देती। जब उसके सामने बैठा अर्ध्य यही दोहराता तो वो हंसती और उसे गले लगा लेती। जीरो वाट के नीले बल्ब से चमकते उसके बेडरूम में भी अर्ध्य के दिनभर की प्रगति रिपोर्ट ही सुनाई पड़ती थी, क्योंकि रुश्दी को ये अर्पण के डेली ऑफिस अचीवमेंट से ज्यादा अच्छी लगती थी फिर भी वह मन रखने के लिए उसकी बातों में हामी भरती रहती थी। लेकिन धीरे-धीरे अर्ध्य का स्कूल जाने का समय आने लगा। रुश्दी ने उसका एडमिशन एक अच्छे स्कूल में कराया। आज वो पहला दिन था, जब रुश्दी ने अर्पण और अर्ध्य का टिफिन साथ-साथ लगाया उसने अर्ध्य के टिफिन में उसकी मन पसंद कुछ टॉफी रखी। शाम को लौटने पर उसे रोज़ की तरह अर्पण के गिफ्ट की तो उम्मीद थी पर आज अर्ध्य भी उसके लिए कुछ लाया था अर्ध्य ने उसे टिफिन से बचायी एक टॉफी दी। यह खाकर उसे उतना ही अच्छा महसूस हुआ जितना की पहली बार अर्पण के साथ डिनर पर हुआ था।
इधर अर्पण को एक नए सेक्टर का काम मिल गया और उधर अर्ध्य भी नए दोस्तों,वातावरण और नयी दुनिया को समझने में लग गया। लेकिन विचित्र  बात ये थी कि दोनों नयी दुनिया अनजाने लोगो में ख़ुशी देख रहे थे। और उन्हें मिल भी रही थी, पर रुश्दी फिर अकेली हो रही थी। वह अपने पास के जाने पहचाने लोगो में ख़ुशी तलाश रही थी पर उसे मिल नहीं रही थी। वो मानसिक रूप से अस्वस्थ  हो रही थी पर किसी से कुछ नहीं कहती। वो हर शाम चार बजे एक मुस्कुराते चेहरे के साथ ही दिखती। एक दिन वो कुछ ज्यादा कमजोरी और बीमारी महसूस कर रही थी उसने बड़ी हिम्मत के साथ ये बात अर्ध्य से कही और बोला की कुछ दिन स्कूल मत जाओ पर उसने कहा की ”क्या फालतू का मजाक कर रही हो आप ” इतना सुनते ही उसको अचानक रोना-सा आने वाला था। लेकिन वो रोई नहीं और गले से थूक गटकते हुए मुस्कुरायी टिफिन लगायी और बोली मैं तो मजाक कर रही थी। फिर बजे शाम के चार घर पर अर्पण आया, अर्ध्य आया पर रुश्दी नज़र नहीं आ रही अब रुश्दी नहीं थी, चिड़िया थी फेरी वाले थे,सब्जी वाला था पर रुश्दी नहीं थी कहीं नहीं थी।।

SAKSHAM DWIVEDI
 Research on indian dispora
 mahatma gandhi internataional university wardha

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