आज गिरीश तिवारी गिर्दा की पांचवी पुण्य तिथि है। गिर्दा एक युग, एक संास्कृतिक संसार, एक रचनाधर्मिता, एक सवाल-अनेक जवाब, एक मयालू ददा, अपनत्व की मूर्ति और गरीब गुरुबों, दमित, दबे कुचलों के हमदर्द, गिर्दा आपके बारे में कह नहीं सकते, कहने की औकात हम पैदा नही कह पाये। लेकिन हृदय से जो समझ रहे हैं वो ये है कि हमने 5 साल पहले आपको खो दिया। गिर्दा! उत्तराखण्ड और उत्तराखण्ड के लोगों के बारे में आपका सोच स्प्ष्ट था। यहां की रीति-नीति, शासन व्यवस्था, जल-जंगल-जमीन सब आपके रटे थे, शिक्षा, रोजगार का नक्शा आपके पास था। हम कह नही सकते गिर्दा कि आप होते तो ये सब हो जाता लेकिन इतना कह रहे हैं कि कुछ नहीं हुआ। 15 साल के राज्य में कुकर्ओ ही बची है, कठुओं के हाथ चला गया, रीति-नीति गायब है। प्रतिरोध की जो ज्वाला आप में धधकती थी आपकी विदाई के साथ वह गायब हो गयी है।
गिर्दा! पांच साल पांच युग लग रहे हैं और लूट का बाजार सजा हुआ है। प्रतिरोध नहीं हो तो चोर भी लुटेरा हो जायेगा। हो गये हैं। डर व शर्म बची नही है। कुतर्कों का बोलबाला है। सब हो रहा है लेकिन हमारी चुप्पी कायम है। जो कुछ कर रहे हैं उन्हें हम समर्थन नही कर रहे हैं, इतिहास हमारे अपराध लिख रहा है।
गिर्दा! हम कितना याद करें, आपका कविता का कितना वाचन करें आपके गीतों का कितना पाठ करें हम आपके रास्ते नही चल रहे हैं। कोई राह सूझ नही रही और कोई सूझने को तैयार भी नही है। एक जडता है, एक खोल में हम सिमट गये हैं। शायद अहम् सत्यम् जगत मिथ्या का दर्शन ओढ कर हम आपके कृतित्व व्यक्तित्व से नाइंसाफी कर रहे हैं।
गिर्दा! क्या आपके युग की वह आग जो बहुतों में धधकती थी, एक दूसरे को समझने और सम्मान देने सहायता के लिए दौड पडने की भावना क्या हममें आयेगी? क्या हम संघर्ष और शहादतों से मिले राज्य को लुटेरों के हवाले रहने दें? गैरसैंण के नाम पर एक तदर्थवाद जिस पर नेता रोटी सेकने को आतुर है को बेनकाब करने को हम क्या करें? जल-जंगल-जमीन जो किसी भी व्यक्ति-राष्ट्र-राज्य की पूंजी होती है उसकी लूट को कैसे बचायें? सब प्रतिरोध से बचेगा जो है नही।
गिर्दा! आपको दुखी नही करना चाहते, लेकिन हमने सुख दिया ही क्या? आपके जाने के 5 साल बाद भी वही और वही सवाल न केवल हैं बल्कि और तीखे हुए है तो राज्य और राज्य के लोंगों की दशा-दिशा सही नही है। भौंडे गीत और उसी ढंग का साहित्य संस्कृति के लिए खिलवाड बना है जो कुछ ठीक आ रहा है उसका समर्थन नही है।
गिर्दा! आपको नमन-नमन और अनंत नमन।
लेखक पुरुषोत्तम असनोड़ा उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार हैं.