नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का एक फोटो सोशल मीडिया पर अधिक चर्चा का विषय है और इलेक्ट्रॉनिक के साथ-साथ प्रिंट मीडिया में भी इसे यह कहकर प्रचारित किया जा रहा है कि कल तक भ्रष्टाचार के खिलाफ लडऩे वाले केजरीवाल ने आखिरकार चारा घोटाले के आरोपी रहे लालूप्रसाद यादव को गले लगा लिया। यह एक सामन्य बुद्धि की बात है कि जब भी कोई व्यक्ति मिलता है तो सौजन्यवश उससे हाथ मिलाना या गले मिलना एक शिष्टाचार के तहत आता है।
क्या अरविन्द केजरीवाल देश के ऐसे पहले नेता हैं जिन्होंने किसी दागी व्यक्ति से हाथ मिलाया या उसके गले लग गए और इससे यह बात भी कहां साबित होती है कि केजरीवाल ने लालू यादव के घोटालों को अपना समर्थन दे दिया। ना तो केजरीवाल ने लालू यादव को अपनी पार्टी में शामिल किया और ना ही वे खुद उनकी पार्टी में शामिल हुए या अन्य किसी तरह का गठजोड़ किया हो। नीतीश कुमार के मंच पर सभी मौजूद थे, जिनमें केजरीवाल भी शामिल रहे और तब लालू यादव ने अगर अपना हाथ बढ़ाया तो क्या केजरीवाल पीछे हट जाते..? क्या भ्रष्टाचार पर रोजाना चिल्ला-चिल्लाकर भाषण देने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लालू यादव से हाथ नहीं मिलाए और गले भी नहीं मिले..? बल्कि राजनीति में तो कट्टरविरोधियों के यहां गमी से लेकर शादियों में भी आना-जाना सामान्य शिष्टाचार माना जाता है।
लालू-मुलायम और दिग्गी के परिवार में हुए विवाह समारोह में श्री मोदी सहित तमाम नेता पहुंचे और सभी ने हाथ भी मिलाए और गले भी लगे, तो इसका मतलब क्या निकाला जाए कि श्री मोदी ने भी लालू यादव के भ्रष्टाचार का समर्थन कर दिया..? आए दिन तमाम राजनेताओं से लेकर फिल्मी सितारों, क्रिकेट खिलाडिय़ों की ऐसी तस्वीरें भी सामने आती हैं, जिनमें वे किसी माफिया डॉन या आपराधिक व्यक्ति के साथ खड़े हैं। सार्वजनिक जीवन में यह संभव ही नहीं है कि आप किसी से हाथ ना मिलाएं या उसके साथ फोटो खिंचवाने से परहेज करें।
कई बड़े-बड़े पत्रकारों ने कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन से लेकर माफिया डॉन दाउद इब्राहिम और ऐसे लोगों के इंटरव्यू लिए हैं और उनसे बकायदा हाथ भी मिलाया, तो इसका मतलब यह तो नहीं है कि उक्त पत्रकार ने उनके काले धंधों का समर्थन कर दिया। लालू और अरविन्द केजरीवाल का फोटो देखकर ही यह अंदाज लगाया जा सकता है कि जहां लालू तो प्रसन्नचित्त हैं, वहीं केजरीवाल असहज नजर आ रहे हैं। मेरा यहां पर कदापि केजरीवाल की आरती उतारने का उद्देश्य नहीं है, लेकिन हर बात को तिल का ताड़ बनाकर किसी को निशाना बनाना भी कैसे जायज ठहराया जा सकता है..? अरविन्द केजरीवाल कुछ भी करें तो उसमें विपक्ष के साथ-साथ मीडिया को भी तकलीफ होती है। बिहार चुनाव प्रचार के दौरान भी इसी तरह की बातें प्रचारित की गईं और अब फोटो को लेकर जबरन का हंगामा बरपाया जा रहा है।
लेखक राजेश ज्वेल जाने-माने हिन्दी पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक हैं. सम्पर्क – 098270-20830 Email : [email protected], [email protected]