हिंदुओं की बढती आक्रामकता हैरान कर देने वाली है। हमेशा शांत रहने वाला हिंदु अचानक से इतना आक्रामक क्यों हो गया?? अहिंसा परमो धर्म पर चलने वाला हिंदु आज हिंसा को अपने धर्म की रक्षा के लिए इस्तेमाल कैसे करने लग गया? केंद्र में हिंदु समर्थित दक्षिणपंथी सरकार का पूर्ण बहुमत होना इसकी वजह है या फिर वाकई हिंदुओं के सर से पानी अब ऊपर जा चुका है? उत्तरप्रदेश के दादरी में गौमांस रखने की अफवाह पर इख्लाक नाम के मुस्लिम व्यक्ति की बेकाबू भीड ने पीट पीट कर हत्या कर दी..मुंबई में शिवसेना के द्वारा सुधींद्र कुलकर्णी के मुंह पर स्याही फेंकना और वो भी इसलिए क्योंकि कुलकर्णी साहब पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद कसूरी की किताब की लांचिंग भारत में करवा रहे थे..जम्मू कश्मीर विधानसभा में निर्दलीय विधायक के द्वारा बीफ पार्टी देने पर तमाचा मारना और उसके बाद उसके मुंह पर कालिख पोत देना…पीसीबी के अध्यक्ष शहरयार का बीसीसीआई के दफ्तर में घुसकर विरोध करना…ये कुछ उदाहरण है जो हिंदुओं में बढ़ रही धार्मिक कट्टरता को बताते हैं।
तो क्या अपने धर्म की रक्षा के लिए किसी की हत्या करना धार्मिक कट्टरता है। ऐसा कौन-सा धर्म है जो कहता हो कि धर्म की रक्षा के लिए हत्या तक कर दी जाए। धर्म और कट्टरता दो अलग अलग शब्द है..धर्म का कट्टरता से कोई लेना-देना नहीं है और न ही कट्टरता का धर्म से। वो तो आज की परिस्थितियों ने ऐसा खेल खेला जिससे धर्म और कट्टरता एक-दूसरे के दोस्त बन गए और बन गया धार्मिक कट्टरता। यदि हम पहले कट्टरता की बात करें तो कट्टर व्यक्ति वह होता है जिसकी सोचने समझने की क्षमता खत्म हो चुकी हो और वो सिर्फ अब एक ऐसा गुड्डा बन चुका है जिसका कोई भी अपने स्वार्थ के लिए फायदा उठा सकता है। और रही बात धर्म की तो धर्म तो वो होता है जिसके सिद्धांत, आदर्श, संस्कार और परंपराएं हम बचपन से मानते आते हैं। धर्म के द्वारा हमें नैतिक शिक्षा मिलती है, न कि कट्टरता।
धार्मिक कट्टरता हमेशा आतंकवाद को उपजाती है। मुत्लिम राष्ट्रों और संगठनों ने इस्लाम की रक्षा के लिए कुछ गुड्डे तैयार किए जो अपने धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए हिंसा का सहारा ले। इन गुड्डों ने हिंसा का सहारा लिया और काफी हद तक अपने मजहब या धर्म का प्रचार-पारसार करने में सफल भी हुए। इसका परिणाम ये हुआ कि पूरे विश्व में आतंकवाद बढता गया और बाद में कुछ बुद्धिजीवियों द्वारा इसे मुस्लिम आतंकवाद की संज्ञा दे दी गई। यदि अभी तक हुए आतंकवादी हमलों को देखे तो उन सब हमलों का संबंध इस्लाम से रहा है।
आतंकवाद को हमेशा से धर्म से अलग ही रखा गया है। लेकिन पिछले कुछ समय से भारत और विश्व में कुछ ऐसी अप्रिय घटनाएं घटित हुई हैं जिससे आतंकवाद का संबंध प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से धर्म से जुड़ गया है। यूं कहने को तो आतंकवाद न अच्छा होता है न ही बुरा। आतंकवाद कुछ कुंठित और हिंसापरस्त लोगों का काम होता है जो अपनी कुंठा को जाहिर करने के लिए धर्म का सहारा लेते हैं। लेकन आजकल ये कुठा समाज में कुछ ज्यादा ही बढ़ती जा रही है। समाज का हर तीसरा व्यक्ति कुंठित होते जा रहा है और अपने धर्म की रक्षा के लिए वो किसी भी हद तक जा सकता है। जो समाज और देश के लिए खतरनाक तो है ही, साथ ही उसके लिए भी खतरनाक है जो इस तरह की कट्टरता के जरिए अपनी कुंठा जाहिर करता है।
जब विश्व में मुस्लिम आतंकवाद बढ़ा तो हिंदु कट्टर बन गए। तो हो सकता है कल को कोई अन्य व्यक्ति अपने धर्म की रक्षा के लिए कट्टर बन जाए। इस तरह हो सकता है कि पूरे विश्व में और देश में धर्म के नाम पर लडाईयां होने लगे। और समाज का हर व्यक्ति अपने धर्म की रक्षा के लिए हिंसा को अपना हथियार बनाले। तब जाकर कहीं आतंकवाद धर्म से पूर्णत: जुड़ सकता है। और आतंकवाद एक नई संज्ञा के साथ अस्तित्व में आ सकता है- धार्मिक आतंकवाद।
प्रियंक द्विवेदी
भोपाल
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