मेहनत, खून-पसीना बहाकर, शरीर को तोड़कर जागरण को सींचकर बड़ा करने वाला, अपना और परिवार के भविष्य का सपना बुनने वाला जागरण का वरिष्ठ कर्मचारी दर-दर की ठोंकरे खा रहा है। जिन कर्मचारियों की बदौलत आज जागरण सर्वश्रेष्ठ पेपर की श्रेणी से लबालब है, वहीं जागरण के सीईओ को वही कर्मठ, मेहनती, ईमानदार कर्मचारी फूटी आंख से भी नहीं सुहा रहे हैं। इन्हीं कर्मचारियों की बदौलत जागरण को धन-धान्य अर्जित करने की सीमा तक याद नहीं है। हमारा सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य- माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की धज्जियां उड़ाने में माहिर दैनिक जागरण प्रबंधन देश को दान देकर दानबीर कर्ण बन रहे हैं। जो दान दिया जा रहा है वह कर्मचारियों की खून-पसीने की कमाई है। कर्मचारियों के भविष्य, परिवार को उजाड़कर देश का भविष्य संवारने में अग्रणी बनकर देश के प्रधानमंत्री साहब को दिव्य भ्रम में रखकर अपना उल्लू सीधा करने की जुगत लगा रहे हैं।
मैं भी आप तक अपने मन की बात पहुंचाना चाहता हूं। मैंने 1991 से दैनिक जागरण में कर्मठ, निष्ठा, मेहनत, ईमानदारी से कार्य करते हुए उम्र के 50 वर्ष काट दिया। मेरा जेडी नंबर -0016 है। पद बड़ा-वेतन छोटा यही जागरण की नीति है। किंतु परिवार और पेट भरने के चलते इसे भी सहन किया। वरिष्ठ कर्मचारियों को देखकर जागरण सीईओ की भौंहे चढ़ जाती। वरिष्ठ पीटीएस आपरेटर को चपरासी से कम वेतन देकर अपमानित करते रहे। इस पर भी तसल्ली नहीं हुई तो रिजाइन ही मांग लिया। नहीं देने पर तबादला कर दिया। 50 वर्ष की उम्र परिवार के साथ रहकर, सुख-दुःख में अपना बचा-खुचा जीवन बिताने की जगह दूरदराज तबादला करके मरने को मजबूर करता है जागरण।
मुझे जागरण ने 21-5-2012 से बेरोजगार कर रखा है। न्याय की आस में अदालत की दर पर दस्तक दे रखा है किंतु भूखे पेट कैसे भजन हो। न्यायालय की आंख पर पट्टी बंधी है। उसे खुलने में वक्त लगेगा। जब तक पट्टी खुलेगी- मेरे शरीर पर कफन बंधा होगा। ऐसा लगता है दैनिक जागरण ने न्याय के हर दरवाजे पर अपनी दस्तक दे रखा है। हमारा हक देश को दानकर वहां भी पॉलिश मार दिया। अब न्याय किससे मांगा जाए?
दूसरे दफ्तरों की पोल खोलना, कमियां उजागर करना, अधिकार के लिए अधिकारियों तक आवाज बुलंद करने वाला दैनिक जागरण की पोल खोलने, उसकी ज्यादतियों के शिकार कर्मचारियों की सुध लेने वाला कोई तो अवतरित होगा- कब होगा? कहां होगा? कैसे होगा? देर है पर अंधेर नहीं की कहावत के सहारे बची खुची जिंदगी निर्णायक मोड़ पर ढलते सूरज की भांति इंतजार कर रही है।
रामजीवन गुप्ता
जेडी-0016