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पीएफ को लेकर जनसंदेश का जीएम खेल रहा गंदा खेल

जनसंदेश टाइम्स लखनऊ जब से धरातल पर आया तभी से विवादों का गढ़ बना हुआ है। एनआरएचएम के पैसों से खोला गया अखबार सरकार की नीयत टेढ़ी होते ही मालिक को हवालात में पहुंचा दिया गया। बाद के दिनों में जनसंदेश के जितने बड़े कर्मचारी थे सब पर ईडी की और सीबीआई की टेढ़ी नजर रही। समय बीतता गया और मालिक के जेल जाने के कुछ दिनों बाद ही तात्कालिक जीएम मंटू जैन भी जेल के सलाखों के पीछे पहुंच गए। इतना सब होने के बाद अखबार धरातल से और नीचे की तरफ खिसकना शुरू हो गया। इसके बाद तो जितने भी लोग जीएम बनकर आए उन सबने सिर्फ और सिर्फ जनसंदेश टाइम्स को दोनों हाथ से लूटने का काम किया। कुछ दिनों तक अनुज पोद्दार ने लूटा उसके बाद अब विनीत मौर्या कुंडली मारे बैठे हैं और लगातार दोनों हाथों से जनसंदेश का पैसा समेटने में लगे हैं। विनीत मौर्या की गंदी नीयत इसी बात से दिखने लगी कि उन्होंने मालिकान को तो यह रिपोर्ट देना शुरू किया कि जनसंदेश टाइम्स बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। मार्केट में रेप्यूटेशन भी बहुत अच्छी है। मालिक उनके इन बातों से अपनी आंख बंद किए रहते थे और विनीत मौर्या संस्थान के छोटे से छोटे कर्मचारी का भी पैसा मारकर अपनी तिजोरी भरने में लगे रहे। संस्थान 2011 में शुरू हुआ था और उसी साल मार्च महीने से लगभग आधे से ज्यादा कर्मचारियों का पीएफ कटना शुरू हो गया था। उस समय भी संस्थान ने कर्मचारियों की सैलरी से तो पैसा काटा लेकिन वह पैसा न तो पीएफ ऑफिस में जमा किया और न ही जनसंदेश में अपना पैसा जमा किया। नतीजतन 2011 से आज 2015 तक किसी के भी खाते में पीएफ का कोई पैसा नहीं आया। अब जब सारे कर्मचारियों ने सवाल करने शुरू किए तो संस्थान की तरफ से जवाब मिलने के बजाय जीमए इन कर्मचारियों से मुलाकात भी नहीं करते और एचआर का कमरा हमेशा खाली मिलता है।

<p>जनसंदेश टाइम्स लखनऊ जब से धरातल पर आया तभी से विवादों का गढ़ बना हुआ है। एनआरएचएम के पैसों से खोला गया अखबार सरकार की नीयत टेढ़ी होते ही मालिक को हवालात में पहुंचा दिया गया। बाद के दिनों में जनसंदेश के जितने बड़े कर्मचारी थे सब पर ईडी की और सीबीआई की टेढ़ी नजर रही। समय बीतता गया और मालिक के जेल जाने के कुछ दिनों बाद ही तात्कालिक जीएम मंटू जैन भी जेल के सलाखों के पीछे पहुंच गए। इतना सब होने के बाद अखबार धरातल से और नीचे की तरफ खिसकना शुरू हो गया। इसके बाद तो जितने भी लोग जीएम बनकर आए उन सबने सिर्फ और सिर्फ जनसंदेश टाइम्स को दोनों हाथ से लूटने का काम किया। कुछ दिनों तक अनुज पोद्दार ने लूटा उसके बाद अब विनीत मौर्या कुंडली मारे बैठे हैं और लगातार दोनों हाथों से जनसंदेश का पैसा समेटने में लगे हैं। विनीत मौर्या की गंदी नीयत इसी बात से दिखने लगी कि उन्होंने मालिकान को तो यह रिपोर्ट देना शुरू किया कि जनसंदेश टाइम्स बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। मार्केट में रेप्यूटेशन भी बहुत अच्छी है। मालिक उनके इन बातों से अपनी आंख बंद किए रहते थे और विनीत मौर्या संस्थान के छोटे से छोटे कर्मचारी का भी पैसा मारकर अपनी तिजोरी भरने में लगे रहे। संस्थान 2011 में शुरू हुआ था और उसी साल मार्च महीने से लगभग आधे से ज्यादा कर्मचारियों का पीएफ कटना शुरू हो गया था। उस समय भी संस्थान ने कर्मचारियों की सैलरी से तो पैसा काटा लेकिन वह पैसा न तो पीएफ ऑफिस में जमा किया और न ही जनसंदेश में अपना पैसा जमा किया। नतीजतन 2011 से आज 2015 तक किसी के भी खाते में पीएफ का कोई पैसा नहीं आया। अब जब सारे कर्मचारियों ने सवाल करने शुरू किए तो संस्थान की तरफ से जवाब मिलने के बजाय जीमए इन कर्मचारियों से मुलाकात भी नहीं करते और एचआर का कमरा हमेशा खाली मिलता है।</p>

जनसंदेश टाइम्स लखनऊ जब से धरातल पर आया तभी से विवादों का गढ़ बना हुआ है। एनआरएचएम के पैसों से खोला गया अखबार सरकार की नीयत टेढ़ी होते ही मालिक को हवालात में पहुंचा दिया गया। बाद के दिनों में जनसंदेश के जितने बड़े कर्मचारी थे सब पर ईडी की और सीबीआई की टेढ़ी नजर रही। समय बीतता गया और मालिक के जेल जाने के कुछ दिनों बाद ही तात्कालिक जीएम मंटू जैन भी जेल के सलाखों के पीछे पहुंच गए। इतना सब होने के बाद अखबार धरातल से और नीचे की तरफ खिसकना शुरू हो गया। इसके बाद तो जितने भी लोग जीएम बनकर आए उन सबने सिर्फ और सिर्फ जनसंदेश टाइम्स को दोनों हाथ से लूटने का काम किया। कुछ दिनों तक अनुज पोद्दार ने लूटा उसके बाद अब विनीत मौर्या कुंडली मारे बैठे हैं और लगातार दोनों हाथों से जनसंदेश का पैसा समेटने में लगे हैं। विनीत मौर्या की गंदी नीयत इसी बात से दिखने लगी कि उन्होंने मालिकान को तो यह रिपोर्ट देना शुरू किया कि जनसंदेश टाइम्स बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। मार्केट में रेप्यूटेशन भी बहुत अच्छी है। मालिक उनके इन बातों से अपनी आंख बंद किए रहते थे और विनीत मौर्या संस्थान के छोटे से छोटे कर्मचारी का भी पैसा मारकर अपनी तिजोरी भरने में लगे रहे। संस्थान 2011 में शुरू हुआ था और उसी साल मार्च महीने से लगभग आधे से ज्यादा कर्मचारियों का पीएफ कटना शुरू हो गया था। उस समय भी संस्थान ने कर्मचारियों की सैलरी से तो पैसा काटा लेकिन वह पैसा न तो पीएफ ऑफिस में जमा किया और न ही जनसंदेश में अपना पैसा जमा किया। नतीजतन 2011 से आज 2015 तक किसी के भी खाते में पीएफ का कोई पैसा नहीं आया। अब जब सारे कर्मचारियों ने सवाल करने शुरू किए तो संस्थान की तरफ से जवाब मिलने के बजाय जीमए इन कर्मचारियों से मुलाकात भी नहीं करते और एचआर का कमरा हमेशा खाली मिलता है।

एचआर का कर्मचारी सुजीत मिश्रा है। उससे जब बात की गई तो उसने बड़े बेबाकी से कहा कि संस्थान ने यह तय कर लिया है कि वह पीएफ ऑफिस में एक पत्र भेज रहे हैं जिसमें यह बताया जायेगा पीएफ कार्यालय को कि यह सारे पीएफ की मांग करने वाले कर्मचारियों ने ज्वाइन तो किया था। लेकिन एक दो महीने कार्य करने के बाद छोड़ दिया। मजेदार बात तो यह है कि इस बात को सुनने के बाद ऐसा लगा कि या तो जनसंदेश टाइम्स के जीएम और इस एचआर कर्मचारी को पीएफ विभाग का कायदा कानून नहीं पता या वह यह समझ रहे हैं कि पीएफ विभाग इनकी इस बेवकूफी में आ जाएगा। हां इतना जरूर है कि कई सारे कर्मचारी जब संस्थान में जाकर यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि उनका पीएफ एकाउंट नंबर क्या है तो एचआर कर्मी सुजीत मिश्रा किसी को भी उनका एकाउंट नंबर नहीं बता रहे। इतना ही नहीं कार्यालय में रहते हुए विनीत मौर्या किसी कर्मचारी से नहीं मिल रहे हैं। वहीं फोन करने पर पूरी घंटी बजती रहती है लेकिन फोन नहीं उठाया जाता है। कुछ कर्मचारियों ने तो पीएफ कार्यालय में जाकर अपना लेजर तक निकलवाया जिसमें पीएफ के पैसे के नाम पर 200 या 150 रुपए ही दिख रहे हैं। इसकी शिकायत भी पीएफ ऑफिस में कर दी गई है और पीएफ ऑफिस में जवाब के तौर पर कहा है कि हम आपकी शिकायत को स्वीकार करते हुए इस शिकायत को ऑनलाइन करेंगे और एक हफ्ते के अंदर कार्रवाई करते हुए आपको अवगत कराया जायेगा। यह शिकायत तो उन कर्मचारियों की है जिन्होंने संस्थान में रहते हुए अपना पीएफ एकाउंट नंबर जान लिया था। जिन कर्मचारियों ने संस्थान पर भरोसा करते हुए संस्थान छोडऩे के बाद अपना एकाउंट नंबर तक जानना चाह रहे हैं उन्हें संस्थान उनका पीएफ एकाउंट नंबर तक नहीं बता रहे। एचआर कर्मचारी सुजीत मिश्रा यह तो खुलेआम कहता फिर रहा है कि जीएम विनीत मौर्या पीएफ का पैसा जमा करने के मूड में नहीं हैं लेकिन इन सबके बावजूद जनसंदेश टाइम्स का यह एचआर कर्मचारी लगभग हर रोज लखनऊ के पीएफ कार्यालय जरूर जाता है।
अब सवाल यह उठता है कि जनसंदेश का यह कर्मचारी रोज पीएफ कार्यालय किस मकसद से जाता है। क्योंकि अब तक जनसंदेश टाइम्स की तरफ से पीएफ के एकाउंट में कोई भी पैसा नहीं जमा है और न ही जीएम विनीत मौर्या का पीएफ का पैसा जमा करने का कोई मकसद दिख रहा है फिर रोज-रोज एचआर कर्मी सुजीत मिश्रा पीएफ कार्यालय जाने का क्या अभिप्राय हो सकता है। कहीं पीएफ कार्यालय और जनसंदेश की मिलीभगत तो नहीं चल रही। जो भी हो आने वाला समय न तो जनसंदेश टाइम्स के लिए बेहतर है और न ही जीएम विनीत मौर्या और एचआर कर्मी सुजीत मिश्रा के लिए अच्छे दिन हैं। क्योंकि जिन लोगों के पास अपना पीएफ एकाउंट नंबर है वह तो सीधे पीएफ कार्यालय पर दबाव बना रहे हैं लेकिन जिन कर्मियों के पास पीएफ एकाउंट नंबर उपलब्ध नहीं है वह कर्मचारी विनीत मौर्या और सुजीत मिश्रा के खिलाफ हजरतगंज कोतवाली में कानूनी कार्रवाई के लिए एकजुट हो रहे हैं। इंतजार कीजिए विवादों के जनसंदेश टाइम्स का विवाद और भी कई रूपों में आपको दिखाई देगा। हर दिन इसका एक नया रूप आपके समक्ष भड़ास फॉर जर्नलिस्ट के माध्यम से पहुंचाया जाएगा।

एक कर्मचारी द्वारा भेजे गए मेल के आधार पर

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