Sanjaya Kumar Singh : इंडियन एक्सप्रेस की जिस खबर के लिए आज हर कोई तारीफ कर रहा है वह जनसत्ता में पहले पेज पर नहीं है। यह है देश की पत्रकारिता, आज के मीडिया संस्थान और हिन्दी का सच। प्रभाष जी के जमाने में एक्सप्रेस की कितनी ही एक्सक्लूसिव, गोपनीय और धमाकेदार खबरें कैसे-कैसे अनुवाद और कंपोज होकर छपीं हैं (जब डेस्क पर लोगों को पता भी नहीं होता था कि कोई धमाकेदार खबर जा रही है)।
आज तकनीक और सूचना क्रांति के इस युग में जब अनुवाद और कंपोज होना चुटकी बजाने की तरह आसान है, कोई संस्थान अपनी ही एक्सक्लूसिव खबर अपने ही संस्थान के दूसरे अखबार में छापने की जरूरत नहीं समझता है तो जनसत्ता को चलाते रहने तथा उसकी कीमत पांच रुपए रखने का मतलब समझने की जरूरत है।
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से.
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