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जेएनयू पर बेशर्म हमलों के विरोध में इप्टा, पढ़िए पूरा वक्तव्य

भारतीय जन नाट्य संघ इप्टा राष्ट्रवाद के नाम पर हो रहे शैक्षणिक संस्थानों पर सुनियोजित हमले और अभिव्यक्ति, भाषण और असहमति की स्वतंत्रता के अधिकार के आपराधिक अतिक्रमण की कड़ी भर्त्सना करता है। जिस बेशर्मी के साथ जेएनयू, दिल्ली विश्वविद्यालय, हैदराबाद सैण्ट्र्ल यूनिवर्सिटी के छात्रों और अध्यापकों पर निराधार -अपमानजनक आरोप लगाए जा रहे हैं और उनके खिलाफ मीडिया-अदालतें  खोल दी गई हैं वह उनके संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण हैं। यह हमला कोई इकलौता और अचानक हुआ हमला नहीं है। यह भारतीय संविधान में सन्निहित बुनियादी मूल्यों के पक्ष में  खड़े वैज्ञानिक और धर्मनिरपेक्ष विचार के खिलाफ चल रही एक सोची समझी साजिश का एक चरण है।

<p>भारतीय जन नाट्य संघ इप्टा राष्ट्रवाद के नाम पर हो रहे शैक्षणिक संस्थानों पर सुनियोजित हमले और अभिव्यक्ति, भाषण और असहमति की स्वतंत्रता के अधिकार के आपराधिक अतिक्रमण की कड़ी भर्त्सना करता है। जिस बेशर्मी के साथ जेएनयू, दिल्ली विश्वविद्यालय, हैदराबाद सैण्ट्र्ल यूनिवर्सिटी के छात्रों और अध्यापकों पर निराधार -अपमानजनक आरोप लगाए जा रहे हैं और उनके खिलाफ मीडिया-अदालतें  खोल दी गई हैं वह उनके संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण हैं। यह हमला कोई इकलौता और अचानक हुआ हमला नहीं है। यह भारतीय संविधान में सन्निहित बुनियादी मूल्यों के पक्ष में  खड़े वैज्ञानिक और धर्मनिरपेक्ष विचार के खिलाफ चल रही एक सोची समझी साजिश का एक चरण है।</p>

भारतीय जन नाट्य संघ इप्टा राष्ट्रवाद के नाम पर हो रहे शैक्षणिक संस्थानों पर सुनियोजित हमले और अभिव्यक्ति, भाषण और असहमति की स्वतंत्रता के अधिकार के आपराधिक अतिक्रमण की कड़ी भर्त्सना करता है। जिस बेशर्मी के साथ जेएनयू, दिल्ली विश्वविद्यालय, हैदराबाद सैण्ट्र्ल यूनिवर्सिटी के छात्रों और अध्यापकों पर निराधार -अपमानजनक आरोप लगाए जा रहे हैं और उनके खिलाफ मीडिया-अदालतें  खोल दी गई हैं वह उनके संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण हैं। यह हमला कोई इकलौता और अचानक हुआ हमला नहीं है। यह भारतीय संविधान में सन्निहित बुनियादी मूल्यों के पक्ष में  खड़े वैज्ञानिक और धर्मनिरपेक्ष विचार के खिलाफ चल रही एक सोची समझी साजिश का एक चरण है।

 

दक्षिणपंथी ताकतें एक खतरनाक असहिष्णुता और उन्माद की संस्कृति को एक व्यवस्थित और नियमित तरीके से बढ़ावा दे रही है, जो भावनाओं की आड़ में आपराधिक सामूहिक हिंसा को जायज ठहराती है।  ऐसी कई घटनाएं हैं, जिनमें नरेन्द्र डाभोलकर, गोबिन्द पानसरे, एम एम कलबुर्गी जैसी प्रगतिशील और जन-पक्षधर आवाजों की हत्या कर दी गई है। जिन बुद्धिजीवियों, लेखकों, कलाकारों और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं ने अभिव्यक्ति और असहमति की आज़ादी पर हुए इन आपराधिक हमलों  विरोध किया वे सभी अपमान और उत्पीड़न का निशाना बने हैं। दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग शब्दों और संकल्पनाओं को मनमाफिक मायने दे रहे हैं। देशद्रोह को सभी किस्म के विचार और असहमति को दबाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, जबकि देशद्रोह की कानूनन व्याख्या इससे एकदम अलग है। कानून की तोड़ी मरोड़ी व्याख्या के आधार पर दिल्ली पुलिस द्वारा किये जा रहे प्रो. अली जावेद, प्रो. निर्मलांग्शु मुखर्जी, प्रां. विजय सिंह, प्रो. तृप्ता वाही और प्रो. एस ए आर गीलानी के उत्पीड़न की हम भर्त्सना करते हैं।

विश्वविद्यालयों पर हालिया हमले एक कोशिश हैं तर्क और लोकतंत्र की उन आवाजों को दबाने की जिन्होंने दक्षिणपंथ द्वारा  पोषित किए जा रहे लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष संस्कृति पर किए जा रहे हमलों के खिलाफ एक देशव्यापी आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया। जे एन यू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को एक झूठे वीडियो के आधार पर हिरासत में रखना उनकी एकाधिकारवादी, दलित विरोधी और सांप्रदायिक मंशा को उजागर करता है। जिस तरह से कबीर कला मंचा के दलित साँस्कृतिक कार्यकर्ताओं को लगातार प्रताड़ना और हमलों को झेलना पड़ रहा है, जिस तरह से 19 फरवरी को एक मुस्लिम वरिष्ठ पुलिसकर्मी के साथ बदतमीजी करने और हमला करने वाले तत्वों पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है और जिस तरह से कन्हैया कुमार और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित वरिष्ठ वकीलों के पैनल पर पर न्यायिक प्रक्रिया की मर्यादा का उल्लंघन करके हमला करने वाले लोगों का सम्मान किया जा रहा है, उनकी एकाधिकारवादी, दलित विरोधी और सांप्रदायिक मंशा और स्पष्ट रूप से उजागर होती है।

इप्टा का यह स्पष्ट मत है कि हैदराबाद सेन्ट्रल युनिवर्सिटी में रोहिथ वेमुला और उनके साथी छात्रों पर झूठे इल्जाम लगाकर उनको  परेशान किया गया और उनके सामाजिक बहिष्कार की स्थितियां पैदा की गई, जिसके चलते रोहिथ की जान गई। यह सब दक्षिपंथी व्यवस्था तंत्र द्वारा छात्र-दलित-अल्पसंख्यक एकजुटता को दबाने के लिए किया गया। आई आई टी -बी एच यू के प्रो. संदीप पांडे की बर्खास्तगी और ग्वालियर में प्रो. विवेक कुमार तथा बी एच यू में प्रो. बदरी नारायन पर हुए हमले सत्ता तंत्र के दलित-दमित विरोधी चरित्र का प्रमाण है। इस बात में कोई शक नहीं है कि मौजूदा सरकार एक दमनकारी एवं प्रतिगामी व्यवस्था की संरक्षक है। इप्टा जेएनयू एवं देश के अन्य विश्वविद्यालयों के छात्रों एवं अध्यापकों के नेतृत्व में अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए चल रहे संघर्ष का पुरजा़ेर समर्थन करता है। दमन और सामूहिक हिंसा की संस्कृति और लोकतांत्रिक, प्रगतिशील एवं धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर हमला करने वालो को मिल रहे सत्ता संरक्षण के विरूद्ध उनकी इस लड़ाई में इप्टा उनके साथ संघर्षरत रहेगा। इप्टा का राष्ट्रीय सचिव मंडल देशभर में फैली इप्टा की सभी इकाइयों से ये अपील करती है कि वे इप्टा की परंपरा को बनाए रखते हुए समानधर्मी संगठनों के साथ मिलकर भारत की लोकतांत्रिक, प्रगतिशील एवं धर्मनिरपेक्ष संस्कृति के पक्ष में कार्यक्रम करें।

यह वक्तव्य इप्टा के राष्ट्रीय मंडल की 20 फरवरी 2016 को हुई लखनउ बैठक में श्री रनबीर सिंह -अध्यक्ष,  हिमांशु राय -उपाध्यक्ष, राकेश -महासचिव, राजेश श्रीवास्तव -संयुक्त सचिव,  मनीष श्रीवास्तव -संयुक्त सचिवद एवं विनीत तिवारी -आमंत्रित सदस्य एवं महासचिव, म.प्र. प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा जारी किया गया.

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