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मुलायम सिंह यादव ने जेपी समूह को वन विभाग की 2500 एकड़ ज़मीन का किया अवैध आवंटन!

सीबीआई जांच की मांग, भूमि पर किये खनन से हुयी हानि की भरपाई जेपी समूह से करायी जाये

लखनऊ : जेपी समूह को वर्ष 2006 में मुलायम सिंह सरकार द्वारा वन विभाग की 2500 एकड़ भूमि के अवैध अवैध आवंटन  के मामले की हो सीबीआई जाँच” यह मांग आज एस.आर.दारापुरी भूतपूर्व आई.जी. तथा राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने प्रेस को जारी विज्ञप्ति में उठाई है. उन्होंने आगे कहा है कि उक्त भूमि मुलायम सिंह सरकार द्वारा वर्ष 2006 में सोनभद्र स्थित यूपी सीमेंट कारपोरेशन के दिवालिया होने पर जेपी समूह को बेचते समय दी गयी थी.

<h3>सीबीआई जांच की मांग, भूमि पर किये खनन से हुयी हानि की भरपाई जेपी समूह से करायी जाये</h3> <p>लखनऊ : जेपी समूह को वर्ष 2006 में मुलायम सिंह सरकार द्वारा वन विभाग की 2500 एकड़ भूमि के अवैध अवैध आवंटन  के मामले की हो सीबीआई जाँच” यह मांग आज एस.आर.दारापुरी भूतपूर्व आई.जी. तथा राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने प्रेस को जारी विज्ञप्ति में उठाई है. उन्होंने आगे कहा है कि उक्त भूमि मुलायम सिंह सरकार द्वारा वर्ष 2006 में सोनभद्र स्थित यूपी सीमेंट कारपोरेशन के दिवालिया होने पर जेपी समूह को बेचते समय दी गयी थी.</p>

सीबीआई जांच की मांग, भूमि पर किये खनन से हुयी हानि की भरपाई जेपी समूह से करायी जाये

लखनऊ : जेपी समूह को वर्ष 2006 में मुलायम सिंह सरकार द्वारा वन विभाग की 2500 एकड़ भूमि के अवैध अवैध आवंटन  के मामले की हो सीबीआई जाँच” यह मांग आज एस.आर.दारापुरी भूतपूर्व आई.जी. तथा राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने प्रेस को जारी विज्ञप्ति में उठाई है. उन्होंने आगे कहा है कि उक्त भूमि मुलायम सिंह सरकार द्वारा वर्ष 2006 में सोनभद्र स्थित यूपी सीमेंट कारपोरेशन के दिवालिया होने पर जेपी समूह को बेचते समय दी गयी थी.

यह ज्ञातव्य है कि वन विभाग की उक्त भूमि यूपी सीमेंट कारपोरेशन को 90 वर्ष की लीज़ पर दी गयी थी और लीज़ की शर्तों के अनुसार कारपोरेशन यह ज़मीं किसी दूसरे को नहीं दे सकता था. कारपोरेशन को उक्त भूमि की ज़रुरत न होने अथवा लीज़ अवधि समाप्त होने पर उक्त भूमि वन विभाग को ही वापस की जानी थी. मुलायम सरकार ने 2006 में सीमेंट कारपोरेशन के दिवालिया घोषित किये जाने पर सीमेंट कारपोरेशन को औने पौने दामों पर जेपी समूह को बेच दिया था और साथ ही वन विभाग की उक्त भूमि को भी गलत ढंग से उसे दे दिया था. 2007 में उक्त भूमि का कब्ज़ा मायावती सरकार द्वारा जेपी समूह को दिया गया था. इस पर उसी समय वन विभाग द्वारा आपत्ति की गयी थी परन्तु किन्हीं विशेष कारणों से उक्त भूमि वन विभाग न लौटा कर जेपी समूह को दे दी गयी.

तब से लेकर जेपी समूह उक्त ज़मीन पर चूना और पत्थर का खनन करता आ रहा था. सीएजी और केंद्र सरकार ने गलत ढंग से वन विभाग की ज़मीन दिए जाने का हवाला देते हुए इस पर आपत्ति उठाई थी. सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अवैध तरीके से उक्त ज़मीन देकर सरकारी खजाने को 450 करोड़ का चूना लगाया गया है. इसकी वजह से ही संबधित वन प्रभागों की दस वर्षीय कार्ययोजना को मंज़ूरी देने से इनकार कर दिया गया था. जब मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, तो प्रदेश सरकार ने वहां यह ज़मीन गलती से दिए जाने की बात स्वीकार की. इस पर जब सुप्रीम कोर्ट ने यह पूछा कि सरकार उक्त ज़मीन वापस लेने के लिए क्या कार्रवाही कर रही है तो सरकार ने आनन फानन में ज़मीन  वापस लेने का निर्णय लिया है और फैसले से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराने जा रही है.

अब सवाल यह पैदा होता है कि सीमेंट कारपोरेशन को जेपी समूह को बेचे जाने पर वन विभाग की ज़मीन सम्बन्धी लीज़ की शर्तों के विपरीत उक्त भूमि जेपी समूह को कैसे आवंटित की गयी? इस के लिए कौन ज़िम्मेदार है और उसे दण्डित किया जाये? दूसरे अवैध आवंटन के फलस्वरूप समूह द्वारा किये गए खनन से 450 करोड़ के नुक्सान की भरपाई कौन करेगा? अतः आइपीएफ मांग करता है कि इस नुक्सान की भरपाई जेपी समूह से ही करायी जाए  क्योंकि भूमि के गलत आवंटन से उन्होंने ने ही अवैधानिक लाभ उठाया है. इस मामले में सरकार और जेपी समूह की सांठगाँठ से बहुत बड़ा घोटाला किया गया है जिस की जांच सीबीआई से करायी जानी चाहिए. यदि इस मामले की जांच सीबीआई से नहीं करायी जाती और अवैध आवंटन से हुयी हानि की भरपाई जेपी समूह से नहीं करायी जाती तो आइपीएफ इस सम्बन्ध में जनहित याचिका दायर करने की कार्रवाही करेगा.

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