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ग्राम सभा सुप्रीम इकाई होनी चाहिए : देवाजी तोफा

 

 

‘सरकारी योजनाओं का न्यूनतम सहयोग लेते हुए अपने गांव में महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपने को साकार किया है। अपने गांव को गांव के लोगों के श्रमदान और सहयोग से आत्मनिर्भर बनाया है।’ ये बातें पोपट राव पवार ने कही। वे 11 अक्टूबर 2015 को नई दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में कंचना स्मृति व्याख्यानमाला में बोल रहे थे। व्याख्यान का विषय था- ‘कैसे बचे गांव, कैसे हो गांवों का विकास और रक्षण?’ गौरतलब है कि यह व्याख्यानमाला दिवंगत पत्रकार कंचना की स्मृति में प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है।

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‘सरकारी योजनाओं का न्यूनतम सहयोग लेते हुए अपने गांव में महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपने को साकार किया है। अपने गांव को गांव के लोगों के श्रमदान और सहयोग से आत्मनिर्भर बनाया है।’ ये बातें पोपट राव पवार ने कही। वे 11 अक्टूबर 2015 को नई दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में कंचना स्मृति व्याख्यानमाला में बोल रहे थे। व्याख्यान का विषय था- ‘कैसे बचे गांव, कैसे हो गांवों का विकास और रक्षण?’ गौरतलब है कि यह व्याख्यानमाला दिवंगत पत्रकार कंचना की स्मृति में प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है।

पोपट राव पवार अपने अनुभव को विस्तार से साझा किया। गांव के  विकास के लिए जो जरूरी आवश्यकताएं है उनका संवर्धन गांव के लोगों ने आपसी सहयोग से किया है। उनके गांव की सबसे बड़ी समस्या पीने के पानी की थी जिसका शत-प्रतिशत समाधान गांव के लोगों ने निकाल लिया है। उन्होंने बताया 1992 में उनके गांव के हर घर में शौचालय बन गया था। उसके बाद वहां शिक्षा और चिकित्सा की व्यवस्था की गई। ये सारी व्यवस्था उन्होंने केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही ग्राम विकास की योजनाओं के समुचित क्रियान्वयन के बाद संभव हुआ। वे लंबे समय से गांव के संरपंच भी हैं। उन्होंने गैर सरकारी संगठनों को गांव के विकास का कारक बताया। उन्होंने अपने गांव की युवा जागरूकता का उल्लेख करते हुए बताया कि अगर गांव के विकास के लिए सरकार 1 लाख रु पए देती है तो हम 1 लाख 25 हजार का काम गांव के लोगों के सहयोग से करते हैं।

गौरतलब है कि उनके इस व्याख्यान का मुख्य आकर्षण गांवों की आत्म निर्भरता है। इस देश में स्त्री अनुपात लगातार घट रहा है जबकि पोपट राव के गांव का स्त्री अनुपात 1000 लड़कों के सापेक्ष 1360 लड़कियां है। आज से 40-50 साल पहले जो लोग गांव छोड़कर मुंबई और पुणे चले गए थे वे अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए गांव में ला रहे हैं। गांव छोड़कर जाने वाले लोग एक बार फिर से गांव में बस रहे हैं। गांव ने अपनी एकजुटता से जल और जंगल का व्यापक पैमाने पर संरक्षण किया है।

मुख्य वक्ता के बाद आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता देवाजी तोफा ने अपने विचार और अनुभवों को लोगों से साझा किया। उन्होंने अपनी परंपरा के संरक्षण की बात की। उनका कहना था कि लोक सभा, विधान सभा से बड़ा अधिकार ग्राम सभा को दिया जाना चाहिए। ग्राम सभा सुप्रीम इकाई होनी चाहिए। आदिवासी समाज में भी पुरुष वर्चस्व बढ़ गया था। गांव के पंच सिर्फ पुरुष होते थे और उनके निर्णय को ही महिलाओं पर थोपा जाता था। देवाजी ने पंचायत में सौ प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित किया। उनका कहना था कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं अपने निर्णय पर अधिक दृढ़ रहती हैं। इसके साथ ही ग्राम पंचायत ने यह नियम बनाया कि गांव का अनाज बाजार में नहीं बेचेंगे, शराब न पीएंगे और बेचेंगे। जिसके पास अनाज नहीं होगा उसे पंचायत सहायता देगी जिसे वह बिना किसी ब्याज के वापस कर देगा। गांवों में फैली गरीबी मानव निर्मित है, इसे भगवान ने नहीं बनाया है। अगर हम मानव बन जाएं तो गांव में गरीबी नहीं रहेगी।

अंत में इस समारोह के अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय जी ने पोपट राव और देवाजी को संबोधित करते हुए कहा कि हम लोग ग्राम स्वराज की बातें सुनते थे लेकिन इन लोगों ने ग्राम स्वराज को साकार किया है। इनके अनुभवों से हमें भी कुछ सीखना और करना चाहिए। इसके बाद कार्यक्रम के संयोजक वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार ने सभी अतिथियों और श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।

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