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काश छत्तीसगढ़ के महामहिम मन की बात कह पाते

बनी-बनाई लीक पर चलते हुए महामहिम राज्यपाल बलरामजी दास टण्डन ने इस साल के बजट-सत्र का अभिभाषण दे डाला। मनमोहिनी मुस्कान, विनम्र और सौम्य स्वभाव के अनुरूप उन्होंने मेरी सरकार के कल्याणकारी कार्यों और योजनाओं को सराहते हुए उम्मीद जताई कि वर्तमान सत्र, सभी विधानसभा सदस्यों को उनके कर्तव्यों के निर्वाह की नई उमंग, नई ऊर्जा और नई प्रेरणा प्रदान करेगा। इसके बरखिलाफ हम ना भूलें कि सवा दो करोड़ लोगों की आस्था का मंदिर बनी विधानसभा के सत्र में, असल जिम्मेदारी जनता के मन में उठे सवालों के जवाब और उसकी उम्मीद व विश्वास पर खरा उतरना है, उस लिहाज से महामहिम के ताजा अभिभाषण से इजारेदाराना निराशा हुई है।

<p>बनी-बनाई लीक पर चलते हुए महामहिम राज्यपाल बलरामजी दास टण्डन ने इस साल के बजट-सत्र का अभिभाषण दे डाला। मनमोहिनी मुस्कान, विनम्र और सौम्य स्वभाव के अनुरूप उन्होंने मेरी सरकार के कल्याणकारी कार्यों और योजनाओं को सराहते हुए उम्मीद जताई कि वर्तमान सत्र, सभी विधानसभा सदस्यों को उनके कर्तव्यों के निर्वाह की नई उमंग, नई ऊर्जा और नई प्रेरणा प्रदान करेगा। इसके बरखिलाफ हम ना भूलें कि सवा दो करोड़ लोगों की आस्था का मंदिर बनी विधानसभा के सत्र में, असल जिम्मेदारी जनता के मन में उठे सवालों के जवाब और उसकी उम्मीद व विश्वास पर खरा उतरना है, उस लिहाज से महामहिम के ताजा अभिभाषण से इजारेदाराना निराशा हुई है।</p>

बनी-बनाई लीक पर चलते हुए महामहिम राज्यपाल बलरामजी दास टण्डन ने इस साल के बजट-सत्र का अभिभाषण दे डाला। मनमोहिनी मुस्कान, विनम्र और सौम्य स्वभाव के अनुरूप उन्होंने मेरी सरकार के कल्याणकारी कार्यों और योजनाओं को सराहते हुए उम्मीद जताई कि वर्तमान सत्र, सभी विधानसभा सदस्यों को उनके कर्तव्यों के निर्वाह की नई उमंग, नई ऊर्जा और नई प्रेरणा प्रदान करेगा। इसके बरखिलाफ हम ना भूलें कि सवा दो करोड़ लोगों की आस्था का मंदिर बनी विधानसभा के सत्र में, असल जिम्मेदारी जनता के मन में उठे सवालों के जवाब और उसकी उम्मीद व विश्वास पर खरा उतरना है, उस लिहाज से महामहिम के ताजा अभिभाषण से इजारेदाराना निराशा हुई है।

वैसे तो यह सो काल्ड सवाल विपक्ष को उठाना चाहिए था मगर उसे शायद हल्दी-चावल दिए जाने का इंतजार है। अवसर मिलेगा भी तो विपक्ष इस तरह के तेवर शायद ही दिखाए। साफ करता चलूं कि समीक्षा का मकसद महामहिम की तौहीन करना नहीं है। वे हमारे आदरणीय पालक हैं, साथ ही उनकी इस मजबूरी को समझने में भी कोई अड़चन नही है कि राज्यपाल केन्द्र के प्रतिनिधि होते हैं और केबिनेट द्वारा पास अभिभाषण को ज्यों का त्यों रट देने जैसी संवैधानिक बाध्यता से बंधे हुए हैं। लेकिन यही विवशता तो प्रधानमंत्री मोदी के साथ भी जुड़ी थी। अन्य पीएमओज से इतर, देश की प्राचीर लाल किले से सीधे मन की बात कहने का जो नया राग उन्होंने छेड़ा, उसी का फिनोमिना रहा कि नोना-नोनी के लैंगिक भेदभाव को लेकर देश में नई बहस छिड़ी।

आखिर राज्यपाल मन की बात क्यों नहीं कर सकते? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कानून के पहले हकदार तो प्रथम नागरिक ही होने चाहिए खासकर उन्हें जब विधानसभा में बोलना हो लेकिन इसे सत्ता की अंधी अभिलाषा कह लीजिए या शीर्ष पर पहुंच जाने के बाद खुद ब खुद आ धमकने वाला अंधत्व कि लोकतांत्रिक हित में जिस हस्तेक्षप की उम्मीद महामहिम से आम आदमी की है, वह पूरी नही होती। पिछले कुछ सालों में या गुजरे महीनों में छत्तीसगढ़ में क्या कुछ नहीं हुआ या घटा जिसने रमन सरकार की रॉबिनहुड जैसी छबि को धोकर रख दिया है और सुराज होने या देने के दावों पर सवालिया निशान खड़े हुए हैं। खुशकलामियांभरे अंदाज के साथ यह जोडऩे में हर्ज नहीं कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की बात और है कि वे अभी भी देश के बेहद ईमानदार और निष्कलंकित मुख्यमंत्रियों की सूची में अव्वल हैं।

फिर उसी सवाल पर लौटना चाहता हूं कि लाट साहब यानि राज्यपाल की सरकार या प्रशासन में मजबूत या परिणामदायी दखल देखने को कब मिलेगी? हमारे संरक्षक राज्यपाल जी से अपेक्षा थी या रहेगी कि अपने अभिभाषण में कम से कम किसानों की आत्महत्या, सरकार में बढ़ता भ्रष्टाचार, कानून-व्यवस्था, मीडिया-हनन, जमाखोरी, युवाओं की आत्महत्या और महिलाओं पर होते अत्याचार सहित उन सभी मामलों पर प्रतिकात्मक सलाह या विरोध दर्ज कर देते ताकि प्रशासन या सरकार के आंख-कानों चौकन्ना रवैया दिखाई तो देता। अपने अभिभाषण में महामहिम ने सबसे पहले किसान और कृषि की चिंता की और सरकार की उपलब्धियां गिनाईं मगर किसानों की आत्महत्या, उनकी मेहनत की फसल पर डाका डालने वाला नान घोटाला, बीज खरीदी में हुए भ्रष्टाचार और उससे बरबाद हुई हजारों एकड़ की बहुमूल्य फसलों के जिम्मेदारों पर कड़ी और उचित कार्यवाही का भरोसा या ईमानदार कार्रवाई कौन करेगा? जिन जगहों पर छोटे बांध बनाए गए हैं, वे पहली ही बारिश में बह गए। गांवों में टॉयलेट बनाने के नाम पर करोड़ों का भ्रष्टाचार हुआ है। इनका खुलासा मीडिया कर चुका है।

सवालों के उठते गुच्छों के बीच यह पूछना बरखिलाफ नहीं होगा कि यदि लाट साहब ने समर्थन मूल्य पर धान खरीदी और किसानों को भुगतान की प्रक्रिया में निरंतर सुधार की बात कही है तो सभी जानते हैं कि इस प्रक्रिया के चलते किसानों की मेहनत को जिस कदर लूटा गया, धान खरीदी में घोटाला हुआ या मण्डियों में पहुंचने वाला धान ठेकेदारों ने जिस तरह रास्ते से ही गायब कर दिया, उस पर सख्ती बरतने की बात तो हो सकती थी। आश्चर्य कि किसानों को इस प्रक्रिया से विश्वास उठ चुका है। महामहिम ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली को आदर्श व्यवस्था बताया है लेकिन नान घोटाले पर सरकार अभी भी दोषी अफसरों पर कार्रवाई करने से बच रही है। यह स्थिति तब है जब सभी राशन दुकानों का कम्प्यूटरीकरण करने का दावा हिलोंरे मार रहा है।

लहलहाते लोकतंत्र की सबसे बड़ी खासियत उसकी कानून और न्याय व्यवस्था होती है लेकिन गुजरे महीनों के आपराधिक आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि यह किस कदर बेकाबू हो चुकी है। अफसोस कि महामहिम के अभिभाषण में इसका जिक्र तक नहीं हुआ। फिलहाल जिस तरह नक्सलवाद को कसने के नतीजे मिले हैं, उस पर राज्यपाल की शाबासी मिलती तो पूरे पुलिस बल का मनोबल बढ़ता। राज्यपाल जी ने अपने अभिभाषण में जल संरक्षण का संदेश दिया है। हमें याद है कि मुख्यमंत्री जी ने कहा था कि जिस नए सरकारी भवन में वाटर हार्वेस्टिंग नही होगी, उसका उदघाटन वे नहीं करेंगे। यदि सरकार इतने गंभीर हैं तो यह पूरे प्रदेश में सफल होना चाहिए लेकिन अभियान फुस्स हो गया।

तो तिलिस्म शब्द-समूहों वाले बजटीय अभिभाषण को पढ़ते हुए राज्यापाल जी ने आगे कहा कि पेयजल और निस्तारी के लिए सरकार एनीकट का निर्माण कर रही है लेकिन हाल यह हैं कि करोड़ों की लागत से बने नये बांध पहली ही बारिश में बह गए। खुद मुख्यमंत्रीजी के नजदीकी गांव में ऐसा हुआ लेकिन अधिकांश मामलों के दोषी ठेकेदार और अफसरों पर आज तक नकेल नहीं कसी गई। महामहिम ने आगे जोड़ा कि मेरी सरकार ने हर बसाहट में कम से कम एक पेयजल स्त्रोत उपलब्ध कराने का मापदण्ड लगभग पूरा कर लिया है। यह भी सच्चाई से इतर है। बस्तर के कई गांव आज भी पेयजलविहीन हैं। यह पीएचई मंत्री की विधानसभा में स्वीकारोक्ति है। जिन गांवों में हैण्डपम्प खुदवाए गए, वे भ्रष्टाचार के चलते गायब हो गए। उन्होंने आवासीय विद्यालयों की बात कही लेकिन आदिवासी आश्रमों पर हो रहे नारकीय अत्याचारों पर भी उनकी चुप्पी या विवशता खल गई।

यहां ठहरनेवाली प्रशंसात्मक दृष्टि यह है कि राज्य सरकार 100 गांवों का चयन कर उन्हें स्मॉर्ट गांव बनाना चाहती है मगर इसके क्रियान्वयन में लालफीताशाही एक बड़ी रूकावट है। हमने देखा कि पुरा योजना का क्या हश्र हुआ? सरकार ने प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा के लोकव्यापीकरण के लक्ष्य पूर्ण कर लिए है मगर शिक्षकों की आउटसोसिँग के जिस मुददे ने विपक्ष सहित स्थानीय युवाओं को भ्रम की स्थिति में ला खड़ा किया है, उस पर यदि महामहिम कोई आश्वासन देते तो बात बनती। सभी के दिमाग में एक ही सवाल है कि क्या छत्तीसगढ़ में प्रतिभाओं की कमी है जो आप ब्रेन-डेन की साजिश रच रहे हैं। और भी बहुत कुछ है कहने को लेकिन इस बुनियादी सवाल के साथ छोड़ दे रहा हूं कि राज्यपाल महोदय अगले अभिभाषण में मन की बात कह सकेंगे।

लेखक अनिल द्विवेदी राजनीतिक विश्लेषक हैं. उनसे संपर्क अनिल द्विवेदी 09826550374 के जरिए किया जा सकता है.

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