बनारस में बवाल..
काशी में कोहराम..
ये या इसी तरह की हेडलाइन लगभग सभी न्यूज चैनल और अखबारों में छाई हैं..वाकई व्यथित करती तस्वीरें दिख रही हैं..जिस तरह गाड़ियों को जलाया गया पुलिस चौकी को तोड़ा गया वो काशी की संस्कृति नहीं है..हजारों की भीड़ बेकाबू हो गई और फिर नजारा भयावह बन गया..दुनिया की प्राचीनतम नगरी..महादेव, कबीर, तुलसी, बिसमिल्लाह की नगरी.. साहित्य, संगीत, कला की नगरी में आखिर ये सब कैसे हो गया।
सूबे की सरकार के साथ केंद्र सरकार को भी आत्ममंथन करना होगा..बहुत अफसोस की बात है जहां की हर धर्म से परे इंसानियत पहचान है वहां किसने जहर घोलने की कोशिश की है..क्या जरूरत थी निरीह संतों पर गणपति विसर्जन के दिन निर्ममता से लाठी बरसाने की..जवाब तो देना ही होगा कि किसी पेशेवर अपराधी की तरह वर्दीवालों ने क्यों आचरण किया..संतों का सर तक फोड़ दिया गया..संत कराहते रहे लेकिन किसी ने सुध तक नहीं ली.. क्या सूबे की सरकार धीरज से काम नहीं ले सकती थी..बेहतर होता कोई सम्मानित बुद्धिजीवी आकर संतों से बात करता उनका मर्म समझता..लेकिन सरकार जाने किस गुमान में चूर है..और जब सरकार ने नहीं सुनी तो आखिरकार वही हुआ जिसका डर था..गाड़ियां फूंकी गईं पुलिसवालो की पिटाई तक की गई लेकिन इतना तो सच है कि ऐसा करने वाले साधु संत नहीं हो सकते..आखिर संतों की भीड़ में ये कौन लोग थे इसका पता लगाना पुलिस का काम है लेकिन फिर भी दावे से कह सकता हूं मौकापरस्त लाख कोशिश कर लें लेकिन बनारस की एकता को खंडित नहीं किया जा सकता है..लाख वैमनस्य फैलाने की कोशिश कर लें लेकिन का हो गुरू कैसन होआ आवा चाय पिबा..गंगा ओ पार चलबा..जैसे संबोधन जारी रहेंगे..तनिक भी कष्ट में देखकर एक दूसरे को मदद करने का दौर जारी रहेगा..नफरत के सौदागर लाख कोशिश कर लें एक बीड़ा पान का मजा बबन हलवाई और नूर चाचा मिलकर लेते रहेंगे..
अश्विनी शर्मा
सीनियर प्रोड्यूसर
एपीएन न्यूज-दिल्ली