Abhishek Srivastava : बड़े संस्थानों पर इस समय भगवा हमले के बीच प्राइवेट स्कूलों के बच्चों-शिक्षकों के साथ चुपचाप क्या घट रहा है, यह जानना बहुत दिलचस्प होगा। मैंने ध्यान दिया है कि बीते डेढ़ साल से निजी स्कूलों में निबंध व वाद-विवाद प्रतियोगिता के नाम पर जो विषय बच्चों को दिए जा रहे हैं, वे ”आपने अपनी पत्नी को पिछली बार कब पीटा” की तर्ज पर हैं। अभी पता चला कि ग़ाजि़याबाद में एक स्कूल चौधरी छबीलदास पब्लिक स्कूल ने एक अंतरस्कूली डीबेट प्रतियोगिता रखी है जिसमें बच्चों को विषय दिया गया है ”कामकाजी महिलाएं घर और बाहर अपने उत्तरदायित्व को संभालने में सक्षम हैं”। अब बच्चे इसके पक्ष और विपक्ष में तर्क खोजने को परेशान हैं तो हिंदी की उनकी अध्यापिकाएं इस उहापोह में हैं कि उन्हें ऐसा क्या सिखाएं जिससे वे जीतकर लौटें।
सोचिए, जो बच्चा इस विषय के पक्ष में बोलेगा, वह मानकर चल रहा होगा कि कामकाजी महिलाओं का कर्तव्य घर और बाहर दोनों को संभालना है। जो विरोध में बोलेगा, वह इस निष्कर्ष को देगा कि कामकाजी होने के कारण महिलाएं अपनी घर और बाहर की जिम्मेदारी पूरा नहीं कर पाती हैं। ज़ाहिर है, इन्हीं दो पक्षों के बीच पुरस्कार बंटेंगे और बच्चों के दिमाग में हमेशा के लिए अंकित हो जाएगा कि घर और बाहर का काम करना सिर्फ महिलाओं का कर्तव्य है और अगर वे नौकरी करती हैं तो इससे उनके कर्तव्य पर असर पड़ता है।
थोड़े दिन पहले ही छत्तीसगढ़ बोर्ड की स्कूली किताब में एक अध्याय का उद्घाटन हुआ था जिसमें कामकाजी महिलाओं को रोजगार संकट का कारण बताया गया था। इस पर काफी बवाल हुआ तो सरकार ने इस किताब को वापस लेने की बात कही। ज़रा सोचिए, सरकारी स्कूलों से तो हम फिर भी हल्ला कर के निपट लेते हैं लेकिन इन निजी स्कूलों का क्या करें जहां लाखों रुपये खर्च कर के मां-बाप बच्चों को अनिवार्यत: हिंदू दंगाई बनाने के लिए पढ़ा रहे हैं और उन्हें खबर तक नहीं है? सबसे बुरी स्थिति की कल्पना उन महिला शिक्षकों के बारे में की जा सकती है जो खुद कामकाजी और आत्मनिर्भर हैं, लेकिन जिन्हें बच्चों को जितवाने के लिए कामकाजी महिलाओं के खिलाफ तर्क खोजने पड़ रहे हैं।
मीडिया विश्लेषक और एक्टिविस्ट अभिषेक श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से.