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सोशल मीडिया

एक प्रदेश में बन गया नया नियम : सोशल मीडिया पर नेताओं का मजाक उड़ाने पर जेल

तमिलनाडु से खबर है कि सोशल मीडिया पर नेताओं का मजाक उड़ाने पर जेल की हवा खानी पड़ सकती है। ऐसा करने वालों के खिलाफ भारतीय दण्ड संहिता की धारा 188 के तहत कार्यवाही की जायेगी। कुछ मित्रों को इस खबर के हवाले से यह बोलने और लिखने का मौक़ा मिल सकता है कि यह अभिव्यक्ति की आजादी पर सरकारी हमला है। मैं इससे सहमत नहीं हूँ। सोशल मीडिया पर जिस दिन से जुड़ा था, उसी दिन से मेरा स्पष्ट मत है कि जो कोई भी सोशल मीडिया पर हल्की, अभद्र या स्तरहीन भाषा का इस्तेमाल करे, उसे केवल सजा ही नहीं, कठोर सजा मिलनी चाहिए। कारण भी बतला दूँ-

<p>तमिलनाडु से खबर है कि सोशल मीडिया पर नेताओं का मजाक उड़ाने पर जेल की हवा खानी पड़ सकती है। ऐसा करने वालों के खिलाफ भारतीय दण्ड संहिता की धारा 188 के तहत कार्यवाही की जायेगी। कुछ मित्रों को इस खबर के हवाले से यह बोलने और लिखने का मौक़ा मिल सकता है कि यह अभिव्यक्ति की आजादी पर सरकारी हमला है। मैं इससे सहमत नहीं हूँ। सोशल मीडिया पर जिस दिन से जुड़ा था, उसी दिन से मेरा स्पष्ट मत है कि जो कोई भी सोशल मीडिया पर हल्की, अभद्र या स्तरहीन भाषा का इस्तेमाल करे, उसे केवल सजा ही नहीं, कठोर सजा मिलनी चाहिए। कारण भी बतला दूँ-</p>

तमिलनाडु से खबर है कि सोशल मीडिया पर नेताओं का मजाक उड़ाने पर जेल की हवा खानी पड़ सकती है। ऐसा करने वालों के खिलाफ भारतीय दण्ड संहिता की धारा 188 के तहत कार्यवाही की जायेगी। कुछ मित्रों को इस खबर के हवाले से यह बोलने और लिखने का मौक़ा मिल सकता है कि यह अभिव्यक्ति की आजादी पर सरकारी हमला है। मैं इससे सहमत नहीं हूँ। सोशल मीडिया पर जिस दिन से जुड़ा था, उसी दिन से मेरा स्पष्ट मत है कि जो कोई भी सोशल मीडिया पर हल्की, अभद्र या स्तरहीन भाषा का इस्तेमाल करे, उसे केवल सजा ही नहीं, कठोर सजा मिलनी चाहिए। कारण भी बतला दूँ-

1. स्तरहीन भाषा और असत्य संवाद के कारण सोशल मीडिया को सरकार, प्रशासन और जनप्रतिनिधियों द्वारा गम्भीरता से नहीं लिया जाता है। जबकि वर्तमान में सोशल मीडिया आम व्यक्ति की आवाज है। जो लोग सोशल मीडिया का स्तर गिराते हैं, वे लोग आम व्यक्ति की अभिव्यक्ति के विश्वस्तरीय मुक्त मंच इंटरनेट और सोशल मीडिया की गरिमा को क्षति पहुंचाने के अपराधी हैं। ऐसे लोगों की अनदेखी आत्मघाती नीति होगी।

2. किसी भी गलत व्यक्ति, संगठन, राजनैतिक दल, राजनेता, धर्म, धार्मिक व्यक्ति, प्रतिनिधि, प्रशासक, सरकार या किसी भी गलत विषय की निंदा करने के लिए संसदीय और शिष्ट भाषा में भी विचार रखे जा सकते हैं, बल्कि ऐसे ही विचार अधिक प्रभावी होते हैं। इससे सोशल मीडिया और अंतर्जाल अर्थात इंटरनेट की गरिमा एवं मीडिया के रूप में प्रतिष्ठा भी कायम होती है।

3. सोशल मीडिया पर इन दिनों कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसको इतिहास, क़ानून, संविधान, प्रेस एक्ट आदि का कोई ज्ञान नहीं। यहां तक कि जिन लोगों को भाषा तक का ज्ञान नहीं। जो लोग सार्वजनिक संवाद की मर्यादा को तक नहीं जानते, ऐसे लोग सोशल मीडिया के जरिया अशिष्ट, असंसदीय, अभद्र और कलुषित भाषा में अपने पूर्वाग्रह तथा अपनी भड़ास निकालने के लिए आम जनता की मुक्त आवाज सोशल मीडिया का दुरूपयोग कर रहे हैं। जिसके चलते जनप्रतिनिधि, सरकार और प्रशासन द्वारा सोशल मीडिया पर व्यक्त संजीदा विचारों और सही जानकारी तक को गम्भीरता से नहीं लिया जाता है।

अत: मेरा स्पष्ट मत है कि सोशल मीडिया की प्रतिष्ठा कायम करनी है तो गन्दगी की सफाई जरूरी है। गन्दगी फैलाने वालों को जेल की हवा खिलाने में संजीदा लोगों को मदद करनी चाहिए। ऐसा होने से सोशल मीडिया और आम व्यक्ति की आवाज को ताकत मिलेगी।

लेखक डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ होम्योपैथ ​चिकित्सक और दाम्पत्य विवाद सलाहकार के अलावा सोशल एक्टिविस्ट भी हैं. उनसे संपर्क 9875066111 के जरिए किया जा सकता है.

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