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‘मालदा’ के तराजू पर ‘हरियाणा’ की हिंसा

-डॉ राकेश पाठक-

हरियाणा तीन दिन से धधक रहा है लेकिन आप मौन हैं। पूरे सोशल मीडिया पर सन्नाटा पसरा है। मालदा पर सवाल उठाने वाले तक सिरे से लापता हैं। आइये इसे मालदा के तराजू में ही तौल कर देखते हैं।हाँ पहले साफ़ कर दिया जाये कि मालदा हो या मुजफ्फरपुर कहीं किसी की हिंसा मंज़ूर नहीं। किसी के भी नाम पर।

<p>-डॉ राकेश पाठक-</p> <p>हरियाणा तीन दिन से धधक रहा है लेकिन आप मौन हैं। पूरे सोशल मीडिया पर सन्नाटा पसरा है। मालदा पर सवाल उठाने वाले तक सिरे से लापता हैं। आइये इसे मालदा के तराजू में ही तौल कर देखते हैं।हाँ पहले साफ़ कर दिया जाये कि मालदा हो या मुजफ्फरपुर कहीं किसी की हिंसा मंज़ूर नहीं। किसी के भी नाम पर।</p>

-डॉ राकेश पाठक-

हरियाणा तीन दिन से धधक रहा है लेकिन आप मौन हैं। पूरे सोशल मीडिया पर सन्नाटा पसरा है। मालदा पर सवाल उठाने वाले तक सिरे से लापता हैं। आइये इसे मालदा के तराजू में ही तौल कर देखते हैं।हाँ पहले साफ़ कर दिया जाये कि मालदा हो या मुजफ्फरपुर कहीं किसी की हिंसा मंज़ूर नहीं। किसी के भी नाम पर।

मालदा में ये हुआ-

जनवरी के पहले हफ्ते में मालदा में मुसलामानों ने पैगम्बर के अपमान के खिलाफ बहुत बड़ा जुलूस निकाला।कालियाचक थाना क्षेत्र में भीड़ हिंसक हो गयी। 25 गाड़ियां और आधा थाना जला दिया गया।थाना परिसर में मंदिर को किसी ने हाथ नहीं लगाया।दर्जन भर दुकानें, कुछ घर भी जलाये गए। एक आदमी के पैर में गोली लगी।दो दर्जन अन्य लोग घायल हुए।धारा 144 लगी। दो दिन बाद सब हालात सुधर गए। कुल चार पांच करोड़ का नुकसान आंका गया। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो, मालदा पुलिस, दुनिया भर के मीडिया का यही आकलन है। चैक कर लीजिये।सारे झूठे सच्चे आंकड़ों और फोटोशॉप तस्वीरों के बावज़ूद सच इसके आसपास ही बैठेगा। पूरा जोर लगा कर पड़ताल कर लीजिये।

सबने खूब लानत भेजी-

मालदा में जो हुआ उसकी सबने खूब आलोचना की।हाँ उन लोगों ने भी जो आपको दूसरे पक्ष के लगते हैं। नाम नोट कर लीजिये – कमर वहीद नक़वी, शकील अख्तर, शाहिद सिद्दीकी , वेदप्रताप वैदिक, ओम थानवी  आदि आदि आदि।आप पढ़ना ही नहीं चाहते थे इसलिए आपको दिखा ही नहीं कि मालदा पर कितना लिखा गया। क्या पता इनके नाम भी आपने सुने हैं या नहीं…! जब मौके पर तहकीकात हुयी तो साफ़ हो गया कि मामला सिर्फ कुछ घंटे के उपद्रव के बाद ख़त्म हो गया था।इसीलिए बाद में ज्यादा नहीं लिखा गया। फिर साफ़ कर दिया जाये कि हिंसा कुछ घंटे की हो या मुसलसल चलने वाली गलत ही है। लानत है। हैरत की बात ये है कि धर्म का चश्मा लगा कर सवाल पूछने वाले अभी हफ्ता भर पहले तक मालदा पर सवाल पूछते रहे हैं।

आइये अब हरियाणा को देखिये-

जाट आरक्षण के सवाल पर हरियाणा में उपद्रवियों ने बवाल काट रखा है।आधे सूबे में कर्फ्यू लगा है। देखते ही गोली मारने के आदेश हैं। घर,दफ्तर,गाड़ियां दुकानें , थाने, रेलवे स्टेशन, सरकारी इमारतें, मंत्री सांसद विधायकोँ तक के घर जलाये जा रहे हैं।सैकड़ों ट्रेनें अस्त व्यस्त हैं। सड़कें ठप हैं। स्कूल, कॉलेज, फैक्ट्रियाँ सब बंद हैं। सेना हेलिकोप्टरों से उतर कर फ्लेग मार्च कर रही है।उपद्रवी सेना तक से दो दो हाथ कर रहे हैं। अब तक नौ लोग मारे गए हैं। घायलों की तो अभी गिनती ही मुमकिन नहीं है।आठ दिन हो गए हालात अब भी काबू में नहीं हैं।दस कंपनी सेना और बुलाई जा रही है।
नुकसान का आकलन तो अभी संभव ही नहीं है लेकिन कई सौ करोड़ में ही निकलेगा। अब जरा एक पलड़े में मालदा की हिंसा और दुसरे में हरियाणा की हिंसा को रख कर देखिये। फिर खुद से पूछिए कोई सवाल…!

आपके चश्मे से देखना ज़रूरी नहीं-

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मुझसे भी सवाल हुए कि मालदा पर क्यों नहीं लिखा ?? मेरे लिए आपकी तरह बिना जाने समझे लिखना ज़रूरी नहीं है।मेरा ज़मीर और मेरा पेशा मुझे इस बात की इज़ाज़त नहीं देता कि मैं भीड़ की तरह सोचूँ और लिख दूं।हाँ जब बहुतों ने तहकीकात के बाद तस्वीर साफ़ कर दी तो लगा कि अब अलग से अपना टेसू अड़ाने की कोई ज़रूरत नहीं रह गयी है। हाँ आप इस बात के लिए स्वतंत्र हैं कि अपने चश्मे से चीजों को देखें और सवाल भी करें। आज के बाद भी आप मालदा को हरियाणा से ज्यादा बड़ी घटना मानने को स्वतंत्र हैं।

हरियाणा से पहले भी जवाब थे, बस दिए नहीं-

जब आप बार बार मालदा पर कलप रहे थे तब भी माकूल जवाब मौज़ूद थे लेकिन लगा कि आप तस्वीर साफ़ होने पर इतना व्यथित नही होंगे। तब भी आपको याद दिलाया जा सकता था कि नब्बे के दशक के मंडल विरोधी आंदोलन में हमने कैसे आधे से ज्यादा देश को जलाया था…! आपको याद दिलाया जा सकता था कि बीते बरसों में जितनी भी बार जाट, गुर्जर या अन्य आंदोलन हुए उनमें कितने अरब का नुक्सान और कितनी हिंसा हुयी थी..? और अभी अभी के गुजरात के पटेल आंदोलन को तो न भूले होंगे जिसमें कई हज़ार करोड़ की सम्पति स्वाहा हो गयी..? आपको ज्यादा बुरा न लगे इसलिए नब्बे के दशक के मंदिर आंदोलन का जिक्र नहीं किया जा रहा। मालदा पर सवाल पूछते वक्त क्या सचमुच गज़नी की तरह याददाश्त चली गयी थी…? हाँ ये अलग बात है कि ये हमारी आपकी हिंसा है तो कोई बात नहीं वरना कोई और करे तो हम अहिंसा के पुजारी बन कर आसमान सर पर उठा लेते हैं। फिर भी आपको भगवान की कसम है सवाल पूछते रहिये। हम अपने बस भर जवाब देने की कोशिश करेंगे।ये हमारी जिम्मेदारी भी है। यही जागरूक समाज की पहचान भी है।

डॉ राकेश पाठक
प्रधान संपादक
डेटलाइन इंडिया

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