Nadim S. Akhter : मौलानाओं और उलेमाओं के चक्कर में ना पड़िए. मेरी इनसे कभी नहीं पटी. सब लकीर के फकीर हैं. जिस इंसान को बात करने और कॉमन सेंस की तमीज ना हो, वो मौलाना-उलेमा कैसे हो सकता है. खुदा के रसूल को मानने वाला कैसे हो सकता है? इस्लाम एक और सिर्फ एक मजहब है. मैं इसमें किसी फिरके को नहीं मानता. कुरान और सही हदीस पढ़िए, उसके हिसाब से चलिए बस. मौलानाओं की बात और उनके चक्कर में ना पड़िए. ये बरेलवी और देवबंदी क्या होता है. ये मूर्ख अलग मजहब चलाना चाहते हैं क्या?
कौन सही है, कौन गलत, इसका फैसला खुदा पर छोड़ दीजिए. उसने कुरान में कहा भी है कि मेरे और मेरे बंदे के बीच दूसरा कोई नहीं आ सकता. कौन तरीका सही है और कौन गलत, ये आप ना बताइए. मैं अगर दिल से खुदा को याद कर लेता हूं, कलमा पढ़ लेता हूं, खुदा और उसके रसूल की याद में जार-जार रो लेता हूं तो मेरे इतना काफी है. इस्लाम को आडम्बर ना बनाइए. मैं रोजा-नमाज-हज कुछ ना करूं, तब भी आप लोग कोई नहीं होते मुझे बोलने-टोकने वाले.
मेरी जिंदगी तुम्हारी बदौलत नहीं है. मैं गुनाह करूंगा तो मेरा खुदा मुझे सजा देगा. जहन्नम की आग में मैं जलूंगा, तुम आराम से जन्नत में रहना ना!!! यहां तो नुक्ते से खुदा से जुदा हो जाता है और तुम अपनी कौड़ी भर की इबादत में ये भ्रम पाले बैठे हो कि खुदा तुम्हें जन्नत दे देगा. तुम्हारी कुछ सालों की इबादत खुदा ने कबूल भी की है या नहीं, तुम्हें नहीं मालूम. फिर किस हैसियत से दूसरों को आंख दिखाकर सही-गलत की तमाज बताते हो. तुम लोग कौन होते हो खुदा और बंदे के बीच में बोलने वाले बे?
मेरी जिदगी और इसकी हर सांस खुदा की अमानत है, तुम्हारी जागीर नहीं. सो जैसे चाहूंगा, वैसे रहूंगा. जिस दिन वो चाहेगा, हिदायत दे देगा. नहीं देगा तो कयामत के दिन माफ कर देगा. दिल काला नहीं किया है मैंने. किसी का बुरा भी नहीं किया है. ये अपने और अपने रब के बीच की बात है. तुम लोगों में से कोई बीच में आया तो खैर नहीं. तुम्हारे कत्ल के लिए में कयामत के दिन भी खुदा से माफी नहीं मांगूंगा. उसे पता होगा कि तुम्हें मैंने ये सजा क्यों दी थी. उस दिन देखेंगे कि कौन जन्नत में जाता है और कौन जहन्नुुम में. Mind ur business. Understand!!!!
पत्रकार नदीम एस. अख्तर के फेसबुक वॉल से.