मिस टनकपुर हाजिर मूवी का ट्रेलर मैंने देखा. राजू हिरानी, बीग-बी जैसे फ़िल्मी जगत के महानायकों ने ट्वीट करके फिल्म तारीफ़ में कसीदे पढ़े. मैंने सोचा वीकेंड में फिल्म देखनी चाहिए. लेकिन मै इस फिल्म देखने के बाद बुरी तरह मायूस हुआ. विनोद कापड़ी ने न्यूज़ चैनलों में अपने मित्रों, निजी सम्बन्ध का फिल्म के प्रचार, प्रसार, मार्केटिंग, प्रमोशन आदि आदि करने में कोई कोताही नहीं छोड़ी. खाप पंचायत का फरमान आदि विवादों को न्यूज़ चैनलो ने ब्रेकिंग न्यूज़ और डिबेट के जरिये काफी स्पेस दी.
फिल्म सुपरहिट होगी, यह विनोद कापड़ी का एक मिथ था. हो सकता है विनोद कापड़ी का यह तर्क है कि भावनाओ को व्यंग्य के जरिये कटाक्ष किया जाए तो फिल्म हिट होगी, तो यह एक भ्रम है. अगर ऐसा होता तो राजू हिरानी, रोहित शेट्टी, महेश मांजरेकर, मधुर भंडारकर, प्रकाश झा, संजय लीला भंसाली, जब्बार पेटल आदि काबिल, होनहार निर्देशक जिसकी फेहरिस्त काफी लम्बी है, को इतना पसीना नहीं बहाना पड़ता. सटायर से जुडी इसके पहले भी कई फिल्में दर्शक देख चुके हैं जो कुछ सुपरहिट हुईं, कुछ औसत रही, कुछ बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह पिट गई.
वर्ष २००८ यानी रिसेशन का दौर था. इसी समय फंस गए रे ओबामा …… नामक बेहतर मूवी आई थी. इस मूवी में बड़े सुपरस्टार नहीं थे. बावजूद बॉक्स ऑफिस पर हिट हुई. दर्शकों ने इस मूवी की काफी सराहना की थी. इस फिल्म के निर्देशक भी पूर्व पत्रकार रहे हैं किन्तु फिल्म की जलेबी नहीं बनाई. मिस टनकपुर हाजिर हो में भी बड़े किरदार नहीं हैं. ओम पुरी, अन्नू कपूर, राहुल बग्गा, रवि किशन, संजय मिश्रा, हृषिता भट्ट जैसे कलाकार हैं. एक गंभीर सामाजिक विषय को विनोद कापड़ी ने जलेबी बना दी. जैसी उनकी न्यूज़ चैनलों में यूएसपी रही है. खाप पंचायत, गांव के प्रधान का फरमान, बफ़ेलो के साथ बलात्कार का झूठा केस, देश का न्यायतंत्र और उससे जुड़े राजनीति के कई रंग सशक्त स्टोरी के जरिये दर्शकों के सामने रख सकते थे. विनोद कापड़ी के पास वक्त था. मिस टनकपुर हाजिर हो के जरिये देश का न्यायतंत्र का एक ऐसा पक्ष दर्शक, राजनेता, ब्यरोक्रेट, मीडिया के सामने रख सकते थे जो ग्रामीण भारत से जुड़ा है किन्तु वो नाकाम रहे. करोड़ों की लागत से बनी फिल्म केवल एक करोड़ बॉक्स ऑफिस में बना पाई. पैसों को छोड़ दिया जाय तो भी विषय को विनोद कापड़ी ने जलेबी बना कर पेश किया.
सुजीत ठमके
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