एक ओर तो मीडिया के शहंशाह कहे जाने वाले रुपर्ट मर्डोक भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आज़ाद भारत का ‘सर्वश्रेष्ठ नेता’ बता रहे हैं। वहीँ अमरीकी उद्योग जगत के एक प्रतिनिधि ने कुछ दिन पहले ही यह बयान दिया कि भारत की नौकरशाही में अब तक कोई बदलाव नहीं दिखाई दे रहा है इसलिए वहां कुछ भी कर पाना नामुमिकन सा लगता है। भारत सरकार के प्रतिनिधियों से यह प्रश्न किए जाने पर भारतीय अधिकारी रक्षा, आतंकवाद, शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि जैसे क्षेत्रों में बढ़ते सहयोग की बात करने लगते हैं। मर्डोक ने ट्वीट किया था, “भारत के प्रधानमंत्री मोदी के साथ एक घंटा शानदार रहा। वो आज़ादी के बाद के बेहतरीन नीतियों वाले सर्वश्रेष्ठ नेता हैं। लेकिन उनके पास एक पेचीदा मुल्क के लिए कुछ हासिल करने का बहुत बड़ा काम है।” न्यूयॉर्क में प्रधानमंत्री से मिलने पहुँचे अमरीकी कंपनियों के सीईओ ने मोदी से आर्थिक सुधारों में तेज़ी लाने के लिए और क़दम उठाने को कहा। इन अधिकारियों ने मोदी से कहा, ”आप जो भी कर रहे हैं करते रहिए, लेकिन थोड़ी तेज़ी दिखाइए।” मोदी ने वादा किया कि भारत की सरकार फैसले लेने में तेज़ी दिखाएगी। भारतीय मूल के जानेमाने निवेशक कंवल रेखी ने अमरीकी मीडिया को दिए एक बयान में कहा कि यहां जिससे भी बात करो, वह निराश है, क्योंकि भारत में स्थितियां नहीं बदली हैं। “मैं मोदी जी से पूछना चाहूंगा कि आपने जो वादे किए थे, उनका क्या हुआ? मेरी उम्मीद अब ख़त्म हो रही है, उन्होंने (मोदी ने) बातें बहुत की हैं, लेकिन कुछ ख़ास किया नहीं है।”
मोदी समर्थक कई लोग हैं जिनका मानना है कि रिश्तों में गर्माहट आई है, ओबामा और मोदी की केमिस्ट्री बनी है। लेकिन ठोस उपलब्धियां गिनाना मुश्किल है। किंग्स कॉलेज लंदन में रक्षा अध्ययन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने समाचार पत्र वाल स्ट्रीट जर्नल में एक आलेख में लिखा है कि सीधे अमेरिकी कंपनियों से रिश्ता गांठकर मोदी अमेरिका के साथ आर्थिक रिश्ता मजबूत करने और भारत को आकर्षक निवेश गंतव्य के रूप में स्थापित करने की उम्मीद कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि भारत में विदेशी निवेश पिछले साल के पहले छह महीनों के मुक़ाबले इस साल के पहले छह महीनों में 30 प्रतिशत बढ़ा है। लेकिन अमरीकी कंपनियों ने कितना निवेश किया है, इसके आंकड़े नहीं बताए हैं। डिजिटल इंडिया प्रोजेक्ट में अमरीकी भागीदारी पर कुछ भी साफ़ नहीं है। क्या भारत गूगल, फ़ेसबुक या माइक्रोसॉफ़्ट को भारत में आखिरी मील तक इंटरनेट पहुंचाने के कार्यक्रम में शामिल होने देगा? मोदी इन कंपनियों को भारत से होने वाले फ़ायदे तो गिनाते हैं लेकिन वे यह नहीं बताते कि उनकी तकनीक का भारत इस्तेमाल करेगा या नहीं, और करेगा तो कहां और कैसे ? क्या भारत के पास इतना सक्षम नेटवर्क मौजूद है? भारतीय अधिकारी इस सवाल पर चुप्पी क्यों लगा जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को ने 189 देशों को शामिल करते हुए ‘द स्टेट ऑफ़ ब्रॉडबैंड 2015’ नाम से एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार, ब्रॉडबैंड पहुंच के मामले में भारत की रैंकिंग 2013 के मुक़ाबले 2014 में छह अंक गिरकर 131 पर पहुंच गई है। मोबाइल इंटरनेट के मामले में भारत 2013 में 113वें स्थान पर था, वहीं 2014 में वह 155वें स्थान पर खिसक गया। भारत की स्थिति श्रीलंका और नेपाल से भी नीचे रही, जिनकी रैंकिंग क्रमशः 126 और 115 है। मोबाइल फ़ोन के मामले में भारत एक बड़ा बाज़ार है लेकिन मोबाइल उपकरणों के मार्फ़त अच्छी इंटरनेट स्पीड हासिल करना अभी दूर की कौड़ी है। हाल ही में आई अंतरराष्ट्रीय कंसलटेंसी कंपनी डेलोइट की रिपोर्ट में कहा गया है कि अक्तूबर 2014 में देश में कुल इंटरनेट यूज़र्स की संख्या 25.9 करोड़ थी और इसमें 24.1 करोड़ यूज़र्स मोबाइल उपकरणों से इंटरनेट का इस्तेमाल करते थे। जून 2015 को डेलोइट की रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे देश में केवल 700 टॉवर ही ऐसे हैं जो 3जी या 4जी स्पीड को सपोर्ट करते हैं। आंकड़े दिखाते हैं कि दुनिया में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाली तीसरी सबसे बड़ी आबादी होने के बावजूद भारत इंटरनेट स्पीड के मामले में 52वें स्थान पर है। यहां औसत स्पीड 1.5 से लेकर 2 एमबीपीएस है, जबकि दक्षिण कोरिया और जापान जैसे अन्य विकसित एशियाई देशो में इंटरनेट स्पीड क्रमशः 14.2 और 11.7 एमबीपीएस है। जाहिर है मोदी का महत्वाकांक्षी डिजिटल इंडिया प्रोग्राम बहुत सफल नहीं हो पा रहा है। भारत में विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए प्रधानमंत्री बनने के बाद से अब तक मोदी 27 देशों का दौरा कर चुके हैं लेकिन इसके बावजूद सब जस का तस है। यद्दपि कुछ देशों ने निवेश करने में रूचि दिखाई है पर पर्याप्त नहीं है। भारत को विदेशी एक अच्छे वातावरण के निर्माण में बहुत सफल नहीं मानते। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विगत 16 देशों की विदेश यात्रा के दौरान 37.22 करोड़ रुपए खर्च हुए जबकि मोदी ने जून 2014 से लेकर जून 2015 तक 20 देशों का दौरा किया, यह जानकारी सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत सामने आई है। यह ब्यौरा एक पूर्व सेना अधिकारी लोकेश बत्रा की ओर से सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मांगी गई जानकारी में सामने आया है। हालांकि इस लिस्ट में चार देशों से जानकारी नहीं मिलने के कारण संबंधित आंकड़ें पेश नहीं किए जा सके। जापान, श्रीलंका, फ्रांस, साउथ कोरिया के दूतावासों ने आरटीआई में मांगी गई खर्च की जानकारी देने से इनकार कर दिया। 11 देशों की यात्रा पर हुए खर्च का ब्यौरा अभी उपलब्ध नहीं है। कई हल्कों में यह भी कहा जा रहा है कि टीवी कैमरे के सामने मोदी मोदी चिल्लाने वाले किराए के लोग सिर्फ भारतीय होते हैं जिन्हें साहब के सिपाही मेहनत से इकट्ठा करते हैं। मोदी की विदेश यात्राओं पर भारतीय मीडिया का प्रोपेगेन्डा पूरी तरह प्रायोजित होता है। भारत सरकार के अनेकों कर्मचारियों के अलावा भाजपा, आरएसएस के चुनिन्दा कार्यकर्ता, कई भारतीय और विदेशी इवेन्ट मैनेजिंग एजेंसियां, भारतीय मूल के अप्रवासी, विदेश मंत्रालय तथा दूतावासों के कर्मचारी इसमें शामिल होते हैं, उद्योगपतियों को छोड़ भी दिया जाये तो साहब की छवि बनाने के लिए भारतीय जनता की करोड़ों अरबों की धनराशि को पानी की तरह बहाया जा रहा है। इससे भारतीय नागरिकों को असल में कितना हासिल हो पा रहा है पता नहीं। लेकिन यह एक महंगा प्रायोजित धन्धा है जो अबाध चल रहा है। वाशिंगटन पोस्ट के एक आलेख में कहा गया है कि कई लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या मोदी की विदेश यात्राओं के सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं? कूटनीति का असर हो रहा है? यदि आप नेपाल और पाकिस्तान को देखें तो नहीं। बहरहाल हम अपेक्षा करते हैं कि मोदी जी की नीतियां और यात्रायें, भारतीय जनमानस को बेहतर और सुखद भविष्य की ओर ले जाने में सफल हो सकें तो भारतीय राजनीति का यह एक नया अध्याय होगा।