बिहार का चुनाव परिणाम लोक की जीत है ,लोकतंत्र की जीत है।ये भारतीयता की जीत है। ये सीधे सीधे नरेंद्र मोदी और मोदीवाद की करारी हार है। ये उस विचार की शिकस्त है जो अहंकार में डूब कर देश को अपने हिसाब से हांकने का मंसूबा बांध रहा था। हार के कारणों की पड़ताल करने के लिए बीजेपी नाम की पार्टी तो है ही नहीं क्यों की वो तो मई 2014 के बाद ही तिरोहित हो गयी थी।उसके बाद विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का अट्टहास करने वाले दल को दो लोगों ने बंधक बना लिया।उसके बाद न पार्टी रही न कोई रीति नीति न आतंरिक लोकतंत्र।बचा तो सिर्फ मैं, मैं,मैं और सिर्फ मैं का राग भैरवी ताल कहरवा।
सोशल मीडिया पर चक्रवर्ती सम्राट की विरुदावली गाने और सिंहासन की जय जय कार में दिन रात “मोदी-रासो” लिखने वाले चारण भाटों का रेला बढ़ा चला आ रहा था। कट पेस्ट, फोटो शॉप के जरिये इतिहास की झूठी सच्ची कहानियां बनाने वाले अय्यारों ने अपने नेता को महामानव बना दिया और अंध भक्त झाँझ, मजीरे, खप्पर लेकर कीर्तन करने लगे। विकास के नाम पर दिन रात गाल बजाने वालों को बिहार में जाति धर्म और हर उस टोटके से चुनाव जीतने को कोशिश करते सबने देखा। विरोधी नेता के “डी एन ए पर संदेह” से लेकर “बेचारी बेटी को सेट करने” जैसे स्तरहीन भाषण भी देश के मुखिया के मुंह से सुन लिए गए।
सत्ता के शिखर की शह पर हर असहमति और विरोध को देशद्रोह बताने वाले हरावल दस्तों की धींगामस्ती देश ने देखी।देश और समाज के ज़रूरी सवालों पर “महामानव के मौन” को देश ने बहुत ख़ामोशी से सुना और पहले ही मौके पर ऐसी टेर लगायी कि दिल्ली के 7 रेसकोर्स से लेकर झंडेवालान तक सबके कान सुन्न हो गए। वैसे जनता ने पहली चेतावनी दिल्ली के नतीजों में ही दे दी थी। कान खोल कर सुन लीजिये, आप और आपकी पार्टी भले सबसे बड़े नेता और पार्टी हो गए हों इस महादेश पर राज करने के लिए दिल बड़ा नहीं कर पाये हैं। असली मुद्दों से भटककर गैर ज़रूरी बहसों में देश को बरगला कर आपने लोगों का दिल ही दुखाया है।
अब भी बिहार की हार पर बिहारियों को मूर्ख और जाने क्या क्या बता कर जनादेश का अपमान किया जा रहा है। दिल्ली में हार पर भी जनता के फैसले का इसी तरह मखौल उड़ाया गया था। लेकिन जैसा कि डॉ राममनोहर लोहिये ने कहा था कि “ज़िंदा कौमें पांच साल इन्तिज़ार नहीं करतीं।” पहले दिल्ली और अब पटना में जनता ने दीवर पर लिख दिया है कि उसे आपके तौर तरीके पसंद नहीं आ रहे। देश सिर्फ उतना ही नहीं है जितना आपके अंध भक्तों ने सोशल मीडिया पर बना रखा है। देश लुटियन की दिल्ली से लेकर मधेपुरा के गांव टपरे तक पसरा है जिसे आप अपने खोखले जुमलों से ज्यादा दिन बहला नहीं सकते।
फिर सुन लीजिये, ये आपके ” मैं” की हार है। ये आपके “नाम” की हार है। ये उस विचार की हार है जिसे इतिहास “मोदीवाद” के नाम पर दर्ज़ करेगा। अभी भी वक्त है सम्हल जाइये। लोग जैसे सिर पर बिठाते हैं वैसे उतारना भी जानते हैं।
लेखक डॉ राकेश पाठक डेटलाइन इंडिया मैग्जीन के प्रधान संपादक हैं.