Vineet Kumar : नामवरजी, काशीनाथ सिंह आपके छोटे भाई हैं, मेरे नहीं… काशीनाथ सिंह के साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाए जाने पर आलोचक/ प्रो. नामवर सिंह ने उन्हें जिस तरह आड़े हाथों लिया है, रिएक्ट किया है, टीवी पर उनकी बॉडी लैंग्वेज देखते हुए उनका एक और पक्ष जाहिर हो गया- ये आदमी अपने पारिवारिक जीवन में भी बहुत डेमोक्रेटिक नहीं है.( अव्वल तो ये समझने के लिए भी तैयार नजर नहीं आते कि सार्वजनिक तौर पर वो नामवर सिंह के छोटे भाई होने से पहले एक लेखक हैं, साहित्य अकादमी प्राप्त लेखक और ये उनका फैसला है कि वो क्या करें? सभा-संगोष्ठियों में तो ये पक्ष बहुत पहले से ही जाहिर था जिस पर कि अनुचर वाक्पटुता की टेबल क्लॉथ चढ़ाकर थै-थै करते रहे..लेकिन नामवरजी, घर में घमासान जैसे सुपर टीवी के लिए फिट है.
हमारे लिए बस इतना है कि हम काशीनाथजी को इसलिए नहीं पढ़ते कि वो आपके छोटे भाई हैं..हम इसलिए पढ़ते आए हैं, सम्मान करते हैं कि वो एक बेहतरीन लेखक और फक्कड़ इंसान है. जब जमाने को लौडे पर रखकर चलना बनारसियों की आइडेंटिटी है जैसे वाक्य वो लिख सकते हैं तो इसका मतलब तो यही हुआ न कि इस लेखक को साहित्य अकादमी रखने की ये भी जगह नहीं बची तो वापस लौटा दे रहे हैं. बाकी आप रिश्ते में बड़े भाई हैं तो होते रहिए नाराज और निभाते रहिए बड़े भाई का आपद धर्म..हमने न कभी उन्हें आपसे जोड़कर देखा और न ही कभी आगे देखेंगे..वो बड़े लेखक हैं और आपसे बहुत बड़े शख्स.
नामवरजी, आपकी पवित्र भावना के हम पहले से ही कायल हैं, फिर हुए…
हिन्दी साहित्य के अमिताभ बच्चन कहे जानेवाले प्रो. नामवर सिंह का कहना है कि जो भी लेखक साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा रहे हैं, उनका इरादा अखबार में सुर्खियां बटोरना भर है. साहित्य अकादमी स्वायत्त संस्था है जिनके अधिकारी लेखकों की ओर से निर्वाचित किए जाते हैं. नामवरजी, इतनी समझ इन लेखकों के साथ-साथ हम जैसे नए लोगों को भी है कि इसके अधिकारियों का चयन लेखक करते हैं. लेखकों का प्रतिरोध भी तो इसी बात को लेकर है कि जब ये संस्था स्वायत्त है तो एक लेखक की हत्या पर सरकार की तरह ही चुप क्यों है ? सरकार के पक्ष में ही सही जिस तरह आपने स्पष्ट तौर से अपनी बात कही, ये काम संस्था भी कर सकती थी..सरकार के प्रधानसेवक की तरह इस हत्या पर चुप्पी मार लेने का कोई तुक नहीं बनता था..लेकिन
आपका सारा लेखन और साहित्य सेवा एक तरफ और संस्थानों के प्रति पवित्र कामना दूसरी तरफ. विभूति-छिनाल प्रकरण में भी आपकी प्रतिबद्धता संस्थान के प्रति थी और आपने अपमानित लेखिका के पक्ष में खड़े होने के बजाय बेशर्म वीसी और उनका साक्षात्कार प्रकाशित करनेवाली पत्रिका नया ज्ञानोदय के पक्ष में खड़ा होना ज्यादा जरूरी समझा. आपके इस तरह के बयान और संस्थानों के प्रति प्रति पवित्र कामना हमेशा की तरह हमें इस बात के लिए रोकती है कि आप विश्वसनीय लेखक-आलोचक हैं.
और वैसे भी ऐसी दर्जनों किताबों, लेखकों की तारीफ करके आपने लगातार साबित किया है कि हम वैचारिक स्तर पर नहीं, एक ब्रांड के स्तर पर किसी को प्रोत्साहित करते हैं. विभूति छिनाल प्रकरण के बाद अबकी बार भी आपने वही किया. सवाल बस इतना ही है कि जब अखबार की सुर्खियां ही बटोरना लेखकों का उद्देश्य रहा है तो बयान देकर तो आप उनके बाप निकले, ये फायदा आपको बिना लौटाए ही आपके महान मीडिया ने दे दिया. आप युवा लेखकों को निराश करते रहे हैं, करते रहेंगे. हां चाहे तो कोई अग्गा-पिच्छा चिरौरी करके किताब की फ्लैप पर तारीफ में चाहे जो लिखवा ले. शायद यही वजह रही है कि पिछले कुछ सालों से जब भी आपको याद करता हूं, आपकी किताबें, उनमे लिखी बातें कम, हरकतें पहले याद आती हैं. बाकी अखबार ने प्रख्यात मार्क्सवादी आलोचक-लेखक की कलगी लगा ही दिया है आपके नाम के आगे जिससे कि लोगों को ये समझने में दिक्कत न हो कि लेखकों का पुरस्कार लौटाना, सत्ता का विरोध करना इतनी घिनौनी हरकत है कि मार्क्सवादी लेखक तक इनके पक्ष में नहीं हैं..मार्क्सवादी लेखक का इससे खूबसूरत इस्तेमाल भला और क्या हो सकता है?
युवा मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार के फेसबुक वॉल से.