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मियां नवाज़ का कमाल लेकिन…

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मियां नवाज़ शरीफ ने संयुक्तराष्ट्र संघ में जो भाषण दिया, यदि आप उसकी गहराई में न जाएं तो आप कहेंगे कि उन्होंने कमाल कर दिया है। उन्होंने भारत की तरफ दोस्ती का हाथ इतनी गर्मजोशी से बढ़ाया है कि यदि भारत ‘ना’ करे तो उसकी ही बदनामी होगी। उन्होंने भारत और पाकिस्तान की असली नब्ज पर उंगली रख दी है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा है कि हम दोनों मुल्कों का दुश्मन समान है, गरीबी और पिछड़ापन! उन्होंने यह भी कहा है कि इन दुश्मनों से लड़ने के लिए दोनों देशों को मिलकर काम करना होगा। दोनों की बीच अनबोला नहीं चलेगा। यह जरुरी है कि दोनों बात करें।

<p>पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मियां नवाज़ शरीफ ने संयुक्तराष्ट्र संघ में जो भाषण दिया, यदि आप उसकी गहराई में न जाएं तो आप कहेंगे कि उन्होंने कमाल कर दिया है। उन्होंने भारत की तरफ दोस्ती का हाथ इतनी गर्मजोशी से बढ़ाया है कि यदि भारत ‘ना’ करे तो उसकी ही बदनामी होगी। उन्होंने भारत और पाकिस्तान की असली नब्ज पर उंगली रख दी है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा है कि हम दोनों मुल्कों का दुश्मन समान है, गरीबी और पिछड़ापन! उन्होंने यह भी कहा है कि इन दुश्मनों से लड़ने के लिए दोनों देशों को मिलकर काम करना होगा। दोनों की बीच अनबोला नहीं चलेगा। यह जरुरी है कि दोनों बात करें।</p>

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मियां नवाज़ शरीफ ने संयुक्तराष्ट्र संघ में जो भाषण दिया, यदि आप उसकी गहराई में न जाएं तो आप कहेंगे कि उन्होंने कमाल कर दिया है। उन्होंने भारत की तरफ दोस्ती का हाथ इतनी गर्मजोशी से बढ़ाया है कि यदि भारत ‘ना’ करे तो उसकी ही बदनामी होगी। उन्होंने भारत और पाकिस्तान की असली नब्ज पर उंगली रख दी है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा है कि हम दोनों मुल्कों का दुश्मन समान है, गरीबी और पिछड़ापन! उन्होंने यह भी कहा है कि इन दुश्मनों से लड़ने के लिए दोनों देशों को मिलकर काम करना होगा। दोनों की बीच अनबोला नहीं चलेगा। यह जरुरी है कि दोनों बात करें।

दोनों बात तो करें लेकिन क्या बात करें? मियां नवाज़ ने चार मुद्दे उठाए हैं, जिन पर बात हो सकती है। पहला, नियंत्रण-रेखा पर पूर्ण युद्ध-विराम हो। दूसरा, किसी भी हालत में बल-प्रयोग न हो। तीसरा, कश्मीर से फौजें हटाएं। चौथा, सियाचिन से बिना किसी शर्त के दोनों देश अपनी फौजें हटाएं। जहां तक पहले दोनों मुद्दों का सवाल है, इन पर तो 2003 में ही सहमति हो चुकी थी। सियाचिन के मामले में पिछले 20 साल से बराबर बातचीत चल रही है। इस मामले में बड़ी उलझने हैं। कई बार यह मामला सुलझते-सुलझते उलझ गया है। जिन प्रधानमंत्रियों के बीच दो बार सहमति हुई, वे ही अचानक सत्ता से बाहर हो गए। यह मामला बातचीत से हल हो सकता है लेकिन कश्मीर से फौजों को हटाना न भारत के लिए आसान है और न ही पाकिस्तान के लिए! ‘आजाद कश्मीर’ पर पाक-फौजी कब्जे के कारण ही सं.रा. का जनमत-संग्रह का प्रस्ताव लागू नहीं हो रहा है। भारतीय कश्मीर में यदि पाकिस्तान अपनी कारस्तानियों को बंद कर दे तो वहां भारत को फौज रखने की जरुरत ही नहीं पड़े। मियां नवाज़ की यह मांग बिल्कुल जायज है कि दोनों कश्मीरों से फौजें हटे। मैं तो यह भी जोड़ देता हूं कि पूरे पाकिस्तान से ही फौज हटे। यह तभी हो सकता है, जबकि दोनों मुल्कों में एक-दूसरे के प्रति सच्चा सद्भाव हो। अभी सद्भाव का स्तर यह है कि इसी अच्छे-खासे भाषण में मियां नवाज़ ने यह भी जोड़ दिया कि वे सुरक्षा-परिषद में भारत को बिठाने का विरोध करते हैं। उन्होंने आतंकवाद के विरुद्ध भी रटी-रटाई बातें दोहरा दीं। यह ठीक है कि वे पाकिस्तान-विरोधी आतंकवाद से जमकर लड़ रहे हैं, जो कि सराहनीय है लेकिन भारत और अफगानिस्तान विरोधी आतंकवाद के खिलाफ उनकी लड़ाई के ठोस प्रमाण भी सामने आने चाहिए।

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