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अपने ही तिलिस्म में घिर गए हैं नीतीश… जानिए कैसे

Samarendra Singh :  नीतीश कुमार ने कहा है कि जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाना उसके जीवन की सबसे बड़ी राजनीतिक भूल है. उन्होंने यह भी कहा कि उससे पहले (मुख्यमंत्री बनाने से पहले) कौन जानता था मांझी को. नीतीश की इन बातों में वो दर्द झलकता है जो उन्हें परेशान करता होगा. दरअसल आज बिहार में नीतीश घिर गए हैं और उन्हें महज सौ सीटों पर चुनाव लड़ने का समझौता करना पड़ा है तो इसलिए नहीं कि बीजेपी ने उन्हें घेर दिया है. असल में नीतीश अपने ही बनाए तिलिस्म में उलझ गए हैं.

<p>Samarendra Singh :  नीतीश कुमार ने कहा है कि जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाना उसके जीवन की सबसे बड़ी राजनीतिक भूल है. उन्होंने यह भी कहा कि उससे पहले (मुख्यमंत्री बनाने से पहले) कौन जानता था मांझी को. नीतीश की इन बातों में वो दर्द झलकता है जो उन्हें परेशान करता होगा. दरअसल आज बिहार में नीतीश घिर गए हैं और उन्हें महज सौ सीटों पर चुनाव लड़ने का समझौता करना पड़ा है तो इसलिए नहीं कि बीजेपी ने उन्हें घेर दिया है. असल में नीतीश अपने ही बनाए तिलिस्म में उलझ गए हैं.</p>

Samarendra Singh :  नीतीश कुमार ने कहा है कि जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाना उसके जीवन की सबसे बड़ी राजनीतिक भूल है. उन्होंने यह भी कहा कि उससे पहले (मुख्यमंत्री बनाने से पहले) कौन जानता था मांझी को. नीतीश की इन बातों में वो दर्द झलकता है जो उन्हें परेशान करता होगा. दरअसल आज बिहार में नीतीश घिर गए हैं और उन्हें महज सौ सीटों पर चुनाव लड़ने का समझौता करना पड़ा है तो इसलिए नहीं कि बीजेपी ने उन्हें घेर दिया है. असल में नीतीश अपने ही बनाए तिलिस्म में उलझ गए हैं.

नीतीश ने लालू और पासवान की जोड़ी को काटने के लिए अति पिछड़ा और महा दलित को एक अलग समूह के तौर पर मान्यता दी, उन्हें प्रोत्साहन दिया. तब नीतीश बीजेपी के साथ थे और लालू पिछड़ों के नेता माने जाते थे और पासवान दलितों के. नीतीश ने लालू और पासवान के जनाधार को काटने के लिए पिछड़ों और दलितों की सामूहिक चेतना को जातीय चेतना पर ला खड़ा किया. पिछड़ों में अति पिछड़ा और दलितों में महादलित परिभाषित किया. चिन्हित किया और उन्हें नई पहचान दी.

नीतीश ने अति पिछड़ों को बताया कि यादवों ने तुम्हारा शोषण किया है, तुम्हारे हिस्से की मलाई खाई है और महादलितों को बताया कि पासवानों ने उनका हक मारा है. मतलब यादवों के विरुद्ध अति पिछड़े उठ खड़े हुए और पासवान के खिलाफ महादलित. चूंकि करीबी और मौजूदा दुश्मन की शिनाख्त हो चुकी थी इसलिए अतीत में शोषण करने वालों के खिलाफ उनकी नफरत कुछ कम हो गई.
लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद महादलितों के इसी वोट बैंक को सुनिश्चित करने के लिए नीतीश कुमार ने मांझी को मुख्यमंत्री बनाया. खुद त्याग की परिभाषा गढ़ कर पर्दे के पीछे चले गए. सोचा संगठन खड़ा करेंगे. लेकिन जैसे नीतीश महात्वाकांक्षी थे, जीतन राम मांझी भी महत्वाकांक्षी निकले. अहसान और वफादारी जैसे शब्दों के ऊपर निकले. आज महादलितों के बड़े नेता के तौर पर उनकी पहचान है और अब वो पासवान के साथ बीजेपी के खेमे में खड़े हैं. नीतीश पर दलितों को अपमानित करने का आरोप लगा रहे हैं. मतलब आज नीतीश के पास न तो दलित हैं और ना ही महादलित.

पिछड़ों के दो बड़े नेता यानी एक वो खुद और दूसरे लालू यादव साथ हैं… मगर अति पिछड़ा अपने भीतरी दुश्मन (यादवों) के नेता को अपने नेता के तौर पर कुबूल करे भी तो कैसे करे… नीतीश की सोशल इंजीनयरिंग धराशायी हो गई है. यही नहीं लालू यादव के साथ खड़े होने की वजह से उनकी विकास पुरुष की छवि भी धूमिल हो गई है. बीते दस साल में नौ साल तो नीतीश ने लालू को बहुत बड़े भय के तौर पर स्थापित किया है… लालू के राज को जंगलराज के तौर पर स्थापित किया. आज उसी जंगल राज के साथ खड़े होकर विकास का गान गाने की कोशिश कर रहे हैं. लोग असमंजस में हैं.
चुनाव जैसे जैसे नजदीक आएगा. बिहार में अपहरण, लूट और हत्या की वारदात बढ़ेंगी. चुनावी खर्च जुटाने के लिए वहां के बड़े सियासी अपराधी यही हथकंडे अपनाते हैं. जंगलराज की वापसी की आशंका बढ़ेगी. सत्ता पक्ष का आधार कमजोर होगा. नीतीश ने शानदार तिलिस्म रचा था. लेकिन आज वो खुद अपने ही बनाए तिलिस्म में घिर गए हैं. नीतीश का ये तिलिस्म खुद उनको निगल रहा है. यही मजबूरी दर्द बन कर उनके चेहरे और शब्दों में झलक रही है.

वरिष्ठ पत्रकार समरेंद्र सिंह के फेसबुक वॉल से.

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