Shamshad Elahee Shams : पाकिस्तान बनने के वक्त वहां 15 फीसद हिन्दू आबादी थी जो आज घट कर 1.6% रह गयी, जब किसी पाकिस्तानी को फलस्तीन के मसले पर विधवा विलाप करते देखता हूँ तब जाने कैसा कैसा महसूस होने लगता है. क्या तुम्हें भी ऐसा ही महसूस होता है? क्या उन्हें इस स्याप्पे का कोई नैतिक अधिकार है? Hindu population in Pakistan was 15% at the time of its creation, which is reduced to 1.6% now. I feel anxious when I see a Pakistani lamenting for Palestine, do you feel the same? Do they have any moral right to make hue and cry?
धर्म की सत्ता के विरुद्ध जो लोग प्रतिक्रियावश नास्तिकता का झंडा उठाये फिरते हैं, उनकी तुलना मैं उस अंधे से करता हूँ जो एक धुप्प अँधेरे वाले कमरे में कैद है, बाहर निकलने के प्रयास में कमरे की दीवारें कभी उसका सर फोड़ती हैं तो कभी गहरा घाव देती है. नास्तिकता एक नकारात्मक भाव है, त्रिस्कार का भाव. धर्म की सत्ता को नकारना ही काफी नहीं वरन उसके तमाम अवयवों को समझ कर, धर्म और राज्य के अंतर्संबंधो की पड़ताल कर जनता को उससे मुक्ति की राह दिखाना ज्यादा जरुरी काम है बनिस्पत इसके की खुद को किसी गोष्ठी में बैठ कर नास्तिक घोषित करना. द्वंदात्मक भौतिकवाद ही इस गुत्थी को सुलझाने में सबसे सक्षम वैज्ञानिक हथियार है, इस हथियार के बिना कथित नास्तिक भी शोषणकारी राज्य का एक एन जी ओ टाइप हिस्सा मात्र है, और कुछ नहीं. सामुहिक नास्तिकता जन मुक्ति से जुड़ कर ही किसी निर्णायक मोड़ पर पहुँच सकती है अन्यथा यह सिर्फ एक जहनी मकडजाल है.
शमशाद एल्ही शम्स के फेसबुक वॉल से.