लाल और नीली बत्ती लुपधुपा रही है. व्याऊं-व्याऊं का सायरन दिल की धड़कनें बढ़ा रहा है. जहन में सवाल है कि भई क्या नया हो गया. आखिर खाकी किसको तानने आई है. क्या मुद्दा कीमत के नीचे दब जाएगा या फिर कोई कमजोर बेवजह ही हवालात जाएगा. सिर्फ इतना ही नहीं पुलिस को हिंदी फीचर फिल्मों की तमाम वो स्क्रिप्टें भी बेहतर बनाने में असफल रहीं क्योंकि साहब दाग कुछ ज्यादा गहरा था. इन सभी के बीच यूपीपी बिल्लाधारी तो कुछ और ज्यादा इज्जतदार हैं. बनारस में जो आग बहक गई थी उससे वाहनों को फूंकने वाले ये खाकीधारी ही थे.
मोहनलालगंज में जो निर्भया बद्नाम होकर, उतनी हुई पड़ी थी उसकी नग्न तस्वीरों को कैद करने में इन खाकीधारियों को कोई परेशानी न थी. सड़कों के किनारे पांच रुपयों में बिकने वाली वो वर्दी यूपीपी की ही है. लेकिन इन्हें कोई परेशानी नहीं इस बात से. ये कल भी धड़ल्ले से तन का, मन का, वतन का, कफन का, जमीर का सौदा कर रहे थे. और आगे करते भी रहेंगे. दरअसल ये मैं नहीं कह रहा बल्कि एक उत्तर प्रदेश के स्टीकर से चिपका एक पुलिसवाला ये खुद बयां कर रहा है. जिसकी जानकारी सोशल मीडिया के माध्यम से एसएसपी राजेश पांडेय को दी गई. पर पुलिस कहें या खाकी होठों को सिल बैठी. कार्रवाई का कोई जवाब नहीं आया.
बहरहाल कार्रवाई कब और क्या होती है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा. लेकिन हां यूपी के लोगों के दिलों में पुलिस और पुलिस के दिल में पुलिस की क्या इज्जत है ये आप तस्वीर में ही देख लीजिए. प्रांजुल मिश्रा नाम के एक कांस्टेबल जो कि लखनऊ कैंट थाने में तैनात है, उसकी टाइमलाइन पर बाकायदा लिखा है कि भाई पुलिस की चरित्र कितनी भी खराब क्यों न हो लेकिन लोगों को चरित्र प्रमाण पत्र पुलिस ही देती है…जिसके बाद लिखा है कि वेतन कम है फिर भी दम है. ये किस मानसिकता की ओर इशारा कर रहा है. कहां से इन पुलिस वालों के साथ विकास की आस लगाई जा सकती है. प्रदेश सरकार के लिए शायद ये छोटा मुद्दा हो लेकिन ये अकेला पुलिस की छवि पर कितना घातक साबित हो रहा है शायद इसका अंदाजा लगाकर कोई न्याय हो सके.
हिमांशु तिवारी आत्मीय
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